शनिवार, 28 नवंबर 2015

कैद से मुक्त

जब से ब्याकर इस घर मे आयी पति और सासू माँ के इशारे पर ही नाचती रही | सासू माँ दबंग महिला थी अपनी हर बात सही साबित करती और उसे मनवा कर ही दम लेती |
पति देव भी जब-तब छोटी-छोटी बात पर उसे तलाक के लिये धमकाते रहते | फिर भी इन सब परिस्थितियों से लढ़कर चुपचाप रात के अंधेरे मे उसने सिविल सेवा  की तैयारी की थी |
    आज उसका परिणाम निकला था उसे डिप्टी कलेक्टर के पद के लिये चुन लिया गया था .समाचार पत्र मे उसकी तस्वीर सहित परिणाम घोषित हुआ था.
   आज दोनो के मुँह पर ताला जड गया  और वो सांसों की  कैद से मुक्त |
नयना(आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५

जरा सी गिरह

हरे रंग की लाल किनारी वाली साड़ी मे सुनयना का रुप जैसे और खिल आया था.
"राज ने छेडा भी उसे "ओहोSS !!! क्या बात है,आज तो ग़जब ढा रही हो."
"हा!! राज आज रक्षा बंधन है ना मुझे "कान्हा"  को राखी बांधनी है .वो मेरे मित्र ,मेरे भाई सभी  तो है .मेरा  अपना भाई तो  नाराज़------"आँखें भर आई सुनयना की.
तभी द्वार की घंटी बजी--- सामने सुजीत को देख ,सब कुछ भूल गई और उसे गले से लगा लिया .
"जरा सी गिरह से तू कितना नाराज गो गया मेरे छुटकू"
भाग कर  अंदर गयी और जल्दी से आरती की थाली ला रक्षा सूत्र उसके हाथ मे बांध दिया.
  आज सुजीत मे उसने कान्हा का रुप देख लिया था.

नयना (आरती) कानिटकर
२८/११/२०१५