गुरुवार, 23 जून 2011

वर्षा ऋतु आई

अरसे से प्यसी धरा पर
उतर नभ से वर्षा  आई
उड-घुमड कर बादल बरसे
पवन पाती-पाती इतराई
देखो वर्षा ऋतु आई.

सौंधि-सौंधि खूशबू ने फिर
हवा के संग करी चढाई
बयार हुई ठंडी मदमस्त
बूंदोने  हे प्यास बुझाई
देखो वर्षा ऋतु आई

खुशी से भर उठा किसान
धरा को चुमने दौड लगाई
हल उठाओ चलो काम पर
धरती ने आवज लगाई
देखो वर्षा ऋतु आई
देखो वर्षा ऋतु आई


  

गुरुवार, 2 जून 2011

मै उजियारा हूँ

उठो कि---
भोर हुई अब

मै धूप हूँ उजियारा हूँ
मुर्गे ने हे बांग लगाई
कोयल ने हे कूक सुनाई
चिडीयों की चह्चहाट से
प्रकृति भी देखो मुस्काई
अब उठो कि -----
मै धूप हूँ उजियारा हूँउठो सुबह हुई,मुँह ना ढापो
कमरे की धूल को छाटों
छितरे घर को सहलाओ
मकान को अपना घर बनाओ
अब उठो कि -----
मै धूप हूँ उजियारा हूँ
तानपुरे की एक तार को छेडो
स्वर लहरी में रस बरसाओ
अंग अंग मे भरो उत्साह
समय को फिर मुठ्ठी मे करके
पूरे दिन का पर्व मनाओ
अब उठो कि -----
मै धूप हूँ उजियारा हूँ