शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

प्यार की गुलामी-कघुकथा के परिंदे गुलामी का अनुबंध

अंतिम सांस की आहट और खड़खड़ाहट गूंजती है अब भी कानों में मेरे. महसूसती हूँ आज भी अंतिम स्पर्श और सुनाई देती है अंतिम मौन की चीख ....
निर्जीव देह एक नही दो-दो---जीवन यात्रा का पूर्ण विराम.
वक्त के साथ सफर जारी है मेरा--मगर कब तक
’माँ उठो !! देखो ये पापा की तस्वीर के आगे कब तक यू सिर झुकाए ------"
"तेरे पापा के साथ मेरा अनुबंध था बेटा सात जन्मो का प्यार की गुलामी... . बहुत इंतजार किया बस अब और नहीं
ॐ नमो नरायण ॐ नमो नरायण ॐ शांति शांति शांति......
नयना(आरती) कानिटकर