रविवार, 20 दिसंबर 2015

अपराध विषय आधारित-लघुकथा के परिंदे-"जमीन"

शीना और  शशांक के साथ  अपनी गाड़ी से प्रवास पर निकले शर्मा दंपत्ति सडक के  बाँयी ओर कोयले की आँच पर गर्मागर्म भुट्टे सेंकते देख उनका स्वाद लेने और  कुछ देर सुस्ताने के हिसाब से गाड़ी एक किनारे लगा देते है. पास ही एक महिला को ताजे-ताजे भुट्टे सेंकने का कह थोडा चहलकदमी करने लगते है.
 भुट्टे वाली के पास ही कुछ दूरी पर शीना की हम उम्र लड़की पत्थरों से घर बना ,झाडीयो मे लटकती ,लहराती बेलों से झुला बनाकर अपनी पुरानी सी गुड़िया जिसके हाथ-पैर लूले हो चुके थे ,खेल रही थी.शीना भी अपनी गुड़िया थामे  वहा पहुँच गई.उस लड़की ने भी शीना को अपने खेल मे शामिल करना चाहा ,तभी नमक-निंबू लगे भुट्टे हम तक आ चुके थे,वे उन्हे ले गाड़ी मे बैठ गये.
छीSSS मम्मी!!! कितनी गंदी गुड़िया थी उसकी और  वो कैसे पत्थर का घर बना उसे खिला रही थी मानो कोई महल हो,मेरी देखो इतनी सुंदर गुड़िया के साथ खेलना था उसे.---ना जाने क्या-क्या अर्नगल बोलने लगी.
चुप करो शीना!!! बहुत हो गया. अभाव क्या होता है तुम्हें मालूम नही है,तुम जो मांगती हो वह तुम्हें तुरंत मिल जाता है. उसकी माँ को देखो क्या कमा पाती होगी वो दिन भर मे किसी को इस तरह गंदा कहना,उसका मज़ाक उडाना---बोलते-बोलते मेरा बदन काँपने लगा.
बच्चों को सारी भौतिक सुविधाएँ तो जुटा दी किंतु उन्हे ज़मीन से ना जोड पाई.इस अपराध बोध मे मुझे अस्वस्थ कर दिया था.
 बच्ची को  शीना ने अपनी गुडिया भेंट स्वरुप दे दी. 
नयना(आरती) कानिटकर
२०/१२/२०१५

गले की जंजीर-लघुकथा के परिंदे-दहलीज

 बहू को अचानक अपने पिता  के साथ जाते देख शांती बहन के मन मे कुछ संदेह हुआ" माँजी!! मै सुनंदा को अपने  घर  ले जाने आया हू
"हा माँ !!!मैने ही पिताजी को बुला भेजा है"
बात को बीच मे ही काटते माँ दहाड उठी-" जानते हो क्या करने जा रहे हो,समाज के लोग क्या कहेगे?
"माँ आप तो सब जानती थी की --- फिर मै मना  भी करता रहा किंतू आप बिन माँ की बच्ची को प्यार और घर मिल जायेगा कहकर 
समाज मे दिखावे के खातिर  जबरन मेरा विवाह----
 बात यही खत्म होती तब भी ठिक था .सुनंदा तो बिन माँ की प्यार की भूखी थी,उसने मेरे साथ भी  सामंजस्य बैठा लिया आप लोगो से प्यार की लालसा मे.
"तो अब क्या हुआ?"
"हद तो अब हुई है माँ!!"-जब बडे भैया ने---घर के चिराग का वास्ता देकर----
"और भाभी आप??? --"
आप तो एक स्त्री थी,एक स्त्री दुसरी के साथ इस तरह--"
एक मिनट सुनो भैया!!  भाभी बोल पडी जब मैं माँ नही बन पा रही तो बाबुजी ने तुम्हारे भैया को ये सब करने को मजबूर किया  ये कहकर की घर की बात घर मे रहेगी और एक ही घर का खून भी.तब जबरन उनके कमरे मे ठेल दिया गया
हमने विरोध भी किया मगर--हम कमजोर थे शायद.धन्य है सुनंदा वो मजबूत निकली.
सुनंदा का हाथ थामे  सारी जंजीरे तोड रोहन भी  पिताजी के साथ घर की दहलीज लांघ गया

नयना(आरती)कानिटकर