सोमवार, 3 सितंबर 2012

त्रिवेणी


(१)ठहरे हुए पानी कि तरह
      मेरे लफ़्ज भी कोइ ऐसे

      "पन्नो पर बिखर गये"


(२)सिंचा था एक पौधा अपने घर के आँगन मे
      उस प्लवित फूल की खूशबू से बेभान थी मै

      "अचानक आँगन से कोई चुरा ले गया"

(३)"सावन के रिमझिम कि मस्त फ़ुहार,
       आल्हादित मन नाचने को है बेकरार"

       (सामने मेज पर लगा फ़ाइल का अंबार)



(4)लिये हाथ मे कलम,नजरे कागज पे गडी है
      शब्दो कि लडियाँ है,बस  ना जुडती कडी है

       "दो राहो पर मेरी भावना खडी है""

5) माली  बाग का कली-कली खिलाता
      मधुपान करता कोई भँवरा भुनभुनाता

    ( स्त्रित्व का अस्तित्व खतरे में  है)



(६)शमशिरें अब तुम झुका लो,
     शांति कि बयार चहु  फैला दो

   (रचनाओं कि मजलिस आनंद देगी)