शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

अंतिम उपहार

  २-४ दिन से वह बैचेन सी  थी,घर के काम निपटाते हुए भी उनके कान मुख्य द्वार की घंटी पर ही थे,पता नही कब बज उठे .उनकी बेटी पूरे दिनो से जो चल रही थी.
            तभी अचानक मुख्य द्वार की घंटी बज उठती है,हाथ का काम छोड वे दरवाज़े की ओर दौड़ पड़ती है.
डाकिया बाबू के हाथे लगभग झपटते हुए ही चिट्ठी लेती है.
  "अरे अम्मा चिट्ठी के लिये इतनी उतावली होती हो तो एक मोबाईल क्यो ना ले लेती."
वे उसकी बातो को अनसुना कर चिट्ठी पढते ही आनंद के मारे चिल्ला पड़ती है ---यही रुकना डाक बाबू अभी आयी.
 "लो डाक बाबू!!! आज तुमने बहुत अच्छी खबर लाई है. मेरी बेटी के घर लक्ष्मी बिटिया ने जन्म लिया है."
"मेरे जन्मदिन पर हर बार तुम  मेरे पिता द्वारा डाक से भेजा उपहार लाते हो. आज से  तुम्हारी बारी.सम्हालो जल्दी से."
      और अरे!!!! ये क्या आनंद मे देख ही नही पायी ये आज तुमने कैसा वेष धारण किया है?
            अम्मा बंगलौर मे राष्ट्रीय डाक सप्ताह चल रहा है ना!! सोचा पुराने दिन याद कर लू.पता नही हमारे दिन कब फिर जाए . अब तो नौकरी तक की रजामंदी मेल से आने लगी है. शायद मेरा  ये उपहार भी अंतिम हो.
" कही ये मुआ  ई-मेल हमारी--------