बुधवार, 21 नवंबर 2012

सागर

बैठी हूँ समुद्र किनारे
देखती हूँ
लहरों कि अठखेलियाँ
मन भी उन लहरों
के साथ
अठखेलियाँ करने लगता है
पर सागर तो इठलाता है
हरदम अपनी लहरों पर
लगता है
मैं भी इठलाउँ
 चुन लाऊँ
इस विशाल अथांग
सागर से
सुंदर-सुंदर मोती
पीरोलू माला उनकी
पहन गले मे इठलाऊँ
फिर
लगाने लगती हूँ
गोते अनेकों
पर हाथ मे कुछ नही समाता
क्योंकि वहाँ तो ढेर है
सुंदर-सुंदर मोतीयों का
ज्ञान के सागर कि तरह
उसमे जीतने गोते लगाओ
हर बार एक अलग मोती
हाथ लगता है
इसलिये उसे गले मे पहन
इठलाया नही जा सकता
इसलिये यह अथांग सागर
इठलाता है
अपनी लहरों पर