मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

तीसरी पीढ़ी

गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बैठे अनुपमा के आँखो के आगे विगत काल चलचित्र सा चल रहा था।
आदित्य २ वर्ष पूर्व ही सेना से अवकाश प्राप्त कर हैद्राबाद मे  बस गये थे।
अनुपमा ने बी.एस.एफ.मे पदस्थ अपने  बेटे मंगेश का विवाह उससे प्रेम करने वाली मधुरा के साथ बडी धुमधाम से किया था। यथा नाम तथा स्वभाव वाली मधुरा जल्दी ही घर मे घुलमिल गई।
हनिमून से लौटकर मंगेश-मधुरा मद्रास जहाँ सामुद्रिक सीमा पर मंगेश तैनात था ,लौट गये थे।
जिन्दगी हँसी-खुशी मे बितते हुए  ना जाने कब ३ साल गुजर गये,कि एक  दिन अचानक बदहवास सी अवस्था मे  मधुरा का फोन आया था। मंगेश के लापता होने की खबर के साथ।
वे भी आनन-फानन मे मद्रास पहुँच गये थे।
   एक माह के अथक प्रयास के बाद भी मंगेश के जीवन की  नाउम्मीदि की खबर उसकी कुछ चिजें लौटाकर सेना ने घटनाक्रम की इतिश्री कर ली थी।
   बुझे दुखी  मन से मधुरा के साथ वे लौट आए थे.मधुरा भी अभी सदमे से उबरी नही थी.की---
आज अचानक गश खाकर गिर पडी.जल्दी-जल्दी वे उसे अस्पताल ले आई।.अन्दर चिकित्सक उसका परिक्षण कर रहे थे।तभी---
   "बधाई हो अनुपमा जी आप दादी बनने वाली है।."   वे एकदम वर्तमान मे लौट आयी।
देश सेवा के लिये  तीसरी पीढ़ी के रुप मे एक नव-जीवन पुन: अंकुरित हो पल्लवित हो रहा है।