रविवार, 6 जुलाई 2014

संवाद और दूरी

संवाद और दूरी शायद आपस मे समानान्तर और साथ-साथ चलते है.आज अचानक फेसबूक पर एक परिचित से नये से परिचय होता है.(बहुत से पुराने लोग नये से मिले है मुझे).करीब१-२ साल का वक्त साथ गुजारा होगा हमने.कुछ जिम्मेदारियाँ,कुछ उम्र का अंतर,कुछ आत्मसंयमी स्वभाव हमारे संवादो के बिच एक लक्ष्मण रेखा खींच गया था
   कटू व्यवहार तो दोनो ने कभी एक दूसरे से नही किया लेकिन आत्मीयता की जो डोर बाँधि जा सकती थी उससे हम दोनो चूक गये थे.कुछ परिस्थितियाँ कुछ लोगो का दैनिक व्यवहार मे हस्तक्षेप हमे आपस मे स्वतंत्र व्यवहार के आडे आता रहा..फिर वो परिचित अन्यंत्र चले गये और संपर्क के तार चाहते हुए भी पुन: उतने नही  मिल पाये.
        जब अचानक फेसबुक पर फिर चेहरे मिले तो मन के तार पुन: जुडने की कोशिश करने लगे. कहा था ना!!!! कि कटुता या संवादहिनता तो कभी नही थी ,पर कुछ था जो हमे जुडने से रोकता था.शायद निकटता ने लक्ष्मण रेखा खींच दी थी.आज आभासी दुनिया और वैश्विक दूरी ने उस रेखा को घूसर कर दिया था.हम आपस मे बात करने लगे,एक दूसरे के status पर like और टिप्पणी देने लगे.अब एक दूसरे कि खुशहाली जानते है,बच्चों के बारे मे बात करते है,एल दूसरे के लिखे पर विचार व्यक्त करते है.
       कहते है ना अति निकटता कभी-कभी संवादहिनता पैदा करती है वैसा ही  कुछ हुआ हमारे साथ.अब लगता है संवादहिनता,संतुलित संवाद के बजाय संवादो कि स्पष्टता हमे अधिक निकट ले आती क्योंकि समाजिक और शैक्षणिक आवृती तो हमारी एक सी थी.
देखिये ना संवाद और दूरी का आपस मे कितना महत्व है.जब ये सध जाये तो नयी आत्मियता जन्म लेती है