शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

फ़िर सोचती ही रह गई।

मैं चाहू कुछ तो बोलू
पर फ़िर सोचती ही रह गई
बात तो आई ज़ुबा पे
लबो परही सिमट गई
लगता है कुछ रुककर बोलू
धीरे-धीरे सिलसिला खोलू
पर पर्वत सी हिम्मत मेरी
माटी सम बह गई
फ़िर सोचती ही रह गई।
जो चाहू फ़िर वैसा ही होगा
सिर्फ़ सपने देखती रह गई
रिश्ते नाते के भ्रम में
अधूरी खोखली रह गई
कितना मुश्किल है चुभे काँटे को
हौले से निकाल पाना लेकिन
काँटो मे खिलते गुलाब को देख
अपना दर्द हँसते-मुस्कुराते सह गई
फ़िर सोचती ही रह गई।

 

बुधवार, 21 नवंबर 2012

सागर

बैठी हूँ समुद्र किनारे
देखती हूँ
लहरों कि अठखेलियाँ
मन भी उन लहरों
के साथ
अठखेलियाँ करने लगता है
पर सागर तो इठलाता है
हरदम अपनी लहरों पर
लगता है
मैं भी इठलाउँ
 चुन लाऊँ
इस विशाल अथांग
सागर से
सुंदर-सुंदर मोती
पीरोलू माला उनकी
पहन गले मे इठलाऊँ
फिर
लगाने लगती हूँ
गोते अनेकों
पर हाथ मे कुछ नही समाता
क्योंकि वहाँ तो ढेर है
सुंदर-सुंदर मोतीयों का
ज्ञान के सागर कि तरह
उसमे जीतने गोते लगाओ
हर बार एक अलग मोती
हाथ लगता है
इसलिये उसे गले मे पहन
इठलाया नही जा सकता
इसलिये यह अथांग सागर
इठलाता है
अपनी लहरों पर

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

परम्पराए और वैज्ञानिक आधार--2(ii)

आज अमृता अपनी दादी के साथ शाम के पूजा और आरती मे सहयोग कर रही थी.माँ यह सब देखकर मन ही मन प्रसन्न होती है.
  सुनो बेटा अमृता आज मैं तुम्हें शाम की पूजा के बाद जप-तप उपवास का महत्व बताती हुँ.----
  
पूजा के बाद अमृता बडी उत्सुकता से माँ के पास बैठती है. पहले मैं तुम्हें जप के बारे मे बताती हूँ.किसी भी मंत्र की बार-बार कि गयी आवृत्ती या दोहराना जप कहलाता है.यह आप अपने सामर्थ्य के अनुसार ११-२१-५१-१०१ आदी बार कर सकते है.
लेकिन माँ इससे क्या होता है अमृता सवाल करती है एक ही बार  किसी चीज़ को बार बार दोहराना समय कि बर्बादी नही है क्याँ?

 नही बेटा ये संस्कृत मे लिखे मंत्र बार बार दोहराने से इनसे जो स्पंदन होता है वह हमारे दिमाग कि मालिश करता है .इससे हमारी बुद्धि तेज होती है और बार बार दोहराने से ग्रहण करने कि क्षमता बढती है.साथ -साथ हमारी जिव्हा की भी कसरत होती है .इससे हमारे उच्चारण स्पष्ट होते है.मैं तो चाहती हूँ स्कुलो मे संस्कृत विषय कक्षा एक  से ही रखा जाये तो बच्चों को पढने मे आसानी होगी.
अब उपवास के बारे में सुनो 
शरीर शोधन की दृष्टि से  व्रत एक विज्ञानपरक आध्यात्मिक पद्धति है, क्योंकि जप, मंत्र प्रयोग, सद्चिंतन, ध्यान, स्वाध्याय के साथ-साथ प्राकृतिक- चिकित्सा-विज्ञान के प्रमुख सिद्धान्तों का उसमें भली प्रकार समावेश रहता है। 
उपवास में पाचन यंत्रें को विश्राम व नवजीवन प्राप्त करने का अवसर मिलता है। पेट में भरी हुई अम्लता, दूषित वायु एवं विषाक्तता शरीर के विभिन्न अगणित रोगों का बड़ा कारण है। 
      अब रही उपवास की बात तो किसी धर्म ग्रंथ मे यह नही कहा गया कि आपको भूखा रहना है. उपवास करना मतलब अपने आप को किसी विशिष्ट चीज़ों के लिये कुछ घंटे, कुछ दिन तक दूर रखना.हमारे उदर को भी आराम करने का समय प्रदान करना.इससे हमारा पाचन संस्थान सुचारु रुप से चल सके.
    "लेकिन माँ!  लोग तो उपवास के नाम पर अनेकों ऐसी चीज़े ग्रहण करते है" 

 ये तो  उनका भोजन मे स्वाद का परिवर्तन है बेटा!! इसमे कई बार हम जरुरत से ज्यादा भी खा लेते है.
जैसे मैने तुम्हें बताया "विशिष्ट चीज़ों के लिये कुछ घंटे, दिन तक दूर रखना" इसमे हमारे संयम की परीक्षा है बेटी इससे  कई आवश्यकता पडने पर  कठिन परिस्थिति में  भी हम  अपने आप को संतुलित रख पाते है.मनुष्य जीवन मे अनेक उतार चढ़ाव आने पर भी हम परिस्थिति से लड़  सकते है.
साथ ही ये ध्यान रखना है कि किसी बीमार व्यक्ति ने धर्म के नाम पर तो उपवास बिल्कुल नही रखना चाहिये.

   अब रही तप कि बात तो यह उपवास और जप के उपर कि पायदान है इसमे अनेकों पहलू है जो साधारण मनुष्य के वश की बात नही है.

अमृता माँ कि बताई बातो से संतुष्ट होती है --कहती है माँ अगले वर्ष नवरात्रि  मे मैं मेरी सबसे प्रिय चीज़ होगी उसे ९ दिनो तक दूर रहकर उपवास करूगीं ---जैसे आइसक्रीम-हा हा हा
 माँ भी हँसते हुए उसकी बात का समर्थन करती है.

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

परम्पराए और वैज्ञानिक आधार- और वैज्ञानिक आधार---2(i)

परम्पराए और वैज्ञानिक आधार---२(i)
नवरात्र पूजन

"माँ!-माँ ! अरे दादी!-दादी!  की पुकार लगाते हुए अमृता  जैसे ही पूजा घर मे प्रवेश करती है. माँ और दादी नवरात्रि की पूजा कि तैयारी मे लगे हुए थे.दादी उसे हाथ-मुँह धो कर हमारी मदद के लिये आओ ऐसा आदेश देती है।
    "दादी जब देखो तब आप कुछ ना कुछ पूजा और परंपरा के नाम पर हमे काम के आदेश देती रहती हो."ओह! नो  दादी ! आप भी ना अमृता झल्लाते हुए बुरा सा मुँह बनाकर दादी से कहती है
"अरे चुपकर, पहले मेरी बात सुन " दादी का आदेशात्मक स्वर 

"अब आप ही बताओ नवरात्रि मे घट पूजा करने से क्या होगा,और ये जंवारे इस पर किसलिये बोये जाते है ? इससे क्या होगा , इससे  भला भगवान कैसे ख़ुश होगें?"

दादी अमृता के प्रश्नों कि बौंछारो से अनुत्तरित हो जाती है---सिर पर हाथ मारकर कहती है तुम आजकल के बच्चे कुछ सुनने को तैयार ही नही होते |
           लेकिन बताओ ना माँ , दादी ये सब क्यो करना होता है। तब माँ प्यार से उसे अपने पास बैठाती है कहती है ध्यान से सुनो ---------

            हमारे धर्म और संस्कृति मे हर चीज का अपना महत्व है । हम समयानुसार प्रकृति प्रदत्त हर चीज़ो को महत्व देते हुए पूजते है जो हमारे जीवन प्रवाह के लिये अनमोल है। उसी प्रकार इस "घट स्थापना" के पिछे भी एक वैज्ञानिक आधार है.

      बेटा इन दिनो खरीफ़ की फसल आ चुकी है.रबी के फसल कि तैयारियाँ चल रही है.इन खरीफ़ और रबी की फसल के बारे मे तुम्हें बाद मे बताऊंगी अभी तो "घट स्थापना" का महत्व सुनो---असल मे वर्षा ऋतु के बाद धरती मे मे जल का स्तर इस वक्त उच्चांक बिन्दू पर होता है। यह जल या पानी हमे अक्षय तृतीया (सधारणत: जेठ मास) तक चलना होता है .घट स्थापना के वक्त उस घट  मे भी पानी होता है वास्तव मे यह उस जल की भी पूजा है..घट शब्द का अर्थ हम ’उदर’ से भी लगा सकते है .धरती मे संचित पानी से हमे आगे का जीवन निर्वाह करना है,यही धरती का उदर रबी कि फ़सल तैयार करेगा,नवांकुर पैदा होगें नई फ़सल आएगी।

      यही पूजा प्रतीकात्मक है माँ के महत्व की.। माँ भी तो सृष्टि की  रचयीता है इसलिये नवरात्रि मे माँ के शक्ति की पूजा होती है और रही घट मे जंवारे बोने कि बात तो सुनो यह तो एक प्रकार का बीज परीक्षण है।आज तो अनेक उन्नत  विधियाँ है बीज परीक्षण की लेकिन दशकों पहले विज्ञान इतना उन्नत नही था।

  यही "आदि शक्ति" धरती माँ हमे अपने निर्वाह के लिये अन्न और पानी देगी ये उस माँ का नमन हे बेटा!
अब रही बात जप-तप और उपवास कि उसका वैज्ञानिक  कारण कल तुम्हें बताती हूँ

       अमृता आश्चर्य से माँ को देख रही थी और बडे ध्यान से सुन भी रही थी इस पूजा के महत्व को लेकिन एक प्रश्न से अभी भी अनुत्तरित थी  कि इतनी महत्वपूर्ण  पूजा करते हुए भी आज हम स्त्री शक्ति कि अवहेलना क्यों करते है। एक तरफ़ ९ दिनो तक माँ की पूजा करते है और दूसरी तरफ़ कन्या भ्रूण हत्या.

  काश: अमृता के मन मे उठते प्रश्नों का उत्तर उसकी माँ दे पाये.

नयना(आरती) कानिटकर

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

तोल -मोल

 दूध पिते वक्त शैतानी करते हुए मुनमुन के हाथ से थोड़ा स दूध ढलक जाता है .मुनमुन तिरछी निगाह से अपने दादी को देखती है ,दादी उसे गुस्से से देख रही थी.दादी को इस तरह  ढोलना, फैला ना   अस्तव्यस्त करन बिलकुल पसंद नही है.
      ओह!! दादी थोडासा दूध ढुलने पर आप कितनी नाराज़ हो रही हो? लाओ मैं साफ़ किये देती हूँ .किंतु दादी का मन बैचेन हो जाता है वो मु्नमुन  से कहती है जानती हो दूध अपने घर तक किस तरह पहुँचता है नही ना तो सुनो-----
       बच्चे वाली गाय या भैंस का दूध दुहकर हमारे घर आता है. उस वक्त जब उस दूध पर जन्मसिद्ध हक होता है उस गाय या भैंस के बच्चे का.उस बच्चे को उसके( माँ) के स्तनपान से रोका जाता है.सोचों माँ के अमृत समान दूध को हम उसके मुँह से छिनते है अपने पोषण के लिये क्या ये उस बच्चे के साथ अन्याय नही है?.
         गाय या भैंस का यह दूध इतना मूल्यवान है कि इसे पैसे से नही गिना जा सकता .कप भर,ग्लासभर या लिटर  ये तो बस तोल-मोल के व्यवहार है.माँ के प्रेम कि लंबाई चौड़ाई (आयतन) नही नापा जा सकता.तुम भी इस बात पर विचार करो क्या तुम्हारे माँ कि दी हुई कोई भी वस्तु तुम किसी से जल्दी से साझा कर पाती हो नही ना तो फिर ये तो उसका भोजन है फिर भी हम उससे छिन लेते है.
          फिर सिर्फ़ दूध हि क्या धरती माता द्वारा दी हुई कोई भी वस्तु धनधान्य,वनाऔषधि,फूल,सुगंध आदी का उपयोग हमे कृतज्ञता एवं समझदारी से करना चाहिये.
         दूध के बहाने दिये दादी के सौम्य उपदेश कितने हित कर व उपयोगी थे.जो धीरे-धीरे  मुनमुन के समझ मे आ गये.
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कुछ चीज़ो को पैसों से नही गिना जा सकता उसका तोल-मोल भी नही किया जा सकता.मुनमुन का व्यक्तित्व परिपक्व होना भी उतना हई अनमोल है.जितना दूध का व्यर्थ नष्ट ना होना.

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

खिड़की

खिड़की
र की एक अदद खिड़की से
झाँकती हूँ जब  बाहर कि ओर
सुंदर रम्य निसर्ग सौंदर्य
मन मे एक जगह बना लेता है
बाहर झाँकते ही पुर्णत्व प्राप्त होता है
इसीलिये तो मैं झाँकती हूँ
उस खिड़की कि चौखट से बाहर जब
देखती हूँ हरियाली चारों ओर
 रास्ते दूर-दूर तक कभी न खत्म होने वाले
न खत्म होने वाला उनका अस्तित्व
लेकिन मन अचानक
अस्तित्वहीन हो जाता है
वो खिड़की संकुचित लगने लगती है
चारों ओर से आने वाले तेज हवा के झोंके
बारिश के थपेडे
झेलने पड़ते है ना चाहते हुए भी
फिर मन की खिड़की कपकपाने लगती है
बंद करना चाहती हूँ उस खिड़की को
लेकिन उसमे दरवाज़े तो है हि नही
होता है सिर्फ एक अदद चौखट
फिर सहना पडता है उन थपेडों को
जीवन भर  निरंतर लगातार
फिर वो समय भी कटता है
भरता है मन के घाँव भी
सब झेल कर फिर भी लगता है
एक खिड़की तो हो ही
घर मे भी और मन की भी
जब चाहो बंद करो ,चाहो खोल दो
एकसार हो जाओ पुन:
रम्य निसर्ग के साथ भी
खूबसूरत जीवन के साथ भी


सोमवार, 10 सितंबर 2012

थोरियम घोटाला

          ६ सितंबर को सभी सामाजिक साइट एक अति उच्च तापमान कि खबर से लबालब थी वह है      ४८,०००००,००००००००(करीब ४८ लाख करोड रुपये) के घोटाले की.मेरे कार्यालयीन सहयोगी प्रणय ने मेरा ध्यान इस ओर आकर्षित किया था.
  यह पृथ्वी के इतिहास का सबसे बडा घोटाला कहा जा सकता है.
 हमारी UPA सरकार ने पुरी अवधि मे घोटाले के अलावा कुछ नही किया.यह UPA सरकार का अटूट घोटाला रिकार्ड है.
  सरकार इसे बडे हल्के ढंग से ले रही है अन्यथा उसका चुनावी स्वास्थ्य बिगड़ सकता है और मीडिया भी थोरियम घोटाले के बारे मे कुछ नही कह रहा यह बडा प्रश्नवाचक चिन्ह है.जबाब भी हम जानते है मीडिया को भव्य कमीशन मिलेगा अपना मुँह बंद रखने के लिये.
        साथ ही हमारी सोनिया जी अपनी अज्ञात बीमारी के चलते उपचार के लिये विदेश मे है.घोटाला बाहर आ गया तो उनका स्वास्थ्य ओर बिगड सकता है.
                                  आइये जानते है थोरियम क्या है.
भारत  परमाणु वैज्ञानिको के अनुसार थोरियम हमारे परमाणु कार्यक्रम के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण धातु है. इसने हमे परमाणु बिजली संयत्रो मे असीमित मात्रा मे लगने वाले यूरेनियम के आयात पर निर्भरता से मुक्त कर दिया है क्योंकि थोरियम समुद्र तट पर रेत से निकाला जाता है.
       स्टेट्समेन कि एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार Monazite जिससे थोरियम निकाला  जाता है कच्चे माल के निर्यात को नियंत्रित करने मे नाकाम रही  है बल्कि २.१ लाख टन निर्यात कि अनुमति दी है.रिपोर्ट के अनुसार Monazite  से निकले थोरियम कि अनुमानित किमत १०० डालर प्रति टन है.इस प्रकार सरकारी ख़ज़ाने(राज कोष) को ४८ लाख करोड रुपये का नुकसान परमाणु ईंधन कार्यक्रम के लिये होगा.
      Monazite क्या है?.यह सिर्फ़ रेत नही है बल्कि विशेष रुप से केरल,उड़ीसा,तमिलनाडु के समुद्री तटों से मिलने वाला ऐसा कच्चा उत्पाद है जिससे १०% थोरियम का उत्पादन हो सकता है.२००५ के बाद से इन तटों से अंधाधुंद खनन का काम चल रहा है.
      थोरियम को यूरेनियम के आइसोटोप मे बदला जाता है जो परमाणु रिएक्टर मे अंतहीन(multipale times) बिजली उत्पाद में प्रयोग किया जाता है.इसे बार-बार उपयोग मे लाया जा सकता है.
       भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के एक रिएक्टर  जो चेन्नई के निकट कलपक्कम में है थोरियम से संचालित होता है.कलपक्कम मे ५०० मेगावाट कि फास्ट ब्रिदर रिएक्टर पर भी काम चल रहा है
  थोरियम ईंधन  में मुख्य विशेषता यह भी है कि इससे रेडिओ विशाक्त अपशिष्ट भी कम निकलते है.
 हाल ही मे जुलाई मे परमाणु उर्जा के अध्यक्ष आर.के.सिन्हा ने कहाँ है कि परमाणु बिजली संयंत्र मे थोरियम को यूरेनियम क स्थान लेने मे थोड़ा समय लग सकता है लेकिन थोरियम संचालित रिएक्टर मॉडल का  का हमे आकलन करना चाहिये.
  भारतीय परमाणु  उर्जा कार्यक्रम के लिये यह बहुत महत्वपूर्ण है इसलिये भारत सरकार को इसके निर्यात की नीति के बारे मे बडी सुरक्षा से कदम उठाना चाहिये.
  १३७ साल पुराने समाचार पत्र स्टेट्समेन ने बडे पैमाने पर थोरियम घोटाले का पता लगाया है .तो क्या अब इसे सिर्फ महालेखा परीक्षक के कार्यालय मे छोड देना उचित होगा.
                  "आइये हम सब मिलकर इसके विरुद्ध आवाज़ उठाए"
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