अब बडी हो गई हो बेटी
सपने लेने लगे है विस्तार
माँ तुम्हे अब दे रही है
शुभकामनाओ से भरा
प्यार का आधारकी
तुमचढो हिमालय सा पहाड
पाओ अनन्त आकश सा विस्तार
समुद्र मे डुबो गहरे से
लेने पानी कि थाह
सीर्फ सतरंगी झूलो मे ना झूलो बेटी
रखो चक्षु खुले सदैव
लिखो तर्जनी से इतिहास
अनन्त विश्वास के साथ
अब तुम्हे तोडना है यह
मिथक कि
औरत की सफलता जिस्म से है
उसकी बुद्धी और परिश्रम से नही.
सपने लेने लगे है विस्तार
माँ तुम्हे अब दे रही है
शुभकामनाओ से भरा
प्यार का आधारकी
तुमचढो हिमालय सा पहाड
पाओ अनन्त आकश सा विस्तार
समुद्र मे डुबो गहरे से
लेने पानी कि थाह
सीर्फ सतरंगी झूलो मे ना झूलो बेटी
रखो चक्षु खुले सदैव
लिखो तर्जनी से इतिहास
अनन्त विश्वास के साथ
अब तुम्हे तोडना है यह
मिथक कि
औरत की सफलता जिस्म से है
उसकी बुद्धी और परिश्रम से नही.
अब तुम्हें तोडना है ये मिथक की औरत की सफलता जिस्म से है ,उसकी बुद्धि और परिश्रम से नहीं ---------बहुत खूब ,एक माँ द्वारा बेटी को यथार्थ से परिचित करवाने की सुन्दर कोशिश ....
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