रुकी हुई वो पथ पर
पदचाप के नाद से
प्रित मे बंधी सी वो
अनुराग था कही वो---
बयार की वो ठंढक
म्लान सी वो साँसे
कुहाँसे की सुबह में
कही दूर जा रही ----
वीरान मेरे घर मे
प्रश्नों का अंबार सा था
अंत रंग भेद गयी हो
जैसे स्याह रात मेरी--
अलभोर उस सुबह को
मौन,स्तब्ध सी मैं
आँगन मे एकाकी जैसे
तुलसी भी निस्तब्ध सी हो
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