बालकनी मे ठंड की गुनगुनी धूप मे आभा अपने पोती के लिये सुंदर सा, नाजुक
डिजाइन का स्वेटर बुन रही थी.तभी अचानक उसकि सलाई से एक फंदा निचे गीर जाता
है.वो डिजाइन की बुनावट को खराब किये बिना फन्दा उठाने की कोशिश मे लगी
है,आँखे भी साथ नही दे रही. तभी अचानक उसकी बहू रुची वहाँ आती है.
ओहो!!!!!! माँ क्यो आप तकलिफ़ उठाती रहती है इक स्वेटर के लिये ,बाजार में यूही सुंदर-सुंदर डिजाइन और वेरायटी के स्वेटर मिल जाते है.हम खरीद भी तो सकते है अपनी बेटी के लिये.
बुनाई करते-करते आभा के हाथ अचानक रुक जाते है.वह मन ही मन सोचती है बात तो ठिक है बेटा लेकिन हाथ से बने स्वेटर की अहमियत को तुम क्या जानो इसमे कितने प्यार और अपनेपन की गरमाहट है.इन फंदो की तरह ही तो हमने अपने रिश्ते बूने है मजबूत और सुंदर.एक फंदे के गिरने पर बुनावट बिघडने का डर ही पून: उस फंदे को सही जगह बिठाने की कोशिश है रिश्ते भी तो ऎसे ही बुने है हमने बिना अनदेखी किये.हमने तो इन फंदो की उधेड्बून से ही रिश्तों की बनावट को गुँथना सीखा है,गिरे फंदे को हौले से सहेजकर अपनी जगह बिठाया है बीना कोई गाँठ डाले.
रेडीमेड तो आज सब जगह है.शायद रिश्ते भी इस अंतरजाल की दुनिया मे रेडीमेड मिल जाय.
ओहो!!!!!! माँ क्यो आप तकलिफ़ उठाती रहती है इक स्वेटर के लिये ,बाजार में यूही सुंदर-सुंदर डिजाइन और वेरायटी के स्वेटर मिल जाते है.हम खरीद भी तो सकते है अपनी बेटी के लिये.
बुनाई करते-करते आभा के हाथ अचानक रुक जाते है.वह मन ही मन सोचती है बात तो ठिक है बेटा लेकिन हाथ से बने स्वेटर की अहमियत को तुम क्या जानो इसमे कितने प्यार और अपनेपन की गरमाहट है.इन फंदो की तरह ही तो हमने अपने रिश्ते बूने है मजबूत और सुंदर.एक फंदे के गिरने पर बुनावट बिघडने का डर ही पून: उस फंदे को सही जगह बिठाने की कोशिश है रिश्ते भी तो ऎसे ही बुने है हमने बिना अनदेखी किये.हमने तो इन फंदो की उधेड्बून से ही रिश्तों की बनावट को गुँथना सीखा है,गिरे फंदे को हौले से सहेजकर अपनी जगह बिठाया है बीना कोई गाँठ डाले.
रेडीमेड तो आज सब जगह है.शायद रिश्ते भी इस अंतरजाल की दुनिया मे रेडीमेड मिल जाय.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें