तुमने कहा !!माँ नई माला चाहिए
मैने दे दी मुट्ठी भर मोतियो से गुथी
तुमने कहा !! माँ ओढनी दे दो
मैने दे दी रंग-बिरंगी.
तुमने कहा!! मुझे छाँव चाहिये
मैने अपने आँचल मे ढक लिया
तुमने कहा!! मैं उड़ना चाहती हूँ
मैने सारा आकाश फैला दिया
तुम बडी खुश थी,तुम चाहती रही
मैं हमेशा देती रही.
अब तुम उन्मुक्त को उन्माद ना होने देना
तुम स्वतंत्र हो,पर स्वच्छंद ना होना
तुम श्रेष्ठ हो , सुंदर हो पर क्षणभंगुरता जानती हो
अब तुम बडी हो गयी हो
नयना (आरती) कानिटकर
२०/०१०/२०१४
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें