शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

असली मुखौटा

अनाथ आश्रम"सहेली" के नियमानुसार बालिग होते ही मुझे अब अपनी व्यवस्था बाहर देखनी थी मैने जूनियर कॉलेज तक की शिक्षा आश्रम मे रहते ही  पूरी कर ली थी.आश्रम के मैनेजर सज्जन सिंह से मुझे विमला देवी का पता थमा उनसे संपर्क करने को कहा था ।
डोरबेल बजाते ही एक उम्रदराज महिला ने दरवाज़ा खोला
"जी   मुझे  सज्जन सिंह जी ने आपके पास भेजा है मेरा नाम---"
मैं आगे कुछ कहती उसके पहले ही हाथ खिंचते हुए वो मुझे अंदर ले गयी थी । ये हे तुम्हारा कमरा और ज्यादा कुछ बोले बगैर दरवाज़ा बंद कर बाहर निकल गई थी । मुझे कुछ अजीब सा लगा उनका बर्ताव ।कुछ घबरा सी गई पर फिर आश्रम के कर्ताधर्ता सेठ हरिशचन्द्र जी को फोन लगाया 
"हलौ!! सेठ जी मैं सुहानी बोल रही हूँ.सज्जन सिंह जी ने मुझे विमला देवी का पता दिया था मगर यहाँ  कुछ---
मेरी बात पुरी होने से पहले ही सेठ जी बोल पडे--
"क्या इतने साल तोड़ी मुफ़्त की रोटी की किमत भी अदा नही करोगी."अब तुम्हें वही करना होगा जो मैं चाहूँगा "
सेठ  हरिशचन्द्र का असली  मुखौटा मेरे सामने आ चुका था ।
इतने सालो विपरीत  परिस्थितीयो से लड़ते हुए मैने भी कच्ची गोलियां नही खेली थी. वहा से भाग निकलने मे कामयाब हुई ।
आज समाचार पत्रो मे सेठ  हरिशचन्द्र का मुखौटा मुख्य पृष्ठ की खबर बन चुका है ।

नयना(आरती)कानिटकर

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