आज भी फूंलती है सांसे
धडकता है दिल जोरो से
जब देखती हूँ सरे आम
सिगरेट का कश लेना
या फिर गलबहिया डाले
चौराहे पर घूमना उसका
आँखो के आगे नाच उठता है
वो खौफ़नाकर मंजर
स्त्रीत्व के खंड-खंड होने का
नयना(आरती) कानिटकर ०३/१२/२०१५
धडकता है दिल जोरो से
जब देखती हूँ सरे आम
सिगरेट का कश लेना
या फिर गलबहिया डाले
चौराहे पर घूमना उसका
आँखो के आगे नाच उठता है
वो खौफ़नाकर मंजर
स्त्रीत्व के खंड-खंड होने का
नयना(आरती) कानिटकर ०३/१२/२०१५
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