शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

“द्रोपदी” --लघुकथा के परिंदे-२री ह्रदय का रक्त

"उलझने"--- विषय आधारित
“द्रोपदी”
मन की कसक बढ़ती ही जा रही थी। अपनी पुत्रवधु को इस परिस्थिती में डालकर उन्हें क्या मिला होगा। संतानवति होने के लिए अपने पति इच्छा से खुद उन्होने भिन्न-भिन्न पुरूषो से...।
तो क्या अपने आप को लज्जित होने से बचाने के लिए और उनपर कोई कटाक्ष ना हो तो जानबूझकर पंचपति वरण की बात की होगी। वो भी तो एक स्त्री हैं फिर ऐसा निर्णय क्यों कर लिया होगा।
द्रोपदी का मन भी कितना टूक-टूक हो गया होगा। मन में उमड़ते भावों और झरते ह्रदय के रक्त से द्रोपदी ने कितना कुछ सहा होगा। अनंतकाल से संचित स्त्री की मनोवेदना का अंत...।
एक झटके में विचारों के तंतुओ कि डोर काट डाली।  क्यों उलझी हूं मैं...।

नयना(आरती)कानिटकर

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