"अरे विचार! कहाँ चल दिये अचानक मुझे यू अकेला छोड़कर।" मीनी (कहानी) ने पूछा
"तुम बडी संकुचित और लघु हो गई हो आजकल. मैं कुछ दिन अपनी पुरानी सहेलियो के साथ मुक्त विचरना चाहता हूँ।"
"मतलब...."
"मीनी मे तुम्हें छोड़कर कही नही जा रहा,बस कुछ दिन मुक्ता, सरिता,कादम्बिनी से मिलने को उत्सुक हूँ। कई दिन बीत गये उनसे मिलकर। भावना मुझे ले जाने वाली है उनके पास।
"मगर फ़िर मेरा क्या?"
" अरे मीनी! मैं तो तुम्हारे साथ हूँ हरदम। तुम अभी तंज और विसंगति के पालन-पोषण... ऐसे मे मैं कुछ दिन के लिए...."
"रुको रुको विचार! ये दोनो ... सिर्फ़ मुझे दोष मत दो। सब लोग अब बडे समझदार हो गये है.लोगो के पास अब ज्यादा वक्त कहाँ होता है। वो देखो कितनी धुंध और कुहासा छाया है चारों ओर.
लोग ज्यादा दूर का देख भी नहीं पाते।
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
"तुम बडी संकुचित और लघु हो गई हो आजकल. मैं कुछ दिन अपनी पुरानी सहेलियो के साथ मुक्त विचरना चाहता हूँ।"
"मतलब...."
"मीनी मे तुम्हें छोड़कर कही नही जा रहा,बस कुछ दिन मुक्ता, सरिता,कादम्बिनी से मिलने को उत्सुक हूँ। कई दिन बीत गये उनसे मिलकर। भावना मुझे ले जाने वाली है उनके पास।
"मगर फ़िर मेरा क्या?"
" अरे मीनी! मैं तो तुम्हारे साथ हूँ हरदम। तुम अभी तंज और विसंगति के पालन-पोषण... ऐसे मे मैं कुछ दिन के लिए...."
"रुको रुको विचार! ये दोनो ... सिर्फ़ मुझे दोष मत दो। सब लोग अब बडे समझदार हो गये है.लोगो के पास अब ज्यादा वक्त कहाँ होता है। वो देखो कितनी धुंध और कुहासा छाया है चारों ओर.
लोग ज्यादा दूर का देख भी नहीं पाते।
नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
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