कितनी हुलस थी केशवा को पढने की मगर सुखी पडी धरती ने उसकी माँ का खून भी सुखा दिया था और दिमाग की सोच भी. .क्या करती कब तक आटे मे सूखे घास को पीसकर मिला-मिला उसे खिलाती। इन्द्र देवता की इतनी लंबी नाराज़गी कि स्कूल का हेंडपम्प भी २०-२५ हाथ मारने पर दो लौटा पानी दे पाता. दिल पर पत्थर रखकर आखिर शहर जाने वाली गाड़ी मे बैठा लौट आई थी कैलासो। कुछ तो दो वक्त खा ही लेगा. मेरे पेट मे पडे बल तो मैं सह लूँगी पर... जवान होता बेटा...
वक्त गुज़र रहा था एकाध बार खबर आई भी केशवा की, कि वो ठिक है, मगर मुंबई की भागदौड़ उसे रास नही आ रही.सब एक दूसरे को कुचलते आगे बढने की होड मे है मगर...।
सूरज पूरे ताप पर चल रहा था कि अचानक एक बादल का टुकड़ा उसे कुछ पल को उसे ढक आगे निकल गया.बडी आंस से वो बाहर आई तो क्या...।
"इसे पहचानो अम्मा..कही ये केशवा...जैसे ही सफ़ेद चादर हटाई..।"
धरती मे पडी सुखी दरार आँसुओ से सिंच गई।
नयना(आरती)कानिटकर
वक्त गुज़र रहा था एकाध बार खबर आई भी केशवा की, कि वो ठिक है, मगर मुंबई की भागदौड़ उसे रास नही आ रही.सब एक दूसरे को कुचलते आगे बढने की होड मे है मगर...।
सूरज पूरे ताप पर चल रहा था कि अचानक एक बादल का टुकड़ा उसे कुछ पल को उसे ढक आगे निकल गया.बडी आंस से वो बाहर आई तो क्या...।
"इसे पहचानो अम्मा..कही ये केशवा...जैसे ही सफ़ेद चादर हटाई..।"
धरती मे पडी सुखी दरार आँसुओ से सिंच गई।
नयना(आरती)कानिटकर
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