DIL SE
बहूत कुछ कहना हे ......... बिते सालो का, बचपन का ....... जो मन को भाया.... जो सीख दे गया
लेबल
अनुवाद
(7)
कुछ पत्र
(2)
कुछ मन का
(12)
मराठी कविता
(3)
मेरा परिचय
(1)
मेरी कविता
(65)
मेरी पसन्द की कविता
(1)
लघु कथा
(84)
लघुकथा
(17)
मंगलवार, 12 अप्रैल 2016
---उस-पार का रास्ता ---
ना स्वीकारा हो
राम ने सीता को
शाल्व ने अंबा को
स्वीकारा है सदा दायित्व
उसने अभिमान से
हारी नहीं है कभी
चाहे छली गई हो
भस्म हुए हो
स्वप्न उसके,
किंतु वो,
आज भी तलाश रही है
मंजिल से,
उस-पार का रास्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें