"त्राहीमाम! त्राहीमाम! तनिक आसमान से नीचे झांकिये प्रभु, मेरे मानव पुत्र पानी की बूँद-बूँद को तरस रहे है "--- धरा ने अपने दोनो हाथ फैला कर इन्द्र देवता के समक्ष गुहार लगाई.
"इसकी जिम्मेदार तुम हो धरा"--- इन्द्र ने कहा
"मैं ? वो कैसे प्रभु"--हाथ जोड़ते हुए धरा ने पूछा
"तुमने अपनी बेटी "प्रकृति" को अपने सानिध्य में, अपने आँचल मे फलने-फूलने देने की बजाय पुत्रो को खुली छूट दे दी उसका दोहन करने की. प्रकृति की हरी-भरी वादियों के पेड रूपी जड़ों से तुम्हारे अंदर जो जीवन का प्रवाह था उसे तुमने प्रगति के नाम पर खुद नष्ट किया है."
" बहुत बडी ग़लती हुई है प्रभु! अब इस पर कोई उपाय"
" बस एक उपाय है. ये जो डोर है मानव के हाथ में है पानी उलिचने के लिए उसका एक सिरा प्रकृति के हाथ मे थमा दो व दुसरा उनके गले मे डाल दो जिन्होने बाँध बनाने के नाम पर पैसा बना लिया.
नयना(आरती) कानिटकर
BHOPAL
"इसकी जिम्मेदार तुम हो धरा"--- इन्द्र ने कहा
"मैं ? वो कैसे प्रभु"--हाथ जोड़ते हुए धरा ने पूछा
"तुमने अपनी बेटी "प्रकृति" को अपने सानिध्य में, अपने आँचल मे फलने-फूलने देने की बजाय पुत्रो को खुली छूट दे दी उसका दोहन करने की. प्रकृति की हरी-भरी वादियों के पेड रूपी जड़ों से तुम्हारे अंदर जो जीवन का प्रवाह था उसे तुमने प्रगति के नाम पर खुद नष्ट किया है."
" बहुत बडी ग़लती हुई है प्रभु! अब इस पर कोई उपाय"
" बस एक उपाय है. ये जो डोर है मानव के हाथ में है पानी उलिचने के लिए उसका एक सिरा प्रकृति के हाथ मे थमा दो व दुसरा उनके गले मे डाल दो जिन्होने बाँध बनाने के नाम पर पैसा बना लिया.
नयना(आरती) कानिटकर
BHOPAL
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