गुरुवार, 30 मार्च 2017

"मूल्यांकन"-----


"मूल्यांकन"-----
भोर होने को थी। रजाई से हाथ निकाल पास ही में सोई बेटी के सर पे हाथ फेरा तो तकिया कुछ गीला महसूस हुआ। ओह! तो सारी रात बिटिया ...। बहुत नाराज़ हुई थी उससे कि ये कैसे सामाजिक मूल्य है माँ! जिन्हे हरदम आप को या मुझे चुकाना हैं, क्या कमी है मुझमें , पढ़ी लिखी हूँ, बहुत अच्छा कमाती हूँ । शक्ल-सूरत भी ठीक फिर कौनसी बात को लेकर मेरा अवमूल्यन किया जाता हैं । हर बार बस ना और ना, बस अब बहुत हो गया।
उसका सर सहलाते सहलाते वो खुद कब सो गई पता ही ना चला था।
लिहाफ को परे सार उठने ही वाली थी कि बिटिया ने हाथ थाम लिया।
“माँ! मेरा सारा  अवसाद धूल चुका हैं और अब निर्णय भी पक्का।”
“कैसा निर्णय बेटा”
“ मम्मा मैने सोच लिया है, मैं अनाथ बच्ची को गोद लेकर एकल अभिभावक बन उसका लालन-पालन कर उसे उच्च शिक्षा दूँगी।”
“समाज में तुम्हारी बात को स्थान मिलने में वक्त लगेगा बेटा।”
“तो क्या हुआ मेरी प्यारी मम्मा!, वो देखो बंद दरवाज़े के उस छोटे सी जगह सुराख से सूरज रोशनी फैला सकता है तो..
मेरे पास तो पूरा का पूरा आंसमा है रोशन होने.के लिए।
मौलिक व अप्रकाशित
 नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल 17/12/2016

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

परिवार

पिताजी ने थाम रखी है
डोर मजबूती से, कि
ना चल सके कोई टेढी चाल
माँ के पावन मन मे बसता है
हम बच्चों का धाम
दादा दादी से सीखा है
पंगत मे बैठकर साथ मे
निवालो का तोडना
उनकी संगत मे रिश्तो को जोडना
जिसे नापने का कोई
मिटर नही है
किसी ने ठुकराया भी तो
परिवार की छत्राछाया  ही है
जहाँ अस्तित्व महफ़ूज है

"नयना"

सोमवार, 9 जनवरी 2017

अपने अपने क्षितिज



आदरणिय मेरे सभी मित्र ,शुभचिंतक व मेरे परिवार के सदस्य,**अपने अपने क्षितिज**  का एक छोटा सा  हिस्सा मेरा भी.
कल ०८/०१/२०१७ मेरे जीवन का महत्पूर्ण दिवस था। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले-2017 में 
मेरे प्रथम साझा लघुकथा संकलन **अपने अपने क्षितिज** का विमोचन वनिका पब्लिकेशन्स द्वारा अनेक जाने माने लघुकथा एवं सहित्य के पुरोधाओं के करकमलों से किया गया।
 हालांकि मैं पारिवारिक कारणों से उपस्थित न हो सकी.
मेरे जीवन का अनमोल क्षण है।
जल्द ही  मेरा अपना एकल  संग्रह  " मेराअपना क्षितिज"  चुने    इस हेतु आप सभी के आशिर्वाद की अभिलाषी. 

 आप सभी का ह्रदयतल से आभार  खासकर " नया लेखन नये दस्तखत" के मंच का जहाँ से मैने अपने लघुकथाओ की रचना प्रारंभ की साथ ही लघुकथा- गागर मे सागर , लघुकथा के परिंदे समुह का तहेदिल से शुक्रिया जो मेरी रचनाओ को  तराशने मे सदा  मदद  करते है.

ओ.बी.ओ (http://www.openbooksonline.com/) के एड्मिन समूह  +Yograj Prabhakar 







शनिवार, 7 जनवरी 2017

निंबू चटनी ---हरी मिर्च का अचार:-

 निंबू चटनी

साफ़ दाग  रहित निंबू २२-२५( सधारण्त:) एक किलो लेकर धोकर सुखे कपडे से पोंछ कर अलग कर लिजीए. मसाले मे  मिर्च,सौफ़,जीरा, हिंग  व कुछ बेसिक मसाले जैसे बडी इलायची, लौंग, धनिया जैसे मसाले लेकर उन्हे हल्का सा भुनकर पींस लिजीए उसमे स्वादानुसार नमक और काला नमक मिलाईए.( अगर इस सब झंझट से बचना चाहते है तो नींबू चटनी अचार मसाला बाजार मे तैयार मिलता है २५०ग्राम ले आईए)

नींबु के टुकडे कर बीज निकाल लिजीए. लगभग १.५ किलो शक्कर इन टुकडों मे मिलाकर मिक्सर मे पीस लिजिए अब सारे मसाले  या रेडीमेड मसाला मिलाकर सात-आठ दिन ऐसे ही रहने दिजिए.
खास सावधानी :- नींबू-शक्कर को  पिसने के बाद  काँच या    प्लास्टिल बर्तन मे निकालकर मसाले मिलाए.
८-१० दिनों मे उपयोग मे ला सकते है.

हरी मिर्च का अचार:-

२५० ग्राम तिखी वाली हरीमिर्च को पहले गीले और फ़िर सुखे कपडे से पोंछ लिजिए. एक बाउल मे नमक,राई की दाल,  अन्त मे हल्दी की लेयर बनाईये थोडा मेथीदाना और हिंग तेल मे तलकर उसे बारिक पीस लिजीए वो उसमे मीला दिजिए अब अलग से एल कटोरी मूँगफ़ली दाना तेल थोडा हिंग डालकर धुआ उठने तक गरम किजिए व हल्दी वाली लेयर पर गोल घुमाते हुए दाल दिजिए. मिर्च के टुकडे (१ इंच या छोटे जैसे पसंद हो)  उसमे मिलाकर हिलाईए. १०-१२ नींबु का रस निकालकर( बीज हटा दे) मिलाइए .ठंडा होने पर काँ की बरनी मे भर दिजिए.८-१० दिन बाद अतिरिक्त तेल गरम कर ठंडा कर उसमे मिलाकर नीचे तक अच्छे से हिलाकर रख दिजिए.

ये तैयार है.सब
नोट:- मै सब चीजे अंदाजन लेती हूँ नाप-तौल का फ़ंडा नही है मेरे पास.  बस अनुभव

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

"माँ"

माँ का आचल पकड हुई बडी
ना जाने कब पैरो पर हुई खडी
याद वह धुंधलासा बचपन
संस्कार सीखाता उसका जीवन
मेरे अस्तित्व सृजन का आधार
मैं  बस सिर्फ़ तुम्हारा विस्तार
तेरी छाया में पलते देखे ऊँचे सपने
इंद्र्धनुषी रंग में जीवन को रंगते अपने
दुसरे के मन की हर लूँ पीर पराई
तुमसे जीवन की अमुल्य निधी पाई
मुझमें इतनी शक्ति भर दो माँ
हर चोट फूलों सी सह जाउँ
चलते उसूलो पर तुम्हारे
गौरव से जीवन सार्थक कर जाउँ

नयना(आरती)कानिटकर

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

"कर्मफ़ल"

 "कर्मफ़ल"

अपने सेवा काल में बहुत लूट खसोटकर यह फ़्लेटनुमा बहूमंजिला इमारत बडे शान से खड़ी की थी उन्होनेहर एक के लिए स्वतंत्र प्रकोष्ठ बनाकर। माता-पिता रोकते रहे किंतु   उनपर   लूटकर खाने का  स्वाद  जो हावी   गया  था। लक्ष्मी भी खूब बही,  बहते-बहते बेटे के हाथ पहुँची। उसने खूब लूटाई  और वो जाते-जाते सब कुछ लील गई
शराब के नशे मे लड़ाई-झगडे  मे बेटे ने घर को आग लगा दी। वे जैसे-तैसे बच कर बाहर निकले.घर बचाने की गुहार लगाते रहे मगर कोई आगे ना  आया
 सब आपस में कानाफ़ूसी करते रहे "आग भी  खुद ने ही लगाई होगी बीमा कि रकम हडपने के लिए"
अनेको   के पेट की जलती आग आज सुलग रही थी

नयना(आरती) कानिटकर


मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

"सृजन यात्रा "------ गागर मे सागर २६/०९/२०१६

 "सृजन यात्रा "
"जल्दी करो ! तुम्हारी ही माँ का वर्षश्राद्ध है, वृद्धाश्रम वाले राह देख रहे होंगे  इकलौती बेटी हो तुम उनकी।"।"  ---महेश  उतावला होते   हुए बोला
" बस करो महेश! जीते जी तो मेरी माँ को अपने साथ ना रख सके  जब देखो तब  पैसे के लिए माँ का अपमान,  उनके बांझ  होने का उपहास ... अब यह श्राद्ध का ढोंग मुझे दिखावा लगता है" वसुधा  ने बुझे मन से कहा
" अब फ़ालतू बातें बंद करो मैं साल भर से राह देख रहा हूँ इस दिन की.  कुछ तो समझा करो  यार सब चीजों भावनाओं मे बहकर पूरी नहीं होती  "महेश बोला
" चलो.."
वृद्धाश्रम मे पहुँचते ही  वसुधा  माँ  की फूलो का हार डली  तस्वीर  देखकर अपने आप को ना रोक पाई, आँसुओ की  धारा बह निकली। चुपचाप माँ के फ़ोटो के पास बैठ गई
महेश ने पूजा, भोजन आदी सभी कार्य तेजी से निपटा कर मैनेजर को आदेश देते हुए कहा-- वकिल साहब को बुलाओ और सासू माँ की इच्छा अनुसार अब उनकी वसियत भी  सबके सामने पढ दो
वकिल साहब ने सील बंद लिफ़ाफे मे रखा उनका इच्छापत्र पढते हुए कहा--
" मै सुशीला देवी अपनी व  अपनी  दत्तक बेटी की सहमति से यह इच्छापत्र निष्पादित करती हूँ  कि --"मेरी मृत्यु के पश्चात मेरी बची हुई सारी संपत्ति  का    पचास  प्रतिशत  इस आश्रम को दान दिया जाय तथा बचे  पचास प्रतिशत से अनाथ बच्चो के लिए एक रहवासी पाठशाला इसी परिसर के गैर उपयोगी पडे  पिछले खुले परिसर में खोलकर उसकी बिल्डिंग  के लिए उपयोग मे लाए जावे वसुधा उसी मे निवास कर उसका प्रबंधन करेगी "
विस्थापन से सृजन तक  की यात्रा  में वसुधा ने इमारत  की नींव का पहला पत्थर रख माँ को प्रणाम किया

नयना(आरती)कानिटकर
मौलिक एवं अप्रकाशित