शुक्रवार, 30 जून 2017

प्लेटोनिक लव

"प्लेटोनिक लव  "

"अरे! कहाँ खोई हो जी" गैलरी में खड़ी नीना के  कंधे पर हाथ रखते हुए उसने  कहा

"कुछ नहीं ! वो देखो सामने के मकान में इतनी रात हो जाने पर भी अंधेरा छाया है ना   घबराहट हो रही कि कुछ अनहोनी..."

"उफ़ !  ये व्यग्रता उसके लिए.  तुम तो मेरी समझ से परे हो!" उसने  झल्लाते हुए कहा

" तुमसे कुछ भी तो छिपा नही है" नीना ने परेशान थी.

" जानता हूँ,   पर वहाँ    बात-बात पर   तुम्हारी  बेइज्जती और छिछलेदारी होती है फ़िर भी?"

"-------"
" मगर वो तो अब तुमसे संवाद भी नहीं रखते फ़िर उनके घर मे अंधेरा हो या उजाला" क्या फर्क पडता है

"क्या करूँ अपने मन से उनके प्रति इज़्ज़त और स्नेह खत्म ही नहीं होता." नीना ने धीरे से कहा

" लो वो देखो  उस खिड़की की तरफ़  उजाला हो गया है वहाँ.

"हूँ"   नीना ने संतुष्टि की  गहरी साँस छोड़ी

" इससे क्या मिल गया तुम्हें"-- उसने रुष्ट होते हुए पूछा

"उनके होने का सबूत" नीना ने धीरे से मुस्काते हुए कहा

नयना(आरती) कानिटकर
२७/०६/२०१७--भोपाल









गुरुवार, 29 जून 2017

शब्द

ओह! शब्द
मिल ही नही रहे
स्याही खत्म हो जाए
तो भर सकती हूँ कलम में
किंतु...

फिर भी वो
टिकी हुई है कागज़ पर
इस उम्मीद में...

की
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे  मन से
 टपक पडेंगे  नयनो से

मूळ कविता:- आसावरी काकडे
अनुवाद/ भावानुवाद  प्रयास:- नयना(आरती) कानिटकर

गुरुवार, 30 मार्च 2017

"मूल्यांकन"-----


"मूल्यांकन"-----
भोर होने को थी। रजाई से हाथ निकाल पास ही में सोई बेटी के सर पे हाथ फेरा तो तकिया कुछ गीला महसूस हुआ। ओह! तो सारी रात बिटिया ...। बहुत नाराज़ हुई थी उससे कि ये कैसे सामाजिक मूल्य है माँ! जिन्हे हरदम आप को या मुझे चुकाना हैं, क्या कमी है मुझमें , पढ़ी लिखी हूँ, बहुत अच्छा कमाती हूँ । शक्ल-सूरत भी ठीक फिर कौनसी बात को लेकर मेरा अवमूल्यन किया जाता हैं । हर बार बस ना और ना, बस अब बहुत हो गया।
उसका सर सहलाते सहलाते वो खुद कब सो गई पता ही ना चला था।
लिहाफ को परे सार उठने ही वाली थी कि बिटिया ने हाथ थाम लिया।
“माँ! मेरा सारा  अवसाद धूल चुका हैं और अब निर्णय भी पक्का।”
“कैसा निर्णय बेटा”
“ मम्मा मैने सोच लिया है, मैं अनाथ बच्ची को गोद लेकर एकल अभिभावक बन उसका लालन-पालन कर उसे उच्च शिक्षा दूँगी।”
“समाज में तुम्हारी बात को स्थान मिलने में वक्त लगेगा बेटा।”
“तो क्या हुआ मेरी प्यारी मम्मा!, वो देखो बंद दरवाज़े के उस छोटे सी जगह सुराख से सूरज रोशनी फैला सकता है तो..
मेरे पास तो पूरा का पूरा आंसमा है रोशन होने.के लिए।
मौलिक व अप्रकाशित
 नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल 17/12/2016

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

परिवार

पिताजी ने थाम रखी है
डोर मजबूती से, कि
ना चल सके कोई टेढी चाल
माँ के पावन मन मे बसता है
हम बच्चों का धाम
दादा दादी से सीखा है
पंगत मे बैठकर साथ मे
निवालो का तोडना
उनकी संगत मे रिश्तो को जोडना
जिसे नापने का कोई
मिटर नही है
किसी ने ठुकराया भी तो
परिवार की छत्राछाया  ही है
जहाँ अस्तित्व महफ़ूज है

"नयना"

सोमवार, 9 जनवरी 2017

अपने अपने क्षितिज



आदरणिय मेरे सभी मित्र ,शुभचिंतक व मेरे परिवार के सदस्य,**अपने अपने क्षितिज**  का एक छोटा सा  हिस्सा मेरा भी.
कल ०८/०१/२०१७ मेरे जीवन का महत्पूर्ण दिवस था। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले-2017 में 
मेरे प्रथम साझा लघुकथा संकलन **अपने अपने क्षितिज** का विमोचन वनिका पब्लिकेशन्स द्वारा अनेक जाने माने लघुकथा एवं सहित्य के पुरोधाओं के करकमलों से किया गया।
 हालांकि मैं पारिवारिक कारणों से उपस्थित न हो सकी.
मेरे जीवन का अनमोल क्षण है।
जल्द ही  मेरा अपना एकल  संग्रह  " मेराअपना क्षितिज"  चुने    इस हेतु आप सभी के आशिर्वाद की अभिलाषी. 

 आप सभी का ह्रदयतल से आभार  खासकर " नया लेखन नये दस्तखत" के मंच का जहाँ से मैने अपने लघुकथाओ की रचना प्रारंभ की साथ ही लघुकथा- गागर मे सागर , लघुकथा के परिंदे समुह का तहेदिल से शुक्रिया जो मेरी रचनाओ को  तराशने मे सदा  मदद  करते है.

ओ.बी.ओ (http://www.openbooksonline.com/) के एड्मिन समूह  +Yograj Prabhakar 







शनिवार, 7 जनवरी 2017

निंबू चटनी ---हरी मिर्च का अचार:-

 निंबू चटनी

साफ़ दाग  रहित निंबू २२-२५( सधारण्त:) एक किलो लेकर धोकर सुखे कपडे से पोंछ कर अलग कर लिजीए. मसाले मे  मिर्च,सौफ़,जीरा, हिंग  व कुछ बेसिक मसाले जैसे बडी इलायची, लौंग, धनिया जैसे मसाले लेकर उन्हे हल्का सा भुनकर पींस लिजीए उसमे स्वादानुसार नमक और काला नमक मिलाईए.( अगर इस सब झंझट से बचना चाहते है तो नींबू चटनी अचार मसाला बाजार मे तैयार मिलता है २५०ग्राम ले आईए)

नींबु के टुकडे कर बीज निकाल लिजीए. लगभग १.५ किलो शक्कर इन टुकडों मे मिलाकर मिक्सर मे पीस लिजिए अब सारे मसाले  या रेडीमेड मसाला मिलाकर सात-आठ दिन ऐसे ही रहने दिजिए.
खास सावधानी :- नींबू-शक्कर को  पिसने के बाद  काँच या    प्लास्टिल बर्तन मे निकालकर मसाले मिलाए.
८-१० दिनों मे उपयोग मे ला सकते है.

हरी मिर्च का अचार:-

२५० ग्राम तिखी वाली हरीमिर्च को पहले गीले और फ़िर सुखे कपडे से पोंछ लिजिए. एक बाउल मे नमक,राई की दाल,  अन्त मे हल्दी की लेयर बनाईये थोडा मेथीदाना और हिंग तेल मे तलकर उसे बारिक पीस लिजीए वो उसमे मीला दिजिए अब अलग से एल कटोरी मूँगफ़ली दाना तेल थोडा हिंग डालकर धुआ उठने तक गरम किजिए व हल्दी वाली लेयर पर गोल घुमाते हुए दाल दिजिए. मिर्च के टुकडे (१ इंच या छोटे जैसे पसंद हो)  उसमे मिलाकर हिलाईए. १०-१२ नींबु का रस निकालकर( बीज हटा दे) मिलाइए .ठंडा होने पर काँ की बरनी मे भर दिजिए.८-१० दिन बाद अतिरिक्त तेल गरम कर ठंडा कर उसमे मिलाकर नीचे तक अच्छे से हिलाकर रख दिजिए.

ये तैयार है.सब
नोट:- मै सब चीजे अंदाजन लेती हूँ नाप-तौल का फ़ंडा नही है मेरे पास.  बस अनुभव

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

"माँ"

माँ का आचल पकड हुई बडी
ना जाने कब पैरो पर हुई खडी
याद वह धुंधलासा बचपन
संस्कार सीखाता उसका जीवन
मेरे अस्तित्व सृजन का आधार
मैं  बस सिर्फ़ तुम्हारा विस्तार
तेरी छाया में पलते देखे ऊँचे सपने
इंद्र्धनुषी रंग में जीवन को रंगते अपने
दुसरे के मन की हर लूँ पीर पराई
तुमसे जीवन की अमुल्य निधी पाई
मुझमें इतनी शक्ति भर दो माँ
हर चोट फूलों सी सह जाउँ
चलते उसूलो पर तुम्हारे
गौरव से जीवन सार्थक कर जाउँ

नयना(आरती)कानिटकर