जब झोलि मे आया एक और सितरा
उफनते सागर को मिल गया एक किनरा
तुमने मेरे बाग को हरा-भरा कर दिया
मेरे घर में फिर चिराग रौशन कर दिया
एहसास हो मेरे जीवन का, धडकन का
तुम अब सहरा बनो इस नदी के तट का
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-----
मैं अब मौन रहू अब तुम गाओ
फूले अमलतास जैसे खिल जाओ
नहीं आज तुम पर कोई पहरे
जीवन के दिन हो सुन्दर सुनहरे
तुम दीप कि तरह जगमगओ
तुम सृष्टी की सुरभि बन जओ
क्योकीं मेरा-
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-
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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
तुम मृगनयनि तुम सुर लहरी
तुम उल्लास भरी सी आई हो
भरे हुए सुनेपन मे तुम
मेरा अभिमान भरी सी आई हो
आज ह्रदय मे बस गयी हो
तुम असीम उन्माद लिये
ह्न्सने और ह्साने को
तुम हसती- हसती आई हो
तुम मे लय होकर अभिलाषा
एक बार सकार बनी
तुम सुख का संसार लिये
आज ह्रदय मे आई हो
बरस पडी हो मेरी धरा पे
तुम सहसा रस धार बनी
मंथर गति मे मेरे जीवन के
रंग भरने तुम आई हो
तुम क्या जानो मेरे मन में
कितने युग कि हे प्यास भरी
एक सहज सुन्दर साथ लिये
अमॄत बरसाने तुम आई हो
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
मन के किसी कोने मे ,
तुफ़ान घुमड रहा हे.
क्या थी क्या हू मै,
मन बारबार बैचेन कर रहा है.
कहने को बहुत कुछ मगर कह न सकी,
नहि जानती क्यो मगर होन सका ये.
नही जनाती कब तक .....
चलता रहेगा यही फ़साना
कभी कह ना पाऊगी
क्या मै दिल क तराना.
तुफ़ान घुमड रहा हे.
क्या थी क्या हू मै,
मन बारबार बैचेन कर रहा है.
कहने को बहुत कुछ मगर कह न सकी,
नहि जानती क्यो मगर होन सका ये.
नही जनाती कब तक .....
चलता रहेगा यही फ़साना
कभी कह ना पाऊगी
क्या मै दिल क तराना.
अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ
डालोअरे ओ रोशनी
वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,
ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को
जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों
को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा
लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ
सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने
जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो
अरे ओ रोशनी वालों ...
डालोअरे ओ रोशनी
वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,
ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को
जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों
को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा
लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ
सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने
जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो
अरे ओ रोशनी वालों ...
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
मेरी सहेलि अर्चना के ब्लोग से प्रेरना लेकर मै भी प्रयत्न कर रहि हू।अर्चना और मै कई सालो बाद फ़ेसबुक पर मिले।फिर हमने एक और सहेलि को खोज निकला जिसका नाम नीता है।बहुत नजदीकि रिश्ता रहा था हमलोगों मे.
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