शनिवार, 7 जनवरी 2017

निंबू चटनी ---हरी मिर्च का अचार:-

 निंबू चटनी

साफ़ दाग  रहित निंबू २२-२५( सधारण्त:) एक किलो लेकर धोकर सुखे कपडे से पोंछ कर अलग कर लिजीए. मसाले मे  मिर्च,सौफ़,जीरा, हिंग  व कुछ बेसिक मसाले जैसे बडी इलायची, लौंग, धनिया जैसे मसाले लेकर उन्हे हल्का सा भुनकर पींस लिजीए उसमे स्वादानुसार नमक और काला नमक मिलाईए.( अगर इस सब झंझट से बचना चाहते है तो नींबू चटनी अचार मसाला बाजार मे तैयार मिलता है २५०ग्राम ले आईए)

नींबु के टुकडे कर बीज निकाल लिजीए. लगभग १.५ किलो शक्कर इन टुकडों मे मिलाकर मिक्सर मे पीस लिजिए अब सारे मसाले  या रेडीमेड मसाला मिलाकर सात-आठ दिन ऐसे ही रहने दिजिए.
खास सावधानी :- नींबू-शक्कर को  पिसने के बाद  काँच या    प्लास्टिल बर्तन मे निकालकर मसाले मिलाए.
८-१० दिनों मे उपयोग मे ला सकते है.

हरी मिर्च का अचार:-

२५० ग्राम तिखी वाली हरीमिर्च को पहले गीले और फ़िर सुखे कपडे से पोंछ लिजिए. एक बाउल मे नमक,राई की दाल,  अन्त मे हल्दी की लेयर बनाईये थोडा मेथीदाना और हिंग तेल मे तलकर उसे बारिक पीस लिजीए वो उसमे मीला दिजिए अब अलग से एल कटोरी मूँगफ़ली दाना तेल थोडा हिंग डालकर धुआ उठने तक गरम किजिए व हल्दी वाली लेयर पर गोल घुमाते हुए दाल दिजिए. मिर्च के टुकडे (१ इंच या छोटे जैसे पसंद हो)  उसमे मिलाकर हिलाईए. १०-१२ नींबु का रस निकालकर( बीज हटा दे) मिलाइए .ठंडा होने पर काँ की बरनी मे भर दिजिए.८-१० दिन बाद अतिरिक्त तेल गरम कर ठंडा कर उसमे मिलाकर नीचे तक अच्छे से हिलाकर रख दिजिए.

ये तैयार है.सब
नोट:- मै सब चीजे अंदाजन लेती हूँ नाप-तौल का फ़ंडा नही है मेरे पास.  बस अनुभव

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

"माँ"

माँ का आचल पकड हुई बडी
ना जाने कब पैरो पर हुई खडी
याद वह धुंधलासा बचपन
संस्कार सीखाता उसका जीवन
मेरे अस्तित्व सृजन का आधार
मैं  बस सिर्फ़ तुम्हारा विस्तार
तेरी छाया में पलते देखे ऊँचे सपने
इंद्र्धनुषी रंग में जीवन को रंगते अपने
दुसरे के मन की हर लूँ पीर पराई
तुमसे जीवन की अमुल्य निधी पाई
मुझमें इतनी शक्ति भर दो माँ
हर चोट फूलों सी सह जाउँ
चलते उसूलो पर तुम्हारे
गौरव से जीवन सार्थक कर जाउँ

नयना(आरती)कानिटकर

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

"कर्मफ़ल"

 "कर्मफ़ल"

अपने सेवा काल में बहुत लूट खसोटकर यह फ़्लेटनुमा बहूमंजिला इमारत बडे शान से खड़ी की थी उन्होनेहर एक के लिए स्वतंत्र प्रकोष्ठ बनाकर। माता-पिता रोकते रहे किंतु   उनपर   लूटकर खाने का  स्वाद  जो हावी   गया  था। लक्ष्मी भी खूब बही,  बहते-बहते बेटे के हाथ पहुँची। उसने खूब लूटाई  और वो जाते-जाते सब कुछ लील गई
शराब के नशे मे लड़ाई-झगडे  मे बेटे ने घर को आग लगा दी। वे जैसे-तैसे बच कर बाहर निकले.घर बचाने की गुहार लगाते रहे मगर कोई आगे ना  आया
 सब आपस में कानाफ़ूसी करते रहे "आग भी  खुद ने ही लगाई होगी बीमा कि रकम हडपने के लिए"
अनेको   के पेट की जलती आग आज सुलग रही थी

नयना(आरती) कानिटकर


मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

"सृजन यात्रा "------ गागर मे सागर २६/०९/२०१६

 "सृजन यात्रा "
"जल्दी करो ! तुम्हारी ही माँ का वर्षश्राद्ध है, वृद्धाश्रम वाले राह देख रहे होंगे  इकलौती बेटी हो तुम उनकी।"।"  ---महेश  उतावला होते   हुए बोला
" बस करो महेश! जीते जी तो मेरी माँ को अपने साथ ना रख सके  जब देखो तब  पैसे के लिए माँ का अपमान,  उनके बांझ  होने का उपहास ... अब यह श्राद्ध का ढोंग मुझे दिखावा लगता है" वसुधा  ने बुझे मन से कहा
" अब फ़ालतू बातें बंद करो मैं साल भर से राह देख रहा हूँ इस दिन की.  कुछ तो समझा करो  यार सब चीजों भावनाओं मे बहकर पूरी नहीं होती  "महेश बोला
" चलो.."
वृद्धाश्रम मे पहुँचते ही  वसुधा  माँ  की फूलो का हार डली  तस्वीर  देखकर अपने आप को ना रोक पाई, आँसुओ की  धारा बह निकली। चुपचाप माँ के फ़ोटो के पास बैठ गई
महेश ने पूजा, भोजन आदी सभी कार्य तेजी से निपटा कर मैनेजर को आदेश देते हुए कहा-- वकिल साहब को बुलाओ और सासू माँ की इच्छा अनुसार अब उनकी वसियत भी  सबके सामने पढ दो
वकिल साहब ने सील बंद लिफ़ाफे मे रखा उनका इच्छापत्र पढते हुए कहा--
" मै सुशीला देवी अपनी व  अपनी  दत्तक बेटी की सहमति से यह इच्छापत्र निष्पादित करती हूँ  कि --"मेरी मृत्यु के पश्चात मेरी बची हुई सारी संपत्ति  का    पचास  प्रतिशत  इस आश्रम को दान दिया जाय तथा बचे  पचास प्रतिशत से अनाथ बच्चो के लिए एक रहवासी पाठशाला इसी परिसर के गैर उपयोगी पडे  पिछले खुले परिसर में खोलकर उसकी बिल्डिंग  के लिए उपयोग मे लाए जावे वसुधा उसी मे निवास कर उसका प्रबंधन करेगी "
विस्थापन से सृजन तक  की यात्रा  में वसुधा ने इमारत  की नींव का पहला पत्थर रख माँ को प्रणाम किया

नयना(आरती)कानिटकर
मौलिक एवं अप्रकाशित

रविवार, 28 अगस्त 2016

संक्रमण--लघुकथा

" हैलो.." ट्रीन-ट्रीन की घंटी बजते ही स्नेहा फोन  उठाते हुए बोली
" हैलो स्नेह! कैसी हो. बहुत व्यस्त हो क्या." उधर से बडे भैया की आवाज थी.
" अरे! भैया व्यस्त ही नही अस्तव्यस्त भी हूँ."
" क्यो क्या हुआ..."
"क्या बताऊँ  समझ नही पा रही. तुमने जो रिश्ता सुझाया था ना अपनी भांजी ले लिए कहती है प्रोफ़ाइल तो अच्छा है. मगर पाँच साल बडा है वो मेरे सामने अंकल लगेगा. आजकल तो एक साल मे ही गेनेरेशन गेप आ जाता है. अब तुम ही  बताओ मैं तो थक गई हूँ समझा कर भी और..."
" बहना! इधर भी यही हाल है. सोमेश को कोई भी लड़की दिखाओ कहता है पापा! मुझसे पाँच- छह साल छोटी हो वरना शादी के एकाध साल मे ही वो आंटी दिखने लगेगी."
"सच! बहुत मुश्किल है दादू इस पीढी को समझाना."
"कोई ना छोटी संक्रमण काल है ये हमारी पीढी का."
ना तो  पुराना सहेजा जा रहा और  ना ही नई पीढी के साथ सामंजस्य बैठ रहा.

मौलिक एंव अप्रकाशित

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

ठोस रिश्ता---"भावनिक विवाह"

"ठोस रिश्ता"
"अरे रश्मि! तुम यहाँ - तुमने चेन्नई कब शिफ़्ट किया, मुझे बताया भी नहीं और हा! तुम बडी सुंदर लग रही हो इतनी बडी बिंदी- मंगलसुत्र में. ये तुम कब से पहनने लगी . तुम तो इन सबके खिलाफ़ थी."
" हा! हा! सब एक साथ ही पूछ लेगी क्या. चल सामने की  शाप  मे एक-एक कप कॉफी  पीते है"
"अब बता" विभा ने कहा
" तू तो जानती है मैने अनिश के साथ प्रेम विवाह किया था. मैने तो उसे दिल मे बसाया था तो मैं इन सब चीजों का प्रदर्शन ढकोसला मानती थी.  उसने  भी कभी कुछ नहीं कहा वो मेरी हर बात का मान रखता था. जिंदगी बडी खुबसुरत चल रही थी कि अचानक एक दिन अनिश  गश खाकर गिर पडा. उसका निदान मस्तिष्क की रक्त वाहिनियो मे थक्के के रूप में हुआ. अनेक प्रयत्नो के बाद भी मैं उसे बचा ना सकी."
"तू भी कितनी बेगैरत निकली दूसरा विवाह भी कर लिया." विभा ने कुछ नाराज़गी से कहा
"नही रे! बहुत बुरा समय गुजरा इस बीच . तू तो जानती थी मेरे ससुराल वाले लोगो को मुझ पर देवर से शादी का दबाव...फिर मैं अपना तबादला लेकर यहाँ आ गई. लेकिन यहाँ भी भेडिये कम ना थे."
"फ़िर.." विभा ने पूछा
"फिर क्या मैने अनिश की आत्मा से विवाह रचा लिया और धारण करली ये भावनाएँ"

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२३/०८/२०१६

गुरुवार, 18 अगस्त 2016

अनमोल पल

कितना आनंद है ना
इन त्योहारों का
ले ही जाते है स्मृतियो में
याद आ रहा है वो
माँ का एक ही छिंट के थान* से
दोनो बहनों का एक समान
फ्राक सिलना और
छोटे भाई का वो झबला
कि हम ना करे तुलना
एक दूसरे से तेरे-मेरे अच्छे की
फिर छोटे-छोटे हाथों से
वो उसका उपहार
साटिन की चौडे पट्टे की रिबन का
दो चोटियों मे गूँथ ऐसे डोलते
मानो सारा आकाश हमे मिल गया हो
फ़ुदकते रहते सारा दिन
आंगन और ओसरी पर कि
कोई तो देखे हमारे भाई ने क्या दिया
बहूत छोटी-छोटी खुशियाँ थी
संग ढेर सा प्यार
कितने अनमोल थे वे पल

"नयना"

*थान--असीमित कपड़े की लंबाई
रक्षाबंधन की शुभकामनाऎ भाई