फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल क्षणों को जो
प्रति पल मेरे रक्त के साथ
संचारित होते रहते थे,मेरी
देह मे मस्तक से पग तक
फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल भावनाओं को
जो मेरे अंदर रोम-रोम मे
बसी हुई थी गंध के समान
काया मे नख से शीख तक
फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल रिश्तों को जो
जो मेरे साथ दाएँ-बाएँ चलते
भरते थे मुझ मे आत्मविश्वास
उन्नत मस्तक से दृढ़ कदमों तक
फिर से समेटना चाहती हूँ !!!!!!
उन अनमोल क्षणों को जो
प्रति पल मेरे रक्त के साथ
संचारित होते रहते थे,मेरी
देह मे मस्तक से पग तक
फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल भावनाओं को
जो मेरे अंदर रोम-रोम मे
बसी हुई थी गंध के समान
काया मे नख से शीख तक
फिर से समेटना चाहती हूँ मैं
उन अनमोल रिश्तों को जो
जो मेरे साथ दाएँ-बाएँ चलते
भरते थे मुझ मे आत्मविश्वास
उन्नत मस्तक से दृढ़ कदमों तक
फिर से समेटना चाहती हूँ !!!!!!
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