चित्र प्रतियोगिता के लिये
मैं तो बहना चाहती थी इस नदी की तरह.निर्मल,निश्चल कल-कल का नाद लिये.
आने वाले अनेक अवरोधो के साथ भी निर्बाध गती से.----
बहुत कुछ समा गया है उसमें मिट्टी ,रेत,कंकड
मैं तो रास्ता बदलकर भी तुम मे समाना चाहती हूँ-- सागर!!!!
मगर तुमने मुझे" बांध "दिया बंधन में
नयना (आरती) कानिटकर
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