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औंस की बूँद
फैली है मखमली दूब पर
पेडो के पत्ते-पत्ते पर
सर्दी की उस मनोहारी सुबह में
सूर्य किरण संग, बिखेर दिया था
इंद्रधनुष उसने
खुश नुमा हो गये ज़िंदग़ी के पल
नाच उठी रग-रग की बूँदे उसकी
दिनकर फिर तुमने
उत्तरायण कर लिया
मगर
अब डरने लगी हूँ
तुम्हारा यह ताप मुझे
हल्का कर देगा भाँप की तरह
और मेरा अस्तित्व नष्ट
नयना (आरती) कानिटकर
०८/०१/२०१५
फैली है मखमली दूब पर
पेडो के पत्ते-पत्ते पर
सर्दी की उस मनोहारी सुबह में
सूर्य किरण संग, बिखेर दिया था
इंद्रधनुष उसने
खुश नुमा हो गये ज़िंदग़ी के पल
नाच उठी रग-रग की बूँदे उसकी
दिनकर फिर तुमने
उत्तरायण कर लिया
मगर
अब डरने लगी हूँ
तुम्हारा यह ताप मुझे
हल्का कर देगा भाँप की तरह
और मेरा अस्तित्व नष्ट
नयना (आरती) कानिटकर
०८/०१/२०१५
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