---- नदी का छोर----( प्रतियोगिता के लिए )
आठवीं पास होते ही आ गई थी ब्याह कर इस गाँव में,आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
एक वर्ष बितते ना बितते तुम आ गई थी मेरी गोद मे और फिर मेरी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो तुम मे निहित होने लगे थे.
अब तुम मेरे जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते मैने तुम्हें स्कूल मे भर्ती करा दिया था.उमा रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल मे तुम भी जाने लगी थी.
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने आती थी मैं तुम्हें.तब तुम कागज़ की २-३ तरह की नाँव मुझसे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी,तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर हम गाँव छोड शहर आ बसे थे,मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये हमारे साथ.
उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो के सपनों ने कुलाचे भरे,तुम पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी.
मैं वापस लौट आयी तुम्हारे बाबा के पास अपने गाँव मे.
"अब सिकुडी नदी के इस पाट तक तुम्हारे बाबा संग रोज जाती हूँ तुम्हारा बचपन जीने,."
अब तुम्हारे बाबा रोज नाव बनाकर ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, माँ ये नाव हमे दो मगर????-----
कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.
नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह---------
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---- नदी का छोर----( प्रतियोगिता के लिए )
आठवीं पास होते ही वह आ गई थी. ब्याह कर इस गाँव में, उसकी आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
वर्ष बीता होगा बिटिया आ गई थी गोद में और फिर सारी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो उसमें निहित होने लगे थे.
अब वह उसके जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते उसे स्कूल मे भर्ती करा दिया था. उमा ,रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल में .
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने जाती. तब कागज़ की २-३ तरह की नाँव उससे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी, तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर गाँव छोड शहर आ बसे थे, मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये साथ में.उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो माँ-बेटी के सपनों ने कुलाचे भरे, बिटिया पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी
वह वापस लौट आयी उसके बाबा के पास अपने गाँव में.
अब भी सिकुडी नदी के इस पाट तक उसके बाबा रोज आते हैं, उसका बचपन जीने. कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.रोज नाव बनाकर भी ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, ये नाव हमे दो मगर ,????---
गाँव में अब ना कोइ युवा रहे ना ही बच्चे सब जा बसे शहर में और नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह-------
आठवीं पास होते ही आ गई थी ब्याह कर इस गाँव में,आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
एक वर्ष बितते ना बितते तुम आ गई थी मेरी गोद मे और फिर मेरी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो तुम मे निहित होने लगे थे.
अब तुम मेरे जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते मैने तुम्हें स्कूल मे भर्ती करा दिया था.उमा रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल मे तुम भी जाने लगी थी.
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने आती थी मैं तुम्हें.तब तुम कागज़ की २-३ तरह की नाँव मुझसे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी,तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर हम गाँव छोड शहर आ बसे थे,मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये हमारे साथ.
उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो के सपनों ने कुलाचे भरे,तुम पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी.
मैं वापस लौट आयी तुम्हारे बाबा के पास अपने गाँव मे.
"अब सिकुडी नदी के इस पाट तक तुम्हारे बाबा संग रोज जाती हूँ तुम्हारा बचपन जीने,."
अब तुम्हारे बाबा रोज नाव बनाकर ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, माँ ये नाव हमे दो मगर????-----
कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.
नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह---------
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---- नदी का छोर----( प्रतियोगिता के लिए )
आठवीं पास होते ही वह आ गई थी. ब्याह कर इस गाँव में, उसकी आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
वर्ष बीता होगा बिटिया आ गई थी गोद में और फिर सारी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो उसमें निहित होने लगे थे.
अब वह उसके जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते उसे स्कूल मे भर्ती करा दिया था. उमा ,रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल में .
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने जाती. तब कागज़ की २-३ तरह की नाँव उससे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी, तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर गाँव छोड शहर आ बसे थे, मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये साथ में.उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो माँ-बेटी के सपनों ने कुलाचे भरे, बिटिया पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी
वह वापस लौट आयी उसके बाबा के पास अपने गाँव में.
अब भी सिकुडी नदी के इस पाट तक उसके बाबा रोज आते हैं, उसका बचपन जीने. कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.रोज नाव बनाकर भी ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, ये नाव हमे दो मगर ,????---
गाँव में अब ना कोइ युवा रहे ना ही बच्चे सब जा बसे शहर में और नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह-------
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