आनंदधाम के हरे-भरे परिसर मे एक अन्य नयी तीन मंज़िली इमारत बनकर तैयार हो गयी थी। वहाँ के प्रबंधक कृष्णलाल ने बडे समर्पण भाव से पूरे कार्य की देखभाल कि थी। वे बडे तन-मन से इस कार्य को समर्पित थे।
छोटे सा किंतु गरिमामय समारोह आयोजित कर उस इमारत को जनता को समर्पित करने का आयोजन रखा गया था। शहर के कलेक्टर मुख्य अतिथि के रुप मे पधारे थे। सेठ कृष्ण मोहन ने इस कार्य के लिये आर्थिक मदद की थी वे पास की कुर्सी पर विराजमान थे। सभी औपचारिकता के बाद कलेक्टर साहब ने अपना उदबोधन प्रारंभ किया।
"आप इस परिसर की जिस इमारत को जनता को सौंप रहे है उसका पूरा-पूरा श्रेय श्री कृष्ण..."
तभी एक अर्दली उनके पास एक पर्ची थमा जाता है।
"क्षमा किजीए पूरा-पूरा श्रेय सेठ कृष्ण मोहन जी को जाता है जिनकी..."
तालियों के आवाज़ के बीच...
कृष्णलाल जी कि आँखो से दो बूंद पानी धरती माँ को ...
नयना(आरती)कानिटकर
छोटे सा किंतु गरिमामय समारोह आयोजित कर उस इमारत को जनता को समर्पित करने का आयोजन रखा गया था। शहर के कलेक्टर मुख्य अतिथि के रुप मे पधारे थे। सेठ कृष्ण मोहन ने इस कार्य के लिये आर्थिक मदद की थी वे पास की कुर्सी पर विराजमान थे। सभी औपचारिकता के बाद कलेक्टर साहब ने अपना उदबोधन प्रारंभ किया।
"आप इस परिसर की जिस इमारत को जनता को सौंप रहे है उसका पूरा-पूरा श्रेय श्री कृष्ण..."
तभी एक अर्दली उनके पास एक पर्ची थमा जाता है।
"क्षमा किजीए पूरा-पूरा श्रेय सेठ कृष्ण मोहन जी को जाता है जिनकी..."
तालियों के आवाज़ के बीच...
कृष्णलाल जी कि आँखो से दो बूंद पानी धरती माँ को ...
नयना(आरती)कानिटकर
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