शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

रफ़्तार विषय आधारित-अमरुद के पेड--लघुकथा के परिंदे

खुबसुरत सी चार मंजिला स्कुल इमारत के चारो ओर घने पेड थे. कुछ फूलो के,कुछ छायादर और कुछ फ़लो के भी. चारो ओर स्वच्छ सुरम्य वातावरण, कक्षा मे बच्चो को पढाते शिक्षक-शिक्षिकाओ की आवाज,कही-कही इक्का-दुक्का दिखते कर्मचारी.
माली बाबा के हाथ बगीचे की देखरेख मे लगे हुए, काम करते हुए वे अमरुद के पेडों के पास आ गए. पेड लदे पडे थे फलो से मौसम जो था अमरुद का. लेकिन दिमाग मे कुछ उथलपुथल मची थी.बस स्कुल की छुट्टी होते ही बच्चे आएगे धमाचौकडी मचाएगे अमरुद तोडने के लिए और फिर वो गालियाँ बकेगे. कितना मजा आयेगा.
तभी छुट्टी की घंटी बजी .माँ-पिता की बच्चो के जल्दी घर ले जाने की होड. बस से जाने वालो का मेला, चारो ओर बस अफ़रातफ़री.माली बाबा टकटकी लगाए देखते रहे...
पेडों पर अमरुद ज्यो के त्यो लगे रहे, छुट्टी पर गुजरते बच्चों के झुंड में से किसी ने उनकी तरफ़ देखा भी नहीं. वे चिन्तित हो उठे.
क्या! चिन्तन के लिये ये काफ़ी नहीं है.
नयना(आरती)कानिटकर


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