शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

"नाहर" लघुकथा के परिंदे- कल का छोकरा विषय आधारित ८ वी प्रस्तुती

झाबुआ के लोक निर्माण विभाग मे जब पाठक जी नियुक्ति लेकर आए तो थोड़ा विचलित थे  अशिक्षित आदिवासी लोगो का इलाक़ा  पता नहीं कैसे सामंजस्य बैठा पाएँगे| वो तो सारा दिन ऑफ़िस मे गुजार देंगे लेकिन श्रुति क्या करेगी |
 श्रुति आस-पास के मज़दूर बच्चों को इकट्ठा कर उन्हे कहाँनिया सुनाती कभी साफ़-सुथरा रहने का सलिका सिखाती तो कभी नाच-गाना सिखाती | बडे हिल-मिल गये थे बच्चे |
नाहरसिंह तो आँखो का तारा था उसका बडा शोख और चंचल बच्चा भोपाल स्थानान्तरण पर उसे भी साथ ले आए | वह घर-बाहर के काम के उसकी मदद करता साथ-साथ सरकारी स्कूल मे पढ़ाई भी |
 सभागार के माइक से  गुंजी आवाज़ और उनका विचार चक्र थम गया |
 प्रदेश का करोड़पति जीवनबिमा एजेंट ....
दोनो के बीच खड़ा नाहरसिंग ..तालियों की गड़गड़ाहट और कैमरा की फ़्लैश लाईट |

नयना(आरती)कानिटकर
भोपाल
२७-०२-२०१६


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