बुधवार, 20 अप्रैल 2016

"टी.आर.पी" लघुकथा के परिंदे ३ री

----"टी.आर.पी"----

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ये देखो सिद्धार्थ! चारो ओर सूखे की मार, प्यासी धरती, घरो में खाली बर्तन, बिन नहाये गंदले से बच्चे ये तस्वीरे देखो....
अरे ,कहाँ गए ! ये सब किसकी तस्वीर ले रहे हो तुम ....! "घुटनो तक साड़ी चढाए खुदाई करती मज़दूरन की, तो कही स्तनपात कराती आदिवासी खेतिहर मज़दूर, तो कही उघाडी पीठ के साथ रोटी थेपती महिला की ...कैमरा हटाओ ! "यह सब थोडे ही ना हमे कवरेज करना था। हमे सुखाग्रस्त ग्रामीण ठिकानों का सर्वे कर उस पर रिपोर्ट तैयार करनी है"
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तुमको इन सब के साथ रिपोर्ट तैयार करना होगा , वरना...!"
वरना क्या सिड...? "
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वरना मैं दूसरे चैनल वाले के साथ..."
 "तुम  भी ना बाज आओ इस केकडा प्रवत्ति से.....! "
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मुझे ताना मत दो रश्मि! अगर हमने इन तस्वीरों के साथ रिपोर्ट तैयार नही की तो चैनल का टी.आर.पी कैसे बढेगा और मेरा प्रमोशन तो इसी प्रोजेक्ट ...?"
"मेरे सपने तुम्हारे सपनों से ज्यादा ऊँचे है"
नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल

मौलिक एंव अप्रकाशित


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