शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021


 यह तो प्रकृति का नियम है विगत को छोड़ नए पर्ण धारण कर जब धरा मुस्काती है  तब सूर्य की  किरणें और चन्द्रमा की शीतल चांदनी उसके सौंदर्य में वृद्धि करती है।  2021 विदा होने को है , नयी  उम्मीदों  की आहट  द्वार खड़ी दस्तक दे रही है .  

सन २० और २१ कोरोना की महामारी के भय से गुजरा । निराशा और डर के बीच भी मानव ने नित  नए प्रयास किए उदासीनता को दूर भागने के । कही वो सफल हुआ कही असफल लेकिन  हर एक का जीवन पृथ्वी की तरह अपनी निश्चित धुरी पर घूमता रहा ।

आशा -निराशा के इन बादलों ने बहुत शोर मचाया , कभी  बहुत बरसे भी पर जीवन की चाह रोज नया सूरज लेकर उदित हुई । 

झंझावातो का जबरदस्त शोर उठा मेरे कुछ परिचित , कुछ महाविद्यालयीन जीवन के सहपाठी अचानक उम्र के इस मध्य दौर में अपने अपने परिवार को निसहाय छोड़ इस दुनिया से कूच कर गए, अपने पीछे छोड़ गए बस यादे! यादें!

साथ ही इन दिनों सोशल मिडिया ने  अपने वक्त के ४०-४२ साल पुराने स्कुल के  साथियों भी मिलवाया जिनका  साथ  सीधा -सच्चा ,अपनत्व भरा  होता है कोई स्वार्थ नहीं  :) . बचपन के साथी  तो अनमोल धरोहर से होते है।

इन कठिन परिस्थितियों के बीच युवा पीढ़ी ने आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा , भौतिकता के प्रति मोह कम हुआ । परिवार ,समाज दैहिक रूप से तो दूर हुआ परन्तु भावनाओ के साथ करीब भी आया । प्रतियोगिता, जलन ईर्ष्या को दूर भगा अपनो ने अपनो से भी मिलवाया ।

आकाश में उड़ने वाला मानव धरातल पर लौटने लगा ।क्षणिक आवेग ने कुछ को लील लिया तो कुछ पुनरुथान का संकल्प ले उठ खड़े हुए , आगे बढे ।

योग और आयुर्वेद तो भारत की आत्मा थे लेकिन इसका महत्त्व अब-तक गिने -चुने लोग ही समझ पाए थे .धीरे धीरे लोग योग,ध्यान की और बढ़ने लगे ,इसे अपनी दैनिक नियमावली में शामिल कर लिया ।

बस! ऐसी ही अनेक विषम परिस्थति के आकलन के दौरान अनुभव लेते हुए मैंने अपने लेखन को सकारात्मकता की ओर मोड़ा ।

पिछले पूरे एक वर्ष मैंने सिर्फ *प्रेम* पर लिखा जो चाहे जीया नहीं गया था पर शब्दों से महसूस किया जिससे दिमागी तरंगे भी सकारात्मक और खुशहाल महसूस  करे . उसपर भी आंधी  तूफ़ान उठे . मेरे इनबॉक्स में आकर कई  लोगो ने वैयक्तिक होकर प्रश्न पूछे । उनका जवाब देने की   जगह मैंने उन्हें अनदेखा/ दुर्लक्षित  किया क्योकि *प्रेम* को किसी परिभाषा में बांधना मेरे लिए संभव नहीं है । हाँ! मैं  प्रेम में थी जिंदगी के और हूँ भी  स्नेह, प्रेम ,लगाव के बिना मानव जीवन अधूरा है फिर भी पता नहीं ... मानव हर बात  को  गलत दिशा क्यों पहले पकड़ता है .खैर 

राजनीती में तो गुट होते ही है लेखक समाज भी इससे अछूता नहीं है यह जानती थी पर इसी दौरान  ये खुलकर दिखाई दिया . 

वैयक्तिक और सामाजिक अनुभवों का पिटारा इतना भर गया है  कि मन मोह-माया से अलग अपनी धून में रमने लगा है . बस ! अब नए साल को अनुभव करना है..  

"स्वयं  से स्वयं  के साक्षात्कार के साथ "

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© नयना (आरती ) कानिटकर



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