शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

मागचे 3-4 दिवस मी "अरुणा ढेरे"ह्यांचे पुस्तक वाचते आहे अर्ध्यावाटेवर त्यातिल काहि वाक्य मझ्या मनात रुजली त्यांना मी कवितेत गुंफण्याचा प्रयत्न केला आहे.बघा आवडतो का?

शब्दांचा अलिकडे थांबणॆ आता शक्य नाही
पण तडफडून शब्दा जवळ जाता  ही येत नाही,
शब्द कधी खूप ताठर, कधी माऊ पणाने भरलेले
पुष्कळ यातना शब्दा मध्ये घर करुन बसलेले
क्षणा मागे दूर लांबवर शब्दांचा वास असतो
आणि आलेले सगळे क्षण आपण शब्दांत भरतो
स्वतःला आपण अज्ञात तरी आपल्या कडे पहातो
ते मर्मस्पर्शी अनुभव ,झगडण,कोसळ्णे शब्दांत भरतो
स्वतः मधले अभाव,अधिक पाझरण ही दूःख असते
सगळ्याची सांगड घालून लिहणारे शब्द म्हण्जे छळ असते
फूला भोवती काँटे खूप
पण सुगंधि फूलाचा वास दे
सरले ढग सगळे जरी
मंद पावसाचा मृदु वास दे
तुझा प्रेमळ साथ दे
उजाडत्या पोर्णिमे मधे
हातात मझ्या हात दे
मावळ्ता चंद्र असला तरी
जीवना चा नाद दे
तुझा प्रेमळ साथ दे
कवितेच्या वाटेवर मला
तुझा आनंदा चा साथ दे

सोमवार, 16 जनवरी 2012

कविता

लिहि म्हंटल की कविता कशी लिहायची,
शब्दांना काना,मात्रा,वेलांटी कशी द्यायची,
प्रेम कविता लिहीण्यास स्वप्नात तरी प्रेम करावे लागते,
विनोदी कविता करयला मनात हास्य अणावे लागते,
विरह गीत लिहीण्या साठी विरह जगायलाच पाहिजे,
मनात असलेल्या क्षणाला सार्थक शब्दच आला पाहिजे,
प्रयत्नांतरी विडंबन काही सगळ्यांना जमत नाही,
विडंबन करायला तर रेष ही कगदावर उमटत नाही,
कविता करायला मनात तसे भाव जगावे लागतात,
आणि तेव्हा कुठे शब्द -म्हणी कवितेत गुंफतात

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

ठंड के वो दिन

           वातावरण के तापमान ने करवट बदलना शुरू कर दिया है.हेमन्त ऋतु दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है.गुलाबी सर्दी के साथ वातावरण खुशनुमा हो चुका है.कम्बल, लिहाफ,ऊनी वस्त्र संदूक से बाहर आ चुके है.घरो मे विभिन्न प्रकार के लड्डुओ की खुशबू कभी-कभार ही महसूस हो रही है,क्योंकी बच्चे अब इन पौष्टिक लड्डुओ पर कम  रूझान रखते है,उन्हे तो पिज्जा और पस्ता मे ज्यद आनंद आता है.वो मेथी के लड्डू ,गाजार का हलवा कही खो गये है,मोटापे का डर दिखाकर.बच्चे ये समझने को तैयार हई नहिं कि मेथी के लड्डू ठंड मे हड्डीयों मे कितनी ताकत भरते है जो साल भर हड्डीयों मे ग्रीसिंग (machin ke lubrication) का काम करती है
                          सबसे बुरा हाल तो ऊन के गोले और सलाइयों का है जो चूपचाप एक कोने मे पडे हुऎ है.रेडिमेड के जमाने ने नानी-दादी और माँ से उनकी रचनात्मक खूबियाँ छिन ली है.मुझे याद हे ठंड के आते ही १०-१२-१४ नंबर की सलाइयों कि आपसी कशमकश ,ऊन की लच्छीओ क गोले मे बदलना और फिर सलाइयों से ज्यामितीय य फूल पत्ती के डिजाइन बनाना.इक दूसरे से मानो होड सी लगी रहती थी कि कौन सबसे अच्छा  और नया(unique) डिजाइन तैयार करता है.बुनाई करते-करते दसो बार उसकि नप्ती करना ये एहसास दिलाता था कि बुनने वाला कितनी प्यार से उसके लिये बुनाई कर रह है.वाकई स्वेटर कि वो गर्माहट अब महसूस हि नहीं होती.सलाइयों कि वो आपसी टकराहट जो प्यार कि गर्मी पैदा करती थी कहि खो गई है.वो प्यार का एहसास हम खो चुके हैं.

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

जीवन

नमन शब्दग्राम!
मीनाक्षी मोहन 'मीता' जी के आह्वान पर 💐💐💐

पंक्ति_आधारित_काव्य_सृजन



जीवन मृत्यु का यह खेल अजीब,
इस खेल से न कोई बच पाया है.
जीवन वैभव के उन्माद को अब तक
मृत्यु  सन्मुख  नतमस्तक ही पाया है
इसलिए तो----
जीवन सिर्फ इक सीप नहीं है
इसके हर मोती को चुन लो,
गिर कर उठकर बारबार तुम,
जीवन का रस पूरा चख लो,
बूंद-बूंद जोड मधु जीवन का
इस अमृत घट को प्यार से पीलो
खुशियों का ढेर भर अंजुरी में,
सुंदर जीवन का रस पीलो
मदमस्त हो जीवन जीलो

मदमस्त हो जीवन जीलो

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

तुमको दे दूँ

दिल कहता हैशब्द ह्र्दय में,
उन्हें समेटू
तुमको दे दूँ
होठों तक आते शब्दो को
भावो मे भरकर
तुमको दे दूँ
कहूँ मन की अभिलाषा
सुनहले स्वप्न में
तुमको दे दूँ
आओ उजियारे की एक किरण संग
खूला हुआ पथ
तुमको दे दूँ

बुधवार, 20 जुलाई 2011

तुम कौन हो?


तूम कौन हो?
पूर्व से होता अरुणोदय या
पश्चिम की रजनी विषादमय
तूम कौन हो?
अधरो को छूता अमृत प्याला या
मानस की विषमय मधुशाला
तूम कौन हो?
पक्षियो के कल-कल करते स्वर या
रक्षक पर भक्षक के उठते ज्वर
तूम कौन हो?
समुद्र के लहरो की हलचल या
उजाड  प्यासा मरुस्थल
तूम कौन हो?
धूंधली दिशा और छाता कुहासा या
सर-सर करती हवा की आशा
तूम कौन हो?
दूःखो का उन्मत निर्माण या
अमरता नापते अपने पाद
तूम कौन हो?