सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

सच्चा व्रत

साप्ताहिक शीर्षक आधारित लघु कथा
---सच्चा व्रत---

कमला आज काम आयी भी तो बडी अनमनी सी थी। साथ मे बेटी को भी लाई थ।
हमेशा चकर-चकर करने वाली वो और उसकी बेटी आज चुपचाप काम निपटा रही थी.
"क्या हुआ कमला।"
"कुछ ना।"
"अरे!!! तो आज तू इतनी चुप कैसे।."
अचानक सिसकियाँ उभरी वातावरण में।
"हुआ क्या ये तो बता"
"फूली ने मुझसे स्कूल फ़िस के पैसे माँगे,मैने उसे इंकार किया कि अगले हफ़्ते दे दूँगी।"
"अभी नवरात्रि के व्रत चल रहे है,तो मैने कुछ पैसे जोड रखे थे ,कन्याभोज के लिये।"
  "लेकिन वो मुआ मुझसे पैसे छिन शराब पी आया और फिर वही तमाशा.......।"
"अब मैने सोच लिया बाई जी बहुत हो गया ये व्रत और कन्याभोज।"
"अपनी फूली को पढा  मैं उसे अपने पैरो पर खड़ा करूँगीं।"
.

शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

व्रत

 ज्योत्सना -अपनी बचपन की सहेली को अचानक सामने पाकर--
 "अरे!! निशा तुम यहाँ कैसे?"
"ओह जोतू!! तू उउउ -- खुशी के मारे चिल्ला पड़ती है।
 "निशा! चल देख वो सामने ही घर है मेरा . घर चल के बात करेंगे.हाथ खिचते ज्योत्सना उसे घर ले आयी।
 "अरे जोतू!! पहले ये बता तेरे बेटा-बेटी कैसे है।
"चल!! तुझे अपनी बेटी से मिलवती हूँ---वो घर मे ही एक प्रशिक्षण वर्ग चलाती है.
" वो देख!! -ये जो सफ़ेद परिधान मे जो तलवार बाजी सिखा रही है ना वो मेरी बेटी "ज्योतिका"।
"ओह!!"
"असल मे गाँव मे हुए एक आतंकवादी हमले मे अपने भाई,संबंधियों,परिचितों को खोने के बाद,इसने अपने व आस पडौस के गाँवों की स्त्रीयो  को आत्मरक्षा के गुर सिखाने का बिडा उठाया है।"
               "अब यही इसका व्रत है।"

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

तीसरी पीढ़ी

गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बैठे अनुपमा के आँखो के आगे विगत काल चलचित्र सा चल रहा था।
आदित्य २ वर्ष पूर्व ही सेना से अवकाश प्राप्त कर हैद्राबाद मे  बस गये थे।
अनुपमा ने बी.एस.एफ.मे पदस्थ अपने  बेटे मंगेश का विवाह उससे प्रेम करने वाली मधुरा के साथ बडी धुमधाम से किया था। यथा नाम तथा स्वभाव वाली मधुरा जल्दी ही घर मे घुलमिल गई।
हनिमून से लौटकर मंगेश-मधुरा मद्रास जहाँ सामुद्रिक सीमा पर मंगेश तैनात था ,लौट गये थे।
जिन्दगी हँसी-खुशी मे बितते हुए  ना जाने कब ३ साल गुजर गये,कि एक  दिन अचानक बदहवास सी अवस्था मे  मधुरा का फोन आया था। मंगेश के लापता होने की खबर के साथ।
वे भी आनन-फानन मे मद्रास पहुँच गये थे।
   एक माह के अथक प्रयास के बाद भी मंगेश के जीवन की  नाउम्मीदि की खबर उसकी कुछ चिजें लौटाकर सेना ने घटनाक्रम की इतिश्री कर ली थी।
   बुझे दुखी  मन से मधुरा के साथ वे लौट आए थे.मधुरा भी अभी सदमे से उबरी नही थी.की---
आज अचानक गश खाकर गिर पडी.जल्दी-जल्दी वे उसे अस्पताल ले आई।.अन्दर चिकित्सक उसका परिक्षण कर रहे थे।तभी---
   "बधाई हो अनुपमा जी आप दादी बनने वाली है।."   वे एकदम वर्तमान मे लौट आयी।
देश सेवा के लिये  तीसरी पीढ़ी के रुप मे एक नव-जीवन पुन: अंकुरित हो पल्लवित हो रहा है।

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

मातृत्व-संतुष्टि


"ले उठ गेंदा काहे खाली-पिली चिपटाए बैठी है ,छाती मे दूध होवेगो तो रिसेगो  नी .चल दो-दो घूँट चाय बना ,हलक से उतरेगी तो थोड़ा चैन आवेगो"
मज़दूरी से लौटते ही गेंदा सत्तु को अपनी छाती से चिपटाए हरिया के पास ही बैठी है
गेंदा सत्तु को उतार चाय बनाने उठ जाती हैसत्तु भी रोते-रोते घुटने के बल उसके पिछे चल पडता है,तभी सत्तु के धक्के से देगची उलट उसमे रखा दूध उलट जाता है
"हरिया चिल्ला पडता है अरे!! चुप कर नासमिटा घर आने पर भी चैन ना लेने देवे"
"काहे चिखे हरिया वो भी तो भूखों है"
अरे!! सतुआ कहते कहते अचानक थम जाती है--सत्तु कुतुहल से निचे झुक मेमने को दूध पिते देख रहा है
"नासमिटी कितनी बार कहा है मेमना बाँध के रख--"
"अरे देख तो हरिया !! बकरी जिनावर है तो के हुओ,उको चेहरो देख अपना बच्चा ने दूध पिलावती वा कितनी संतुष्ट लागे,वा भी तो एक माँ है"
दोनो काली चाय ही सुडक-सुडक कर पीने लगते है
नयना(आरती)कानिटकर
०८/१०/२०१५

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2015

भविष्य

.मुख्य अध्यापक शाला के काम से गाँव से बाहर है.अचानक स्कूल के निरीक्षण की खबर आती है
रामसिंह  जो संस्कृत के अध्यापक है.वे जल्दी -जल्दी  बच्चों को इकठ्ठा कर सारी कक्षाए साफ़ करने को कहते है.
अधिकारी के लिये चाय- मिठाई का इंतजाम भी हो जाता है.
"मन ही मन सोचते  है अच्छा मौका हाथ लगा है मेरे लिये अपनी धाक जमाने का."
"बच्चों ये अधिकारी आज हमारे स्कूल की जाँच करने आए  है.आप लोगो से जो भी पूछे उनके सही-सही जवाब देना."
"हा!!!!!! गुरु जी बच्चे चिल्ला पडते है."
अधिकारी स्कूल का अलग-अलग कक्षाओं मे घूमकरनिरीक्षण करते है-और अंत मे कक्षा ६ मे प्रवेश करते है.
"नमस्ते बच्चों!!!"
अच्छा ये बताओ पृथ्वी का आकार कैसा होता है" --बच्चे चुप
 "बच्चे--- सर पृथ्वी का आकार चौकोर है."
अधिकारी भौचक्के से पिछे देखते है तो रामसिंह चौकोर  पेपर वेट को गोल घुमाकर बच्चों को इशारा कर रहे है."
."अच्छा अब संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ बताओ " आप ही बताइए राम सिहं
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्"
"सर विद्या ने विनय को पत्र देते हुए कहा---"
रामसिंह पसीने से  तरबतर---"किसने बनया आप को संस्कृत का शिक्षक"
"सर वो अखिलेश जी की सिफारिश---"कहते हुए  हाथ जोड रामसिंग थर-थर काँप रहे है
इस अधजल गगरी से क्या होगा हमारे बच्चों का भविष्य.?
चिंता मे अधिकारी गाड़ी स्टार्ट कर निकल जाते है.

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

प्रत्युत्तर

 रात के ११ बज रहे थे बेटा अभी भी घर नहीं लौटा था.
पति देव थे की न्यूज़ चैनल लगा आराम से सोेफे पर पसरे हुए थे.
घर के दालान मे चहल कदमी करते मेरे मन मे असंख्य अच्छे-बुरे विचारों का कोलाहल मचा हुआ था.
"तुम अंदर चलो रात के ११ बज रहे है,बेटा अब इतना छोटा भी नही रहा कि---"
"तभी तो ज्यादा डरती हूँ छोटा होता तो दो थप्पड जड पूछती देर से आने कि वजह--"
तभी मुख्य द्वार पर कार रुकने की आवाज़ आती है
"तुम हटो मैं देखता हूँ आज उसे"
"दीपक !! ये कोई वक्त हुआ तुम्हारे आने का? और ये तुम्हारे मुँह से बदबू--"
हटिये पापा!! हफ़्ते भर के काम का तनाव कम करने के लिये एक दिन मैने पी ली तो?
आप की तरह हर -------तेजी से अपने कमरे की और चला गया

मौलिक और अप्रकाशित

----विडम्‍बना---

रोजी के सिलसिले मे वह दिनापुर से बाहर दिल्ली जा बसा है.आज अचानक माँ के गंभीर बीमारी की खबर से कलकत्ता पहुँचता है . जल्द से जल्द माँ के पास पहुँचना चाहता है जो अस्पताल मे भर्ती है .
सारा शहर सुबह की मुसलाधार बारिश से अस्त-व्यस्त हुआ पडा है,चहू और पानी ही पानी और बदबू.
एक आटो रिक्शा को आवाज़ लगाता है मगर वह इतने पानी मे रिक्शा चलाने से मना कर देता है.
तभी उसकी नजर हाथ गाड़ी वाले पर जाती है.
"अरे दद्दु क्या मुझे अस्पताल ले चलोगे जरा जल्दी मे हुं" ,कहते हुए रिक्शा पर सवार हो गया.
" दद्दु जरा जल्दी-जल्दी चलो -"
" दद्दु!!!! मगर ये शहर के इतने बुरे हाल पहली ही बारिश मे कैसे????", वह उनसे पूछता है
"अब क्या बताए बाबू , नये जमाने के नये लोग घर से ख़रीददारी करने निकलेगे मगर झोला नही लाएगे.सारा सामान प्लास्टिक की थैलियो मे भर लेगे और फिर उन्हे यू ही कचरे के साथ फेक देगे.वे सारी उड-उड कर नलियों मे जमा हो जाती है.अब सफाई कामगार भी नही मिलते. पानी की निकासी कैसे हो?"
"सच बात है दद्दा!! अंधानुकरण की दौड़ मे हमने प्लास्टिक अपनाया वरना हमारी जूट और कपड़े की थैलियो का क्या मुकाबला?"
यह कहते हुए वह प्लास्टिक कि पन्नी से खाने का सामान निकाल कर खाने लगा और पन्नी को यू ही रास्ते पर फेक दिया .
व्यंग्य मिश्रित मुस्कान के साथ दद्दू ने सोचा," विडम्‍बना . ." और वे रिक्शा खिचते रहे.

नयना(आरती) कानिटकर