मंगलवार, 24 नवंबर 2015

इबादत -२

---- इबादत ---(प्रतियोगिता के लिये) -गागर मे सागर "सच्ची उपासना"
आँख खुलते ही गुलाब का फूल हाथों मे थमाते दादी ने कहा!!!--"जन्मदिन की शुभकामनाएँ और ढेरों आशीष,आज का दिन तुम्हारे जीवन मे अनेक सौगाते लाए एकदम अलग सा दिन हो तुम्हारा
।"
वाह पापा!!! आप मेरे लिये क्या उपहार लाये है और हमारा बर्थ डे केक कहाँ  है?
रेखा ने नयी  गुलाबी फ़्राक थमाते हुए कहा--रुकिये सलोनी!!!  पहले दैनिक कार्यो से निवृत हो स्नान कीजिए फिर हम सबसे पहले उस ईश्वर को धन्यवाद करने मंदिर जाएंगे जिसने इतना सुंदर तोहफ़ा तुम्हारे रुप मे हमे दिया है.
"वाह कितनी सुंदर फ़्राक."
"चलिये पापा,माँ,दादी मैं तैयार होकर आ गई हूँ
। जल्दी केक लाईये।"
"रुको बेटा !! आज पहले  केक  नही कटेगा। पहले गाड़ी मे बैठो हमे कही जाना है  फिर--"
ओह!! दादी अब मैं बड़ी हो गई हूँ पूरे ६ साल की फिर भी आप ठिक से कुछ नही बता रहे मुझे।"
गाड़ी एक अनाथ-विकलांग बच्चों के स्कूल के आगे रुकते ही--बच्चे द्वार तक आकर अपनी-अपनी क्षमता से गाने लगते है---"हैप्पी बर्थ डे टू यू--हैप्पी बर्थ डे टू यू".
सलोनी आनंद विभोर हो उठती है. मगर" पापा,दादी आप तो किसी मंदिर जाने की बात कर रहे थे."
बेटा!! इन बच्चों मे ही सच्चा ईश्वर वास है.इन बच्चों के चेहरे की खुशी को देखो। नियती ने इनसे कुछ ना कुछ छिन लिया,लेकिन हमारे जैसे परिपूर्ण लोग इन्हे ख़ुशियाँ बाटकर उस सर्वशक्तिमान की सच्ची उपासना (इबादत) कर सकते है
सलोनी -तोहफ़े से भरे बक्से से सुंदर-सुंदर उपहार निकाल उन्हे बाँटने लगती है


नयना(आरती) कानिटकर

2)गाड़ी एक अनाथ-विकलांग बच्चों के स्कूल के आगे रुकते ही--बच्चे हाथों मे फूल थामे द्वार तक आकर अपनी-अपनी क्षमता से गाने लगते है---"हैप्पी बर्थ डे टू यू--हैप्पी बर्थ डे टू यू".
सलोनी आनंद विभोर हो उठती है. " पापा,दादी !! मगर आप मेरे जन्मदिन के उपलक्ष्य मे  किसी मंदिर जाने की बात कर रहे थे."
ओह!! अब समझी  दादी !!!आपने सुबह आँख खुलते ही गुलाब का फूल हाथों मे थमाते हुए इसीलिए कहा!!!--"जन्मदिन की शुभकामनाएँ और ढेरों आशीष,आज का दिन तुम्हारे जीवन मे अनेक सौगाते लाए और एकदम अलग सा दिन हो तुम्हारा।"जी  हाँ बेटा!! इन बच्चों मे ही सच्चा ईश्वर वास है.इन बच्चों के चेहरे की खुशी को देखो। नियती ने इनसे कुछ ना कुछ छिन लिया,लेकिन हमारे जैसे परिपूर्ण लोग इन्हे ख़ुशियाँ बाटकर उस सर्वशक्तिमान की सच्ची उपासना (इबादत) कर सकते है सलोनी -पापा के लाए तोहफ़े से भरे बक्से से सुंदर-सुंदर उपहार निकाल उन्हे बाँटने लगती है
नयना(आरती) कानिटकर

सोमवार, 23 नवंबर 2015

इबादत-३

  पुलिस के कडे सुरक्षा घेरे  के बीच जब  उन्हे न्यायालय  परिसर मे लाया गया तो बिरादरी और आम लोगो की  नज़रों से बचने  के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई।

        उसे अपने किये का  जरा भी रंज नही था
 सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था।तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
   सुबह के धुंदलके   मे  उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस होता है.।"
वह हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर देती है।
  वह चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड जाता है और अंत में------
अब्बा  को  भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई   शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर  अल्लाह की सच्ची इबादत की है।


शनिवार, 21 नवंबर 2015

"आभा

---"जीवन रेल"--- रुपा माँ बनने वाली थी.मै भी बहूत खुश था मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी-
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
बिफ़र पडी थी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
मैं भी समझती हूँ महेश!!! क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया था। फिर बीना बताए चुपचाप वह घर छोड़ गई थी
मेरी हर शाम रुपा के इंतजार मे पटरियो पर गुजरने लगी.सोचता ये लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा।
पता नही मैं बाप बना हूँ -- इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी--
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या ----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी।
हमारे जीवन मे "आभा" बिखेरने को आतुर।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

जीवन रेल

"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
  गाँव के प्रायमरी स्कूल की शिक्षिका "रुपा" माँ की बुजुर्गियत का ख्याल रख   चुपचाप ताने सुनती रहती।
मै भी उसे समझाता रहता --हर दिन एक से नहीं होते धिरज रखो हमारी जिंदगी की रेल भी पटरी पर दौडेगी. तभी --
"सुनो!!! महेश मैं माँ बनने वाली हूँ। "
मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी--
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
बिफ़र पडी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
  मैं भी समझती हूँ महेश!!! बुज़ुर्ग का सम्मान करना किंतु क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया और फिर बीना बताए चुपचाप उसने घर छोड़ दिया।
 पूरा एक अरसा गुज़र गया  बहुत खोजा था उसे। आखिर हार कर रोज शाम को पटरी पर आ बैठता रुपा के आने के इंतजार मे हर गाड़ी को तकता सोचता रहता था कि  हमारी पटरियों के बीच की दूरी आखिर इतनी लंबी क्यो है? ये  लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा। पता नही मैं बेटे का बाप बना हूँ या कि बेटी का इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी---
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ  ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या तुम्हारे साथ हमारा बच्चा----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी-जो अब हमारे जीवन मे  "आभा" बिखेरने को आतुर है।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

मातृत्व

लाखों जतन किये  डाक्टर,पूजा-पाठ ,उपवास जप-तप-मंत्र  ,हर वक्त कलेजे से एक हूक सी उठती रहती जो उसके स्त्रीत्व पर वार करती मगर ईश्वर को उसकी झोली भरना मंज़ूर ना हुआ
  हार कर  रिश्तेदारों के बच्चों मे ही उसने अपना मातृत्व ढूंढने की कोशिश कीउन्हे अपने पास रखा ,अपने आंचल तले ममता की छांव दी,अपनापन दिया,पढ़ाया-लिखाया लेकिन ममता की डोर उन्हे भी बांधने मे कामयाब ना हो सकी वे भी उड गये पंछी  की तरह  आकाश मे उँची उड़ान भरने जो फिर लौटकर घोसले मे कभी ना आये
  सोचते-सोचते अखबार पढते हुए  अचानक उसकी नजर आज के वर्गिकृत विज्ञापन के पेज पर अटक गई
            "एक कामकाजी दंपत्ति को अपना बच्चा सम्हालने के लिये आवश्यकता है एक ऐसी महिला की जो    बच्चे को नानी-दादी सा प्यार दे सके."
  अपनो को तो बहुत देख चूकि थी. अब निश्चय किया पराये के काम आने का.शायद अब उसके कलेजे को ठंडक मिल जाये
 उठकर तुरंत दिये  गए मोबाईल नंबर पर उँगलिया घुमा दी.
नयना(आरती) कानिटकर


मंगलवार, 17 नवंबर 2015

मेरा वक्त

वेनू मेरी अंतरग सहेली,हम दोनो एक साथ पली-बढी और हमारा सौभाग्य देखिये ब्याहकर आई भी तो एक ही शहर मे .
अचानक सुबह सुबह मोबाईल घंटी  सुन नींद मे  हडबडाहट  मे  उठाते उधर से आवाज़ आयी
"नेहा!! जितनी जल्दी हो सके नेशनल अस्पताल पहूँचो मैं विराज को लेकर जा रही हूँ शायद---"
"वेनू!! धैर्य रखो बस मैं पहुँच रही हूँ."
"नीरज उठो!!! आज तुम" ख़ुशी "को स्कुल पहुँचा देना .मैं अस्पताल जा रही हूँ , विराज को शायद हार्ट अटैक आया है मैं वहाँ पहुँच कर फोन करती हूँ.
  वेनू गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर ही मिल गई,उसे धैर्य बंधाया,सब ठिक होगा तभी--
"सब कुछ खत्म हो गया हमे उपचार का अवसर ही नहीं मिला."
अस्पताल की सारी औपचारिकताओ के साथ-साथ उनकी अंतिम यात्रा तक नीरज ने मेरा पूरा साथ निभाया.
मैं विचरो में खोयी वेनू के पास थी.जानती थी पेशेवर वित्तीय सलाहकार ,
अपने हिसाब से चलने वाले उसकी किसी सलाह या निर्णय पर हमेशा कटाक्ष करने वाले विराज ने जिस्मानी संबंधों के अलावा कभी उसे वह स्थान नहीं दिया जिसकी वह हक़दार थी.सौम्य स्वभाव की पढने मे रुचि रखने वाली वेनू ने कभी शिकायत नहीं की और अपने आप को लेखन-पाठन से जोड लिया.
"वेनू!!! कैसे दिन काटोगी अब ,जब इच्छा हो चली आना.
"चिंता ना करो नेहा!! जब हसरतो के दिन गुज़र गये ये वक्त भी कट जाएगा जीवन का सच्चा अर्थ तो अब समझ आया मुझे."

"अब मेरी क़िताबें, लेखन-पाठन और सबसे बडा मेरा वक्त मेरी मुट्ठी मे है."

नयना (आरती) कानिटकर

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

"हौसला"


"हौसला"
किसना के संग ब्याह कर जब भानपुर आई तो मैने कोई ज्यादा सपने नही देखे थे। वैसे भी खेतीहर मज़दूर की बेटी दो जून रोटी और दो जोड़ी कपड़े से ज्यादा क्या सोचती। मैं भी किसना के साथ खेतो मे जी - तोड़ मेहनत करती, लेकिन इन्द्र देवता की नाराज़गी के चलते हम ज्यादा काश्त ना निकाल पाते | और साहुकार का कर्ज चढ़ गया सो अलग।
थक हार कर किसना ने माई - बाबू को मना लिया मुंबई जा कर मजदूरी के लिए। मैं भी आ गई थी उसके संग। सारा-सारा दिन ईट-सिमेंट ढोते-ढोते थके हुए दो कौर हलक में उतार बस फ़ुटपाथ पर ही सो जाते हर रात !
अधिक मेहनत से जब किसना की तबियत गडबडाने लगी तो हम वापस गाँव लौट आए। दवा-दारु मे बैल भी चुक गए।
गाँव आते ही साहुकार भी रोज चक्कर काटने लगा वसूली के लिये। पैसा ना देने पर मुझे उठाने की बात ...
अब तो सुबह रोटी खाओ तो शाम के निवाले की मुश्किल हम पर साया बन कर पीछा कर रही थी - भला कहाँ से कर्ज चूकते ?
इस वर्ष एक काश्त निकलने तक तो इंतजार .... पर साहुकार के कानों जू ना रेंगती !!
तभी एक दिन भोर होते ही अचानक हरिया चिल्लाते हुए आया "... भौजी .. भौजी ... किसना ने खेत में आम के पेड पर ...." .. मेरा किसना लड़ाई हार गया था .. अब मैं किसे बताऊँ कि ..?
तीन दिन का सोग (शोक) मनाने के बाद मैने हिम्मत बटोरी और माई से कहा - " .. माई बैल के लिए हमे किसी के आगे हाथ नही फैलाना है, चलो .. हम खुद खेत जोत लेगे, अब तो बुआई के दिन भी नज़दीक है "
मेरे कोख मे भी एक बीज ... आँगन में एक पौधा जन्म ले रहा था ... उस दिन मैने फ़ैसला किया मैं हार नही मानूँगी .. मै लडूंगी नियती से .. आख़िरी दम तक ।

नयना(आरती)कानिटकर