बुधवार, 16 अगस्त 2017

शब्द --महा उत्सव ओबीओ१२/०८/२०१७

"शब्द"-------

आज अचानक
मिला था अपना एक पिटारा
जो सहेजा था वर्षो से
अलमारी के एक कोने में
जिसे  दिल और दिमाग ने
दफ़्ना दिया था  बहुत पहले
खोलते की हौले से
कलम  ने भी  भी झाका
एक हूक सी उठी
दिल के किसी कोने में
एक बदबूदार झोंका
प्रवेश कर गया नथुनो में
 सड गये थे वे सारें शब्द
जो लिखा करते थे प्यार की भाषा
लेकिन तभी
दिल के  दूसरे कोने में
एक उम्मीद जागी
कि फिर
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे  मन से
टपक पडेंगे  नयनों से
बनाने को एक दस्तावेज

मौलिक एवं अप्रकाशित

रविवार, 13 अगस्त 2017

ओ.बी.ओ-महाउत्सव

एक गीत प्रयास----

गूँज उठी  पावस  की धुन      
सर-सर-सर, सर-सर-सर

आसंमा से आंगन में उतरी
छिटक-छिटक बरखा बौछार
चहूँ फैला माटी की खूशबू
संग थिरक रही है डार-डार
गूँज उठी  पावस  की धुन    
सर-सर-सर, सर-सर-सर  

उमगते अंकुर धरा खोलकर
हवा में उठी पत्तो की करतल
बादल रच रहे गीत मल्हार
हर्षित मन से  झुमता ताल
 गूँज उठी  पावस  की धुन    
सर-सर-सर, सर-सर-सर    

गरजते बादल, बरखा की भोर
बूँदों  की  रिमझिम  रिमझिम
पपिहे की पीहू, कोयल का शोर
आस मिलन जुगनू सी टिमटिम
गूँज उठी  पावस  की धुन    
सर-सर-सर, सर-सर-सर

मौलिक व अप्रकाशित
     
   

बुधवार, 9 अगस्त 2017

बंधन ---विषय आधारित- नयलेखन नये दस्तखत

"पलट वार"-----

श्रुती जब से रक्षा बंधन के लिए घर पे आई थी देख रही थी भाई कुछ गुमसुम सा है. हरदम तंग करने वाला, चोटी पकड़ कर खींचने वाला, मोटी-मोटी कहकर चिढाने वाला भाई कही खो सा गया हैं.
" माँ! ये श्रेयु को क्या हो  गया  है. जब से आयी हूँ बस धौक (चरण स्पर्श) देकर अपने कमरे मे घुस गया हैं."--प्रवास के बाद तरोताजा होकर रसोई में प्रवेश करते हुए उसने पूछा
" बेटा पता नहीं क्या हुआ है. शायद नौकरी को लेकर परेशान हो ,काम पसंद ना हो.इससे..."
" तो छोड दे .दूसरी देख ले. अच्छा पढा लिखा है, काबिल है."
" तेरे बाबा भी बहुत बार कह चुके. अब तो चिकित्सक की सलाह पर भी अमल कर रहे." माँ ने उदास लहज़े में कहा
जैसे ही वह भाई के कमरे में गई देखा वो बिस्तर पर निढाल सा पडा था. आँखें बंद थी. दवाई का पैकेट हाथ में ही था. मोबाईल के  ब्लिंक होते ही उसकी नजर उस पर पडी. उठाकर देखा तो व्हाट्स एप पर ..."अरे! ये तो मेरी सहेली रीना हैं". उसी गली मे चार घर छोड़कर ही तो रहती है वह. एक ही झटके में सारे मेसेजेस पढ डाले. ओह तो ये बात है भाई के बीमारी की....जिसे उसने अपनी छोटी बहन  के समान प्यार दिया वो आज इस पवित्र रिश्ते को ठुकरा कर  ब्लैकमेल करने पर तुली है. उसकी नज़रों मे वो सारा वाक़या घूम गया जब उसने  रीना  से  उसके भाई शरद में अपने पसंदगी का  इज़हार किया था तब .... और फिर जबरन  उसने शरद के हाथ में राखी बंधवा दी थी.
" माँ में अभी आई कहकर तेजी से रीना के घर से जबरदस्ती  खिंचते कर लाते हुए श्रेयस के कमरे मे पहुँच गई.
"  श्रुती !छोड  ये क्या कर रही है कितना कस के पकडी  है मेरी कलाई, क्या चाहती है..." उसने  हाथ छुड़ाने का भरसक प्रयत्न करते हुए कहा
शरद तो मुझे चाहता था प्यार का रिश्ता था हमारा मगर श्रेयस उसने तो सदा तुम्हें छोटी बहन सा प्यार दिया और  तुमने भी अपने मतलब के वक्त  भाई- भाई कहकर अपने काम निकाल लिए.
" ये लो! बांधों भाई की कलाई पर  अब से, तुम से उसकी  रक्षा की  मेरी बारी "
नयना(आरती)कानिटकर
०९/०८/२०१७


शुक्रवार, 30 जून 2017

प्लेटोनिक लव

"प्लेटोनिक लव  "

"अरे! कहाँ खोई हो जी" गैलरी में खड़ी नीना के  कंधे पर हाथ रखते हुए उसने  कहा

"कुछ नहीं ! वो देखो सामने के मकान में इतनी रात हो जाने पर भी अंधेरा छाया है ना   घबराहट हो रही कि कुछ अनहोनी..."

"उफ़ !  ये व्यग्रता उसके लिए.  तुम तो मेरी समझ से परे हो!" उसने  झल्लाते हुए कहा

" तुमसे कुछ भी तो छिपा नही है" नीना ने परेशान थी.

" जानता हूँ,   पर वहाँ    बात-बात पर   तुम्हारी  बेइज्जती और छिछलेदारी होती है फ़िर भी?"

"-------"
" मगर वो तो अब तुमसे संवाद भी नहीं रखते फ़िर उनके घर मे अंधेरा हो या उजाला" क्या फर्क पडता है

"क्या करूँ अपने मन से उनके प्रति इज़्ज़त और स्नेह खत्म ही नहीं होता." नीना ने धीरे से कहा

" लो वो देखो  उस खिड़की की तरफ़  उजाला हो गया है वहाँ.

"हूँ"   नीना ने संतुष्टि की  गहरी साँस छोड़ी

" इससे क्या मिल गया तुम्हें"-- उसने रुष्ट होते हुए पूछा

"उनके होने का सबूत" नीना ने धीरे से मुस्काते हुए कहा

नयना(आरती) कानिटकर
२७/०६/२०१७--भोपाल









गुरुवार, 29 जून 2017

शब्द

ओह! शब्द
मिल ही नही रहे
स्याही खत्म हो जाए
तो भर सकती हूँ कलम में
किंतु...

फिर भी वो
टिकी हुई है कागज़ पर
इस उम्मीद में...

की
शब्द प्रस्फ़ुटित होगें
हवा के स्पंदन से
बह उठेंगे  मन से
 टपक पडेंगे  नयनो से

मूळ कविता:- आसावरी काकडे
अनुवाद/ भावानुवाद  प्रयास:- नयना(आरती) कानिटकर

गुरुवार, 30 मार्च 2017

"मूल्यांकन"-----


"मूल्यांकन"-----
भोर होने को थी। रजाई से हाथ निकाल पास ही में सोई बेटी के सर पे हाथ फेरा तो तकिया कुछ गीला महसूस हुआ। ओह! तो सारी रात बिटिया ...। बहुत नाराज़ हुई थी उससे कि ये कैसे सामाजिक मूल्य है माँ! जिन्हे हरदम आप को या मुझे चुकाना हैं, क्या कमी है मुझमें , पढ़ी लिखी हूँ, बहुत अच्छा कमाती हूँ । शक्ल-सूरत भी ठीक फिर कौनसी बात को लेकर मेरा अवमूल्यन किया जाता हैं । हर बार बस ना और ना, बस अब बहुत हो गया।
उसका सर सहलाते सहलाते वो खुद कब सो गई पता ही ना चला था।
लिहाफ को परे सार उठने ही वाली थी कि बिटिया ने हाथ थाम लिया।
“माँ! मेरा सारा  अवसाद धूल चुका हैं और अब निर्णय भी पक्का।”
“कैसा निर्णय बेटा”
“ मम्मा मैने सोच लिया है, मैं अनाथ बच्ची को गोद लेकर एकल अभिभावक बन उसका लालन-पालन कर उसे उच्च शिक्षा दूँगी।”
“समाज में तुम्हारी बात को स्थान मिलने में वक्त लगेगा बेटा।”
“तो क्या हुआ मेरी प्यारी मम्मा!, वो देखो बंद दरवाज़े के उस छोटे सी जगह सुराख से सूरज रोशनी फैला सकता है तो..
मेरे पास तो पूरा का पूरा आंसमा है रोशन होने.के लिए।
मौलिक व अप्रकाशित
 नयना(आरती) कानिटकर
भोपाल 17/12/2016

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

परिवार

पिताजी ने थाम रखी है
डोर मजबूती से, कि
ना चल सके कोई टेढी चाल
माँ के पावन मन मे बसता है
हम बच्चों का धाम
दादा दादी से सीखा है
पंगत मे बैठकर साथ मे
निवालो का तोडना
उनकी संगत मे रिश्तो को जोडना
जिसे नापने का कोई
मिटर नही है
किसी ने ठुकराया भी तो
परिवार की छत्राछाया  ही है
जहाँ अस्तित्व महफ़ूज है

"नयना"