जीना है हरपल,
खुदकी अपनी---
पहचान से
पूरी करना हरपल
ख्वाहीशे अपनी
पहचान से
नजरिया समाज क हरपल
बदलेगे अपनी
पहचान से
बहेगे नदी कि तरह
निरन्तर अपनी
पहचान से
रुके कन्या भृण हत्या हरपल
लडेंगे अपनी
पहचान से
नही झूकेंगे दहेज कि वेदी पर हरपल
डटेंगे निर्णय पर अपने
पहचान से
शंखनाद करेगे हरपल
वजूद का अपनी
पहचान से
प्रकृति द्वरा निर्धारीत
मकसद में हरपल
जीएंगे इत्मिनान से
पहचान से
लेबल
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मंगलवार, 8 मार्च 2011
शुक्रवार, 4 मार्च 2011
आओ बात करे
आओ कुछ बात करे
अपने मन के द्वार को खोंल
अहंम कि श्रृंखला को तोड़
मौन को पिले पात सा तोड़
आओ कुछ बात करे
अंधेरे बादल को पिछे छोड
गम से तुरंत नाता तोड़
खुद को सूरज कि किरनो से जोड
आओ कुछ बात करे
कुछ नाता गली से जोड
अकेलेपन को कोलहल से जोड
मन को सडक के शोर से जोड
आओ कुछ बत करे
दुसरे के दर्द का अमॄत पीकर
अनागत के नए सपने बुनकर
मन के बंद दरवाजे खोलकर
आओ खुछ बात करे
आओ कुछ बात करे
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
तेरे मेरे बीच कि डोर
खिंचना नहि----
सिंचना चाहती हूँ
तेरे मेरे बीच के फासले को
बाँटना नही-----
पाटना चाहती हूं
तेरे मेरे बीच के बन्धन कों
गांठ से नही
ह्र्दय से जोडना चहती हूँ
अब तक अपने आप मे सिमटकर
बहुत जीया मैंने----
अब सागर की लहरों को
पार करना चहती हूँ
अपनी मर्यादा जानती हूँ
पंख फैलाकर आकाश में
उडना चाहती हूँ
फूँल और काँटॊ की बगिया
बहुत जीया मैने
खूशबू के समंदर मे
तैरना चहती हूँ
जीना चहती हूँ
खिंचना नहि----
सिंचना चाहती हूँ
तेरे मेरे बीच के फासले को
बाँटना नही-----
पाटना चाहती हूं
तेरे मेरे बीच के बन्धन कों
गांठ से नही
ह्र्दय से जोडना चहती हूँ
अब तक अपने आप मे सिमटकर
बहुत जीया मैंने----
अब सागर की लहरों को
पार करना चहती हूँ
अपनी मर्यादा जानती हूँ
पंख फैलाकर आकाश में
उडना चाहती हूँ
फूँल और काँटॊ की बगिया
बहुत जीया मैने
खूशबू के समंदर मे
तैरना चहती हूँ
जीना चहती हूँ
सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
जब झोलि मे आया एक और सितरा
उफनते सागर को मिल गया एक किनरा
तुमने मेरे बाग को हरा-भरा कर दिया
मेरे घर में फिर चिराग रौशन कर दिया
एहसास हो मेरे जीवन का, धडकन का
तुम अब सहरा बनो इस नदी के तट का
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-----
मैं अब मौन रहू अब तुम गाओ
फूले अमलतास जैसे खिल जाओ
नहीं आज तुम पर कोई पहरे
जीवन के दिन हो सुन्दर सुनहरे
तुम दीप कि तरह जगमगओ
तुम सृष्टी की सुरभि बन जओ
क्योकीं मेरा-
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-
उफनते सागर को मिल गया एक किनरा
तुमने मेरे बाग को हरा-भरा कर दिया
मेरे घर में फिर चिराग रौशन कर दिया
एहसास हो मेरे जीवन का, धडकन का
तुम अब सहरा बनो इस नदी के तट का
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-----
मैं अब मौन रहू अब तुम गाओ
फूले अमलतास जैसे खिल जाओ
नहीं आज तुम पर कोई पहरे
जीवन के दिन हो सुन्दर सुनहरे
तुम दीप कि तरह जगमगओ
तुम सृष्टी की सुरभि बन जओ
क्योकीं मेरा-
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
तुम मृगनयनि तुम सुर लहरी
तुम उल्लास भरी सी आई हो
भरे हुए सुनेपन मे तुम
मेरा अभिमान भरी सी आई हो
आज ह्रदय मे बस गयी हो
तुम असीम उन्माद लिये
ह्न्सने और ह्साने को
तुम हसती- हसती आई हो
तुम मे लय होकर अभिलाषा
एक बार सकार बनी
तुम सुख का संसार लिये
आज ह्रदय मे आई हो
बरस पडी हो मेरी धरा पे
तुम सहसा रस धार बनी
मंथर गति मे मेरे जीवन के
रंग भरने तुम आई हो
तुम क्या जानो मेरे मन में
कितने युग कि हे प्यास भरी
एक सहज सुन्दर साथ लिये
अमॄत बरसाने तुम आई हो
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
मन के किसी कोने मे ,
तुफ़ान घुमड रहा हे.
क्या थी क्या हू मै,
मन बारबार बैचेन कर रहा है.
कहने को बहुत कुछ मगर कह न सकी,
नहि जानती क्यो मगर होन सका ये.
नही जनाती कब तक .....
चलता रहेगा यही फ़साना
कभी कह ना पाऊगी
क्या मै दिल क तराना.
तुफ़ान घुमड रहा हे.
क्या थी क्या हू मै,
मन बारबार बैचेन कर रहा है.
कहने को बहुत कुछ मगर कह न सकी,
नहि जानती क्यो मगर होन सका ये.
नही जनाती कब तक .....
चलता रहेगा यही फ़साना
कभी कह ना पाऊगी
क्या मै दिल क तराना.
अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ
डालोअरे ओ रोशनी
वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,
ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को
जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों
को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा
लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ
सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने
जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो
अरे ओ रोशनी वालों ...
डालोअरे ओ रोशनी
वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,
ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को
जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों
को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा
लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ
सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने
जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो
अरे ओ रोशनी वालों ...
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