शनिवार, 21 नवंबर 2015

"आभा

---"जीवन रेल"--- रुपा माँ बनने वाली थी.मै भी बहूत खुश था मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी-
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
बिफ़र पडी थी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
मैं भी समझती हूँ महेश!!! क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया था। फिर बीना बताए चुपचाप वह घर छोड़ गई थी
मेरी हर शाम रुपा के इंतजार मे पटरियो पर गुजरने लगी.सोचता ये लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा।
पता नही मैं बाप बना हूँ -- इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी--
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या ----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी।
हमारे जीवन मे "आभा" बिखेरने को आतुर।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

जीवन रेल

"मास्टरनी होगी तु अपने स्कुल की मेरे घर मे रौब ना झाडना,घर मे तो मैं ही मास्टरनी हूँ याद रखियो। "
  गाँव के प्रायमरी स्कूल की शिक्षिका "रुपा" माँ की बुजुर्गियत का ख्याल रख   चुपचाप ताने सुनती रहती।
मै भी उसे समझाता रहता --हर दिन एक से नहीं होते धिरज रखो हमारी जिंदगी की रेल भी पटरी पर दौडेगी. तभी --
"सुनो!!! महेश मैं माँ बनने वाली हूँ। "
मैं मारे खुशी के उसे उठाकर झुमने वाला था कि माँ जोर से बोल पडी--
"सुन मास्टरनी मैं तो बेटा चाहू हूँ। जिला अस्पताल जाकर जाँच करा लियो जल्दी से बेटी हुई तो गाँव की दाई के बुलवा----.
बिफ़र पडी रुपा माँ पर और मुझ पर भी।
  मैं भी समझती हूँ महेश!!! बुज़ुर्ग का सम्मान करना किंतु क्या तुम भी मेरा साथ नहीं दोगे मेरी चुप्पी ने उसे अंदर तक तोड दिया और फिर बीना बताए चुपचाप उसने घर छोड़ दिया।
 पूरा एक अरसा गुज़र गया  बहुत खोजा था उसे। आखिर हार कर रोज शाम को पटरी पर आ बैठता रुपा के आने के इंतजार मे हर गाड़ी को तकता सोचता रहता था कि  हमारी पटरियों के बीच की दूरी आखिर इतनी लंबी क्यो है? ये  लोहे की पटरियां भी तो कही ना कही एकबार मिलती फिर मुडती भी है, रास्ता बदलने के लिए। एक बार तुम मिल जाओ तो मै इस बार सब-कुछ छोड़ तुम्हारे साथ चल दूँगा। पता नही मैं बेटे का बाप बना हूँ या कि बेटी का इसी उधेडबुन मे था कि मोबाईल की घंटी बज उठी---
हैलो महेश!!!! में रुपा बोल रही हूँ  ट्रेन मे हूँ बस पहुचने ही वाली हूँ गाँव।
हैलो रुपा!!!! क्या तुम्हारे साथ हमारा बच्चा----.तभी बातचीत कट जाती है।
पटरियों से उठ दौडकर स्टेशन पहुँचता हूँ. रुपा सामने ही खडी है।
ये लो महेश!! हमारे जीवन रेल को चलायमान करने वाली हमारी बेटी-जो अब हमारे जीवन मे  "आभा" बिखेरने को आतुर है।
नयना(आरती)कानिटकर
२१/११/२०१५

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

मातृत्व

लाखों जतन किये  डाक्टर,पूजा-पाठ ,उपवास जप-तप-मंत्र  ,हर वक्त कलेजे से एक हूक सी उठती रहती जो उसके स्त्रीत्व पर वार करती मगर ईश्वर को उसकी झोली भरना मंज़ूर ना हुआ
  हार कर  रिश्तेदारों के बच्चों मे ही उसने अपना मातृत्व ढूंढने की कोशिश कीउन्हे अपने पास रखा ,अपने आंचल तले ममता की छांव दी,अपनापन दिया,पढ़ाया-लिखाया लेकिन ममता की डोर उन्हे भी बांधने मे कामयाब ना हो सकी वे भी उड गये पंछी  की तरह  आकाश मे उँची उड़ान भरने जो फिर लौटकर घोसले मे कभी ना आये
  सोचते-सोचते अखबार पढते हुए  अचानक उसकी नजर आज के वर्गिकृत विज्ञापन के पेज पर अटक गई
            "एक कामकाजी दंपत्ति को अपना बच्चा सम्हालने के लिये आवश्यकता है एक ऐसी महिला की जो    बच्चे को नानी-दादी सा प्यार दे सके."
  अपनो को तो बहुत देख चूकि थी. अब निश्चय किया पराये के काम आने का.शायद अब उसके कलेजे को ठंडक मिल जाये
 उठकर तुरंत दिये  गए मोबाईल नंबर पर उँगलिया घुमा दी.
नयना(आरती) कानिटकर


मंगलवार, 17 नवंबर 2015

मेरा वक्त

वेनू मेरी अंतरग सहेली,हम दोनो एक साथ पली-बढी और हमारा सौभाग्य देखिये ब्याहकर आई भी तो एक ही शहर मे .
अचानक सुबह सुबह मोबाईल घंटी  सुन नींद मे  हडबडाहट  मे  उठाते उधर से आवाज़ आयी
"नेहा!! जितनी जल्दी हो सके नेशनल अस्पताल पहूँचो मैं विराज को लेकर जा रही हूँ शायद---"
"वेनू!! धैर्य रखो बस मैं पहुँच रही हूँ."
"नीरज उठो!!! आज तुम" ख़ुशी "को स्कुल पहुँचा देना .मैं अस्पताल जा रही हूँ , विराज को शायद हार्ट अटैक आया है मैं वहाँ पहुँच कर फोन करती हूँ.
  वेनू गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर ही मिल गई,उसे धैर्य बंधाया,सब ठिक होगा तभी--
"सब कुछ खत्म हो गया हमे उपचार का अवसर ही नहीं मिला."
अस्पताल की सारी औपचारिकताओ के साथ-साथ उनकी अंतिम यात्रा तक नीरज ने मेरा पूरा साथ निभाया.
मैं विचरो में खोयी वेनू के पास थी.जानती थी पेशेवर वित्तीय सलाहकार ,
अपने हिसाब से चलने वाले उसकी किसी सलाह या निर्णय पर हमेशा कटाक्ष करने वाले विराज ने जिस्मानी संबंधों के अलावा कभी उसे वह स्थान नहीं दिया जिसकी वह हक़दार थी.सौम्य स्वभाव की पढने मे रुचि रखने वाली वेनू ने कभी शिकायत नहीं की और अपने आप को लेखन-पाठन से जोड लिया.
"वेनू!!! कैसे दिन काटोगी अब ,जब इच्छा हो चली आना.
"चिंता ना करो नेहा!! जब हसरतो के दिन गुज़र गये ये वक्त भी कट जाएगा जीवन का सच्चा अर्थ तो अब समझ आया मुझे."

"अब मेरी क़िताबें, लेखन-पाठन और सबसे बडा मेरा वक्त मेरी मुट्ठी मे है."

नयना (आरती) कानिटकर

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

"हौसला"


"हौसला"
किसना के संग ब्याह कर जब भानपुर आई तो मैने कोई ज्यादा सपने नही देखे थे। वैसे भी खेतीहर मज़दूर की बेटी दो जून रोटी और दो जोड़ी कपड़े से ज्यादा क्या सोचती। मैं भी किसना के साथ खेतो मे जी - तोड़ मेहनत करती, लेकिन इन्द्र देवता की नाराज़गी के चलते हम ज्यादा काश्त ना निकाल पाते | और साहुकार का कर्ज चढ़ गया सो अलग।
थक हार कर किसना ने माई - बाबू को मना लिया मुंबई जा कर मजदूरी के लिए। मैं भी आ गई थी उसके संग। सारा-सारा दिन ईट-सिमेंट ढोते-ढोते थके हुए दो कौर हलक में उतार बस फ़ुटपाथ पर ही सो जाते हर रात !
अधिक मेहनत से जब किसना की तबियत गडबडाने लगी तो हम वापस गाँव लौट आए। दवा-दारु मे बैल भी चुक गए।
गाँव आते ही साहुकार भी रोज चक्कर काटने लगा वसूली के लिये। पैसा ना देने पर मुझे उठाने की बात ...
अब तो सुबह रोटी खाओ तो शाम के निवाले की मुश्किल हम पर साया बन कर पीछा कर रही थी - भला कहाँ से कर्ज चूकते ?
इस वर्ष एक काश्त निकलने तक तो इंतजार .... पर साहुकार के कानों जू ना रेंगती !!
तभी एक दिन भोर होते ही अचानक हरिया चिल्लाते हुए आया "... भौजी .. भौजी ... किसना ने खेत में आम के पेड पर ...." .. मेरा किसना लड़ाई हार गया था .. अब मैं किसे बताऊँ कि ..?
तीन दिन का सोग (शोक) मनाने के बाद मैने हिम्मत बटोरी और माई से कहा - " .. माई बैल के लिए हमे किसी के आगे हाथ नही फैलाना है, चलो .. हम खुद खेत जोत लेगे, अब तो बुआई के दिन भी नज़दीक है "
मेरे कोख मे भी एक बीज ... आँगन में एक पौधा जन्म ले रहा था ... उस दिन मैने फ़ैसला किया मैं हार नही मानूँगी .. मै लडूंगी नियती से .. आख़िरी दम तक ।

नयना(आरती)कानिटकर

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

प्यादी चाल



चलो सरिता जल्दी तैयार हो जाओ और हा सुनो!!! वो हरे-गुलाबी काम्बिनेशन की साड़ी है ना वो पहनना. आज  बास का जन्मदिन है.
" अरे सुधीर !! वो साडी तो  तुम्हें पसंद नही है ना ? याद है जब पिछली बार मैने पहनी तब तुम नाराज़ हुए फिर आज--।"
" हा हा तो क्या हुआ पर अखिलेश जी को तो तुम इस साड़ी में---और हा सुनो चलते-चलते एक सुन्दर सा तोहफ़ा भी ले चलेंगे। ऑफ़िस मे जल्द ही  पदोन्नती की सूची जारी होना है।
जन्मदिन की पार्टी पूरे शवाब पर थी जाम-से जाम टकराए जा रहे --
अरे!! आइए-आइए सुधीर और हमारी खु्बसुरत  सखी सी सरिता कहाँ  रह गई।"
"अरे !! तुम पिछे क्यो खड़ी हो !!!आओ मुबारकबाद दो हमे---अपने दोनो हाथ आगे बढा आलिंगन--
"बहुत शुभकामनाएँ सर!! वही से हाथ जोड़ते हुए सरिता ने कहाँ"---अखिलेश कसमसा कर रह गए.
"सुधीर ने सरिता के कान मे फुसफुसा कर कहा ! क्या होता जो अखिलेश जी का मान रख लेती समझ रही हो ना ,मैने बताया तो था कि पदोन्नति---
"अखिलेश जी एक तोहफ़ा हमारी तरफ से--" सरिता आगे बढते हुए बोली
"अरे!! इसकी क्या जरुरत थी"  --सरिता से हाथ मिलाते हुए उन्होने हाथ  कस कर दबा लिया."
सरिता हाथ छुडाते हुए  चिख पडी!!! अखिलेश जी!!! , सुधीर!!!
’सुधिर !!!!क्या तुम अपनी तरक्की के लिये प्यादे की तरह मेरा इस्तेमाल करना चाहते हो जो चुपचाप एक-एक घर आगे बढ़ता है."
शायद तुम नही जानते अगर मे प्यादी चाल चल दू तो राजा  को भी मार सकती हूँ.

..

अंतिम यात्रा

घर के बाहर भीड़ जमा है । पूरी तैयारी हो चुकी है।
"लड़का आ रहा है चेन्नई से . हवाई जहाज़ से आ रहा है बस पहुँचने ही वाला है।"
"एक दिन तो हम सभी को जाना है किन्तू---"
"किन्तू क्या"-- उर्मिला ने पूछा
"अरी!!  बहुत सीधी-सादी है भाभी जी और सुना है ये उनका पेट जाया भी नही है। किसी अनाथ आश्रम से उठा लाये थे। पढा-लिखा बडा किया और वो
चेन्नई जा बसा। "
’अरे हा!!! कहते है वर्मा जी ने भी तो खूब उठा-पटक  और लोगो को लूट अपना व्यवसाय चलाया।"
"तभी तो  इन्कम टैक्स की चोरी  के चलते रेड हुई . कोर्ट मे मामला चल रहा है उसी के चलते उन्हे हार्ट अटैक--"
 "हा ना बेटे को भी पता चल गया था कि वो अनाथ है- तभी घर छोड गया।"
"ओह!अब अब मिसेज वर्मा का क्या होगा बेचारी कोर्ट-कचहरी मे उलझ जाएगी। पता नही बेटा भी---??"
"अरे!! कुछ नही होगा जीवन की फ़ाइल बंद होते ही --सभी फ़ाईले बंद हो जानी है।"
"फिर भी मामला तो नाज़ुक है ना--"

तभी राम-नाम सत्य है के साथ अर्थी उठा ली गई।

नयना(आरती)कानिटकर