सोमवार, 14 दिसंबर 2015

"ओव्हरटाइम -"-विषय आधरित "चक्करघिन्नी "--लघु कथा के परिंदे

"रेखा!! मेरे मोजे-रुमाल कहाँ है,ओहोSSS शर्ट भी नही निकाल कर रखा तुमने-पता नही क्या करती रहती हो.
"सब कुछ  वही तो है अलमारी मे,तुम्हारा हिस्सा तय है उसी मे दिन-वार के हिसाब से तह करके रखती हूँ.उसमे से भी निकालने मे जोर आता है तुम्हें. मुझे भी तो ऑफ़िस जाना है." सुबह से लगी हूँ फिर भी
"चुप करो रेखा तुम मेरी बीबी हो ये सब काम तुम्हें करने ही होगें.वैसे भी वहा तो तुम नैन मट्टका करने---
वैसे भी मै आजकल आफ़िस मे ओव्हरटाइम काम कर रहा हू.
"सुनो अमित!! माँ ने बीच मे ही बात काटते हुए बोला--एक बात ध्यान से सुन लो रेखा भी घर-गृहस्थी सम्हालते हुए नौकरी कर तुम्हारे आर्थिक भार मे बराबरी से हाथ बंटा रही है.सुबह से रात  तक चक्करघिन्नी बन घूमती रहती है  वो तुमसे ज्यादा घंटे काम करती है और ये नैनमट्टक्के वाली बात -अपनी ज़बान पर काबू रखो , पहले अपनी बगले झांको वैसे भी मैं  तुम्हारी रग-रग से वाक़िफ़  हूँ.

"माँ !! मैं आपका बेटा होते हुए भी आप रेखा का पक्ष ----"
 एक स्त्री होकर भी मैं स्त्री को ना समझ पाई तो मुझसे बडा अपराधी कोई नहीं.
नयना(आरती) कानिटकर
१४/१२/२०१५

" बदला"

न्यायालय परिसर से बाहर निकलते ही सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित   पत्रकार  उसे घेर लेते है ।
पत्रकार--"महिला होकर भी बंदूक -चाकू जैसे अपने साथ रखने की वजह  । "
" वर्ग विशेष से सामूहिक बलात्कार और शोषण के खिलाफ़ बदला । "
"मगर आप ऐसे वर्ग से आती है जो मजदूरी कर पेट पालता है । इतने बडे नर संहार की जगह गाँव छोड उनके चंगुल से बचा जा सकता था ।
"शर्म करो तथाकथित पढे-लिखे लोगो-- कब तक और कहाँ तक भागती ,ये तो  मेरा पलायन हो जाता अपने अधिकारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का । "
"तभी दूसरा--- ये काम तो सरकार का था  । शिकायत दर्ज की जा सकती थी उनके खिलाफ़ । बंदूक उठाना तो अपराध हुआ । "
  "लोगो के सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो सरकार पर है । अपराध तो सरकार कर रही है ऐसे लोगो को संरक्षण देकर वोट के ख़ातिर ।
"तो अब आगे क्या  मुफ़्त की रोटी तोड़कर----- । "
"नही-नही!!-अब निकम्मो के खिलाफ़ सरकार मे जाकर बदला लूंगी । ."

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

" जिंदगी की आस"

. बहुत तेज बारिश मे अपनी संगिनी संग छाता थामे   सेना निवृत सैन्य अधिकारी  को इंतजार था अपने पोते आयुश्यमान के कोफ़िन (शव पेटी) का जो सेना के विशिष्ठ विमान से लाई जा रही थी .
 अपने बेटे की शहादत भी वो देख चूँके थे ऐसे मे उनकी सारी जिंदगी सिर्फ़ आयुष्यमान  के इर्दगिर्द सिमट गई थी. उनका पोता भी  भारत माता की रक्षा के ख़ातिर सीमा पर तैनात था.जो पहाड़ियों  पर एक अभियान   मे  शहीद हो गया. ये उनकी तीसरी पीढी थी जो देश सेवा करते हुए शहादत को प्राप्त हुई. भरी बारिश मे सेना उनके पोते  को अंतिम सलामी दे रही थी
 नीली छतरी वाला भी भर-भर आँसू बहा  शायद श्रद्धांजलि दे रहा था.ये हादसा उनके पोते के साथ नही  उनके साथ हुआ था. हादसे मे वो नही मरा ये मर गये थे अंदर तक.
सज्जनसिंग छाती पर हाथ थामे अधीर हो रहे थे उस मंजर को देख मगर   पथाराई सी सुहासिनी ने उनका हाथ  थाम रख था मज़बूती से पुन:जिंदगी की आस मे.
नयना(आरती) कानिटकर.

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

संघर्ष

जलती रही मैं तिल-तिल
संघर्ष मे, व्यंग बाणो से
कभी अपनो के तो
कभी परायो के।
"नयना"

सोंधी खुशबू

सीखती रही मैं उम्र भर
रोटी का
गोल बेला जाना
फिर भी पडती रही
सीलवटे उसमें
जो माकूल आग में
सिंकने पर भी
नहीं हो पाई सोंधी खुशबू वाली
नर्म और फूली -फूली

"नयना"

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

गुजारिश----मुठ्ठी से रेत

कैलेंडर  का पन्ना पलटते ही उसकी नजर तारीख़ पर थम गई। विवाह का दिन उसके आँखो के आगे चलचित्र सा घूम रहा था।.सुशिक्षित खुबसुरत नेहा और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक नीरज की जोडी को देख सब सिर्फ़ वाह-वाह करते रह गये थे.वक्त तेजी से गुज़र रहा था।.
जल्द ही नेहा की झोली मे प्यारे से दो जुडवा बच्चे बेटा नीरव और बेटी निशीता के रुप मे आ गये।.तभी --
वक्त ने अचानक करवट बदली बच्चों के पालन-पोषण मे व्यस्त नेहा खुद  पर व रिश्ते पर इतना ध्यान ना दे पाई । उसके  के हाथ से नीरज मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसलता चला गया और एक दिन विवाह की वर्षगांठ पर उस पर अनाकर्षक का तमगा लगाकर हमेशा के लिये चला गया किसी दुसरी  बेइन्तहां ख़ूबसूरत चित्ताकर्षक यौवना का हाथ थाम कर ।
वो एकल अभिभावक बन गई बच्चों की।
वो चार दिन की चाँदनी  थी कब तक चमकती अँधेरी रात तो होनी  ही थी. उसका सब कुछ उसकी सारी धन-दौलत,  बची- खुची इज़्ज़त मिट्टी में मिला कर जा चुकी थी। अब नेहा के पास लौटने अलावा कोई चारा ना था।
अचानक डोर बेल की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।दरवाज़ा खोलते ही ,सामने बढी  हुई दाढ़ी और अस्तव्यस्त कपड़ों मे नीरज को देख दरवाज़ा बंद करने--
" रुको नेहा !! मैं तुमसे अपनी ग़लती की माफ़ी मांगता हूँ ,तुमसे  सिर्फ़ एक गुज़ारिश है मुझे मेरे बच्चों से दूर ना करो" बच्चों का वास्ता देकर वो-वो गिड़गिड़ाने सा लगा--

"कौन से तुम्हारे बच्चे?? ज़िम्मेदारी से हाथ झटकने वाले को मेरे घर मे कोई जगह नही है।"

नयना(आरती) कानिटकर

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

"आभासी रंग"----चित्र प्रतियोगिता

"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है."
वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे.
"बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए  गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से  धरती माँ की गोद  मे  जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना
" बादल !!  ऐसा क्यो कह रहे हो. ये हरा रंग देखो चारो ओर कितना लुभावना है,प्रकृति का ही तो --."
" नही नही" हवा!!  अब यहाँ ना फूल है ,ना तितली,ना जंगली जानवर.बस! मानव निर्मित अट्टलिकाऎ है.अब हमे यहाँ नही रहना.
 यह तो आभासी है.इसे मानव ने हरे नोटो के साथ हरा रंग दिया है"
.
नयना(आरती) कानिटकर
05/12/2015