घर मे सत्य नारायण की पूजा होने से घर के अतिरिक्त बर्तन साफ़ करने और बाहरी बुहारी (स्वच्छता) आदि के लिए महरी को रोक लिया था. पूजा-पाठ समाप्त होने के बाद प्रसाद भोजन निपट जाने पर महरी ने घर जाने कि इजाज़त चाही तो स्नेहलता देवी बोल पडी रुको तुम भी प्रसाद भोजन कर के जाना.
महरी अपना खाना ले आँगन के एक कोने मे जा बैठी . बब्बू भी उनकी थाली से खाने को मचल उठा .स्नेहलता देवी पोते को खींचकर जाने लगी मगर बब्बू हे कि माना ही नही और महरी कि थाली से ही खाने लगा. स्नेहलता देवी अनापशनाप बकते हुए छुआछात के चलते पूजा के खंडित होने का दोष महरी पर मढती...
इधर मासूम बब्बू मे बसे ईश्वर महरी की थाली से सच्चा प्रसाद ग्रहण करते रहे.
नयना(आरती)कानिटकर
महरी अपना खाना ले आँगन के एक कोने मे जा बैठी . बब्बू भी उनकी थाली से खाने को मचल उठा .स्नेहलता देवी पोते को खींचकर जाने लगी मगर बब्बू हे कि माना ही नही और महरी कि थाली से ही खाने लगा. स्नेहलता देवी अनापशनाप बकते हुए छुआछात के चलते पूजा के खंडित होने का दोष महरी पर मढती...
इधर मासूम बब्बू मे बसे ईश्वर महरी की थाली से सच्चा प्रसाद ग्रहण करते रहे.
नयना(आरती)कानिटकर