सोमवार, 18 जनवरी 2016

बच्चे मे भगवान

घर मे सत्य नारायण की पूजा होने से घर के अतिरिक्त बर्तन साफ़ करने और बाहरी बुहारी (स्वच्छता) आदि के लिए महरी को रोक लिया था. पूजा-पाठ समाप्त होने के बाद प्रसाद भोजन निपट जाने पर महरी ने घर जाने कि इजाज़त चाही तो स्नेहलता देवी बोल पडी रुको तुम भी प्रसाद भोजन कर के जाना.
 महरी अपना खाना ले आँगन के एक कोने मे जा बैठी . बब्बू भी उनकी थाली से खाने को मचल उठा .स्नेहलता देवी पोते को खींचकर जाने लगी मगर बब्बू हे कि माना ही नही और महरी कि थाली से ही खाने लगा. स्नेहलता देवी अनापशनाप बकते हुए  छुआछात के चलते पूजा के खंडित होने का दोष महरी पर मढती...
इधर मासूम बब्बू मे बसे ईश्वर महरी की  थाली से सच्चा प्रसाद ग्रहण करते रहे.

नयना(आरती)कानिटकर

शनिवार, 16 जनवरी 2016

" हम सात"

"कलावती" बेटे के इंतजार में कम अंतराल से ७ बेटियों को जन्म देकर सासू माँ के ताने सुनते हुए मन के साथ-साथ तन से भी हार गई थी . किशनलाल जी स्कूल मे प्रधानाचार्य थे ,थोड़ी बहुत ज़मीन भी थी पुश्तैनी उसका काम भी देखते सदा व्यस्त रहते.अपनी  माँ के आगे ज्यादा ना बोलते लेकिन  सब बच्चियों को कभी कोई दिल  दुखाने वाली बात ना कहते.
बेटियों  के नाम भी बडे सोच समझकर रखे थे.स्नेहा, ममता, आस्था, सत्या, नीति, आकांक्षा और  मुक्ता.यथा नाम तथा स्वभाव की बहने जान छिड़कती थी एक दूसरे पर. गुणों के आगे धीरे-धीरे दादी का ताने मारना बंद हो गया
 पास के गाँव से स्नेहा  के लिये रिश्ता आया था.घर-भर ने  तैयारी की थी.आखिर बात तय होकर लेन-देन पर आकर चल रही थी .
"बांकेजी" के पिता ज़मीन मे बहनों के हिस्से की बात पर आकर अड गये .  सभी बहने विरोध जताने के लिये एक साथ बाहर निकली  ही थी  कि...
 बाँके जी  पसिना-पसिना...शायद  गाँव के  मेले  में खेले  गए नाटक "दुर्गा" का दृश्य याद आ गया.

नयना(आरती) कानिटकर

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

यादें---"सरहद"-लघुकथा गागर मे सागर

उसका जीवन सवार कर अपने पैरो पर खड़ा करने में  माँ का बडा योगदान था  पति के सहारे  से वंचित  उसकी पिता भी बन गई थी वो।  बडी खुशी-खुशी विदा किया उसे डोली मे बैठा कर और फिर मानो उसका  मकसद पूर्ण हुआ जल्द ही विदा ले ली दूनिया से भी। 
आज कंपनी मे प्रमोशन के बाद आदेश पत्र  माँ के फोटो के सामने रख प्रणाम करने झुकी ही थी कि मोहित बोल पड़े...
"मेघा! इतने बडे ओहदे पर आकर भी  बचपना  गया नही। तुम्हारी दूनिया सिर्फ़ माँ और माँ तक ही सिमटी है।  मेरा कोई वजूद..."
अंदर तक टूट कर रह गयी  मेघा। काश...
माँ तेरी यादों की कोई सरहद होती तो कितना बेहतर होता

नयना(आरती) कानिटकर
०५/०१/२०१६

सरप्राईज - जज्बात विषय आधारित

बडे मनोयोग से श्वेता ने चॉकलेट केक तैयार किया, उसे सुंदर तरीके से सजा कर टेबल पर रख दिया शशांक को मक्के की रोटी और सरसों का साग बेहद पसंद है इसलिये घर मे ही मख्खन बनाकर साग बनाया, रोटी की तैयारी भी कर ली, उसे जन्मदिन पर सरप्राईज जो देना है.
घर को साफ़-सुथरा करके चाय का कप लेकर आँगन मे आ बैठी उसका इंतजार करते हुए। तभी मोबाईल बजा...
"हैलो! हा मैं श्वेता बोल रही हूँ. कब तक आ रहे..."
"हैलो श्वेता! मेरा डिनर पर इंतजार मत करना, मैं अपने जन्मदिन की पार्टी मनाने दोस्तों के साथ..."
आँखो से निकली आँसू की बूँदो को गालो पर लुढकने से पहले ही आँचल मे थाम लिया

नयना(आरती)कानिटकर


शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

"प्यासे रिश्ते"

" अरे अरे शबनम!!! उधर कहाँ भागी जा रही हो .गाड़ी तो इस तरफ़ पार्क की है। "-- मुश्ताक़ ने लगभग चिल्लाते हुए कहा ।
"अभी आती हूँ अब्बु !!देखिये वे बुज़ुुर्ग पानी की खाली बोतल थामे है,शायद उन्हें पानी चाहिये ,हम बस अभी आए । "
अरे!! लेकिन रुको यू दौड़कर सड़क ना पार करो,हम भी आते है."
तब तक शबनम वहाँ पहूच उनकी बोतल में अपना पानी उड़ेलने लगी ।
मुश्ताक़ के रोड क्रास कर वहाँ पहुँचते ही सामने अपने अम्मी-अब्बु को देखा और उसके कदम वहीं रुक गये----
आवाज़ हलक़ मे अटक गई और वह पसीने से बुरी तरह तरबतर ।
नयना(आरती)कानिटकर
०१/०१/२०१६

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

" ओव्हर टाईम"-लघुकथा के परिंदे

अलभौर ही उसके काम की शुरुआत हो जाती पानी भरने से .यू तो नल घर मे था मगर छत की टंकी तक पानी जाने मे वक्त लगता  तो सारे काम चलते नल मे करने की जल्दी मे भागम भाग करना पड़ती.फिर घर बुहारना,बच्चों के स्कूल का टिफ़िन,चाय-नाश्ता,दोपहर के भोजन की व्यवस्था और घर को समेट उसे भी काम पर जाना होता.लौटकर आती तो फिर वही धुले बरतन जमाना, कपड़े समेटना,अगले दिन की भाजी-तरकारी की व्यवस्था,रात का खाना(घर वालो की फ़रमाईश का) सारा दिन चक्करघिन्नी सी घूमती काम करती रहती थी.शायद अब उम्र का तकाजा था शरीर इतने सारे काम के लिए साथ ना दे पा रहा था.मगर कहती किससे वो भी तो सुपर वुमन बनने की होड मे बिना किसी गिले-शिकवे के यह सब करती रही  और हम भी कभी मन से उसे काम मे हाथ ना बटा पाए.
अचानक गश खाकर गिरने पर तुम्हारे माथे की चोट इतनी गहरी लगी है कि सारी भावनाएँ उसमे गहरा गई है.मैं तुम्हें इस अवस्था मे नही देख सकता "अनुराधा",तुम्हें जल्द ही  कोमा  की स्थिति से लौटना ही  होगा मेरी जान.
कही ये ओव्हरटाइम,टाइम ओव्हर ना हो जाए.

नयना(आरती) कानिटकर.
२९/१२/२०१५

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

आदमी जिंदा है-लघुकथा के परिंदे --जिंदादिली

डायलिसीस सेंटर के वेटिंग एरिया मे बैठे स्मिता का सारा ध्यान चिकित्सा कक्ष की तरफ़ था सचिन को अभी-अभी अंदर ले गये थे.भगवान की मुर्ति सामने थी लेकिन  उसका मन अशांत था .
इतने मे सामने से एक खूबसुरत ,करिने से पहना हुआ सौम्य पहरावा,कोई भी आकर्षित  हो जावे ऐसा आभायमान व्यक्तित्व की धनी महिला आती है.
वो अपने डब्बे से सभी को मतलब हर आने-जाने वाले को तिल-बर्फ़ी ’चिक्की देते हुए कह रही थी "तिल-बर्फ़ी लो मीठा-मीठा बोलो".सभी डाक्टर्स,सिस्टर्स,वहाँ के सारे मरीज,मरीजो के रिश्तेदार सभी संग अपनी  खूबसुरत हँसी और अपनापन  बाँट रही थी
 स्मिता अशांत थी,अधिर हो रही थी लेकिन डाक्टर साहब ने उसकी मनस्थिती ताड ली .बोले--
"स्मिता ये जोशी आंटी है अपने पति संग लम्बे समय से यहाँ आ रही है.इनके सारे त्योहार दशहरा,दिवाली,राखी सब यही मनते है वो यहा की सबसे सिनियर पेशेंट रिलेटिव्ह है .बडी जिन्दादिल महिला है,सब पेशेंट रोज उनका इंतजार करते है और हा सचिन भी ठिक है अब जल्दी छुट्टी मिल जायेगी उसे.
 स्मिता ने अपने दु:ख का अपने चारो और मानो कोश सा निर्माण कर लिया था,लेकिन जोशी आंटी ने तो अपने प्रयत्नो से परिस्थीति को उलट दिया था,हार नहीं मानी थी.
उनको देख स्मिता ने सोच लिया जिंदगी हमेशा जीते रहने मे है,हौसले और जज्बे मे है.
जब तक जिंदादिली कायम है,आदमी जिन्दा है.

नयना(आरती) कानिटकर.
२२/१२/२०१५