गुरुवार, 4 मार्च 2021

*मेरा भाई*

*मेरा भाई*


नजर में बसा है 

तेरा बचपन 

चाहे पार किए  हो बावन 


खेला करते थे हम 

अष्ट -चंग की गोटियाँ


तुम खींचा करते थे 

छोटी बहन की चुटिया


कुँए से पानी खींचा करते थे 

घर आँगन सींचा करते थे  


नज़र में बसा करता है 

अब भी वो बचपन 


यशस्वी हो सदा तुम  जग में 

नहीं कंटक हो तुम्हारे पथ में 


भाभी संग खुशियों की कलियाँ 

हँसी की अनगिनत लड़िया


माँ -बाबा संग साथ तुम्हारे

विश्वा- देव भी जीवंत तारे

 

आओ माथे पर टिमकाना लगाऊ

दुनिया की बुरी नजरों से बचाऊ




*** जन्मदिवस  की अनेकानेका शुभकामनाएँ भाई ****


©नयना(आरती)कानिटकर

०५/०३/२०२१ 



आशीर्वचन 01/02/2021

 सुहानी भोर का उदय हो रहा है ,मन है की आनंद में मयूर नृत्य कर रहा . बात है ही ऐसी ..

समय कैसे पंख लगाकर उड़ता है लगता है कल की ही तो बात है जब मेरे आँचल में बिटिया के बाद तुम्हारे रूप में दूसरा  सितारा जड़  गया था और परिवार ने सम्पूर्णता प्राप्त की थी . दिन बचपन  से  पढाई  और अब लुगाई 😃 तक आ पहुंचे थे .

आज  एक ओर सितारा हमारे जीवन में अपनी चमक के साथ प्रवेश कर गया .

वैवाहिक जीवन के प्रथम वर्ष की अनेकानेक बधाई मेरे बच्चों--सदा खुश रहो @अभिषेक @ अनघा 



सदा रहे ये सुखमय जीवन 

आशीर्वचन तुम्हें देते है ।


बिछे राह में सुरभित कलियाँ

प्रफुल्लित जीवन में रसमय रतियाँ

इंद्रधनुषी वो साँझ सुगंधी

बहती हवा हो रास मकरंदी 

जिसमें सदा खुशियाँ ही बरसे 

ऐसा एक उपवन देते है 


सदा रहे ये सुखमय जीवन 

आशीर्वचन तुम्हें देते है ।


सुरभी पथ में बने रंगोली 

जिंदगी रंग-रंगो की झोली 

मौसम देता रहे बधाई 

पल्लवित रहे सदा अंगनाई 

फलीभूत हो हर इच्छा क्षण  क्षण 

ऐसा कथन तुम्हें देते है 


सदा रहे ये सुखमय जीवन 

आशीर्वचन तुम्हें देते है ।


© नयना / सुरेश /अभिलाषा

 

सोमवार, 28 सितंबर 2020

उडान

 उड़ो आकाश भर 

कुलांचे भरती पतंग की तरह 

थामे रहो  उड़ान को अनंत तक 

फिर भी कभी जब थक जाओ 

भागते भागते 

थामते अपनी जिंदगी को 

असंतुलित हो जाए ,तुम्हारी पतंग 

खाने लगे हवा में गोते 

अंगुलियों पर कसी उसकी मंझी डोर

कांच के महीन किरचों से 

जब भर दे जख़्म,रिसते खून का 

तब उतार लेना उसे 

हौले हौले नीचे को 

मैंने आज भी बचा रखा है 

आम के पेड़ से झरता 

सुबह की कोमल घूप का टुकड़ा


और उस घने नीम की छाँव

जो अभी भी हैं

 मेरे घर आँगन में 

© " नयना "

# मेरे घर आँगन में 

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

पदचिन्हों

नहीं चाहती मैं कि
तुम भी चलो 
रेत में छपे मेरे पदचिन्हों पर 
उन पर  तो चली हूँ मैं जन्मों से
अब उभरकर आई है 
जिनमें 
वे किरचें दरारों सी 
जो मेरे दिमाग से निकल 
मेरे हृदय से गुजरते  
 फिर ठिठक गई है
पैरों के तलवे में जाकर 
जख्मों की तरह 
तुम , तुम तो 
पहले ही भर देना उन
दरारों को
बालू से निकले उन
यूरेनियम के कणों से
जो शृंखला बनाकर
भर दे तुममें 
एक अथांग ऊर्जा
और गर वक्त आ जाए कभी
अनियंत्रित अवस्था का 
तो कर देना उसका 
विखंडन ...
विस्फोटक के रुप में 
©नयना(आरती)कानिटकर
३०/०७/२०२०

रविवार, 26 जुलाई 2020

असंख्य बिंदुओं से
फैलती
तुम्हारी वृत्ताकार परिधि
में
मैं मात्र एक
केन्द्र बिंदू
"नयना"

*अकर्मण्यहीन*

हल्के में लेती
रहती हैं, वो अपनी
हारी-बिमारी को
It's ok यार
उम्र का तकाजा है
डरती है
बिस्तर पर देख उसे
कि कही
रोटी का साथ भी ना
छूठ जाए और
वो
बस तकता रहता हैं
भावना शून्य होकर
इंतजार में कि
शायद
कल दिखे बिस्तर सिमटा
थाली भोजन से भरी
"नयना"
19/07/2020

गुरुवार, 7 मई 2020



मेरा परिचय-:-
नयना(आरती) कानिटकर
शिक्षा:- एम.एस.सी,  एल.एल.बी
संप्रति:- पति के चार्टड अकाउँटंट फ़र्म मे पूर्ण कालावधी सहयोग
लघुकथा ,कविता , लेख आदि विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। पड़ाव और पड़ताल के "नयी  सदी की धमक में लघुकथा "लालबत्ती " प्रकाशित .अनेक लघुकथा सग्रहो में साझा प्रकाशन .
nayana.kanitkar@gmail.com