शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

" जिंदगी की आस"

. बहुत तेज बारिश मे अपनी संगिनी संग छाता थामे   सेना निवृत सैन्य अधिकारी  को इंतजार था अपने पोते आयुश्यमान के कोफ़िन (शव पेटी) का जो सेना के विशिष्ठ विमान से लाई जा रही थी .
 अपने बेटे की शहादत भी वो देख चूँके थे ऐसे मे उनकी सारी जिंदगी सिर्फ़ आयुष्यमान  के इर्दगिर्द सिमट गई थी. उनका पोता भी  भारत माता की रक्षा के ख़ातिर सीमा पर तैनात था.जो पहाड़ियों  पर एक अभियान   मे  शहीद हो गया. ये उनकी तीसरी पीढी थी जो देश सेवा करते हुए शहादत को प्राप्त हुई. भरी बारिश मे सेना उनके पोते  को अंतिम सलामी दे रही थी
 नीली छतरी वाला भी भर-भर आँसू बहा  शायद श्रद्धांजलि दे रहा था.ये हादसा उनके पोते के साथ नही  उनके साथ हुआ था. हादसे मे वो नही मरा ये मर गये थे अंदर तक.
सज्जनसिंग छाती पर हाथ थामे अधीर हो रहे थे उस मंजर को देख मगर   पथाराई सी सुहासिनी ने उनका हाथ  थाम रख था मज़बूती से पुन:जिंदगी की आस मे.
नयना(आरती) कानिटकर.

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

संघर्ष

जलती रही मैं तिल-तिल
संघर्ष मे, व्यंग बाणो से
कभी अपनो के तो
कभी परायो के।
"नयना"

सोंधी खुशबू

सीखती रही मैं उम्र भर
रोटी का
गोल बेला जाना
फिर भी पडती रही
सीलवटे उसमें
जो माकूल आग में
सिंकने पर भी
नहीं हो पाई सोंधी खुशबू वाली
नर्म और फूली -फूली

"नयना"

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

गुजारिश----मुठ्ठी से रेत

कैलेंडर  का पन्ना पलटते ही उसकी नजर तारीख़ पर थम गई। विवाह का दिन उसके आँखो के आगे चलचित्र सा घूम रहा था।.सुशिक्षित खुबसुरत नेहा और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक नीरज की जोडी को देख सब सिर्फ़ वाह-वाह करते रह गये थे.वक्त तेजी से गुज़र रहा था।.
जल्द ही नेहा की झोली मे प्यारे से दो जुडवा बच्चे बेटा नीरव और बेटी निशीता के रुप मे आ गये।.तभी --
वक्त ने अचानक करवट बदली बच्चों के पालन-पोषण मे व्यस्त नेहा खुद  पर व रिश्ते पर इतना ध्यान ना दे पाई । उसके  के हाथ से नीरज मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसलता चला गया और एक दिन विवाह की वर्षगांठ पर उस पर अनाकर्षक का तमगा लगाकर हमेशा के लिये चला गया किसी दुसरी  बेइन्तहां ख़ूबसूरत चित्ताकर्षक यौवना का हाथ थाम कर ।
वो एकल अभिभावक बन गई बच्चों की।
वो चार दिन की चाँदनी  थी कब तक चमकती अँधेरी रात तो होनी  ही थी. उसका सब कुछ उसकी सारी धन-दौलत,  बची- खुची इज़्ज़त मिट्टी में मिला कर जा चुकी थी। अब नेहा के पास लौटने अलावा कोई चारा ना था।
अचानक डोर बेल की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।दरवाज़ा खोलते ही ,सामने बढी  हुई दाढ़ी और अस्तव्यस्त कपड़ों मे नीरज को देख दरवाज़ा बंद करने--
" रुको नेहा !! मैं तुमसे अपनी ग़लती की माफ़ी मांगता हूँ ,तुमसे  सिर्फ़ एक गुज़ारिश है मुझे मेरे बच्चों से दूर ना करो" बच्चों का वास्ता देकर वो-वो गिड़गिड़ाने सा लगा--

"कौन से तुम्हारे बच्चे?? ज़िम्मेदारी से हाथ झटकने वाले को मेरे घर मे कोई जगह नही है।"

नयना(आरती) कानिटकर

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

"आभासी रंग"----चित्र प्रतियोगिता

"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है."
वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे.
"बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए  गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से  धरती माँ की गोद  मे  जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना
" बादल !!  ऐसा क्यो कह रहे हो. ये हरा रंग देखो चारो ओर कितना लुभावना है,प्रकृति का ही तो --."
" नही नही" हवा!!  अब यहाँ ना फूल है ,ना तितली,ना जंगली जानवर.बस! मानव निर्मित अट्टलिकाऎ है.अब हमे यहाँ नही रहना.
 यह तो आभासी है.इसे मानव ने हरे नोटो के साथ हरा रंग दिया है"
.
नयना(आरती) कानिटकर
05/12/2015

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

"अब लौट चले" व्यवहारिकता का चेहरा-लघु कथा के परिदे

सुरेखा कब से देख रही थी आज माँ-बाबूजी पता नहीं इतना क्या सामान समेट रहे है। बीच मे ही बाबूजी बैंक भी हो आए.एक दो बार उनके कमरे मे झांक भी आयी चाय देने के बहाने मगर पूछ ना पाई।
"माँ-बाबूजी नही दिख रहे ,कहाँ है.?"सुदेश ने पूछा
"अपने कमरे मे आज दिन भर से ना जाने क्या कर रहे है। मैं तो संकोच के मारे पूछ भी नही पा रही.तभी---
आप कहाँ जा रहे है बाबूजी आप ने पहले कुछ भी नहीं बताया.सुदेश बोल पडा--
मैं और माँ अब गाँव मे रहेंगे।
"हमसे क्या गलती हो गई माँ??,बाबूजी??"
बस बेटा गाँव का घर अब हमे पुकार रहा है.वहा हमारी १-२ बीघा ज़मीन है उसी मे भाजी- तरकारी लगा लेगे , फिर मेरी पेंशन काफ़ी है हम-दोनो के लिये,तुम चिंता ना करो।
बहुत भाग-दौड़ कर ली ता उम्र पैसे और तुम्हारी शिक्षा के लिये.अब बस सुकून के दो पल प्रकृति के सानिध्य मे बिताना चाहते  है.. ये हमारे वानप्रस्थाश्रम का समय है।
-- सुरेखा!!!ये लो इस घर की चाबियाँ आज से यह तुम्हारा हुआ।
पत्नी का हाथ थामते हुए बोले---"चलो जानकी!! अब लौट चले।"
नयना(आरती)कानिटकर
०४/१२/२०१५
मौलिक एंव अप्रकाशित
०४/१२/२०१५


हाँ बेटा हमारे पूर्वजो ने बडी सोच के साथ जीवन को ४ भागो मे विभाजित किया था

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

प्यार की गुलामी-कघुकथा के परिंदे गुलामी का अनुबंध

अंतिम सांस की आहट और खड़खड़ाहट गूंजती है अब भी कानों में मेरे. महसूसती हूँ आज भी अंतिम स्पर्श और सुनाई देती है अंतिम मौन की चीख ....
निर्जीव देह एक नही दो-दो---जीवन यात्रा का पूर्ण विराम.
वक्त के साथ सफर जारी है मेरा--मगर कब तक
’माँ उठो !! देखो ये पापा की तस्वीर के आगे कब तक यू सिर झुकाए ------"
"तेरे पापा के साथ मेरा अनुबंध था बेटा सात जन्मो का प्यार की गुलामी... . बहुत इंतजार किया बस अब और नहीं
ॐ नमो नरायण ॐ नमो नरायण ॐ शांति शांति शांति......
नयना(आरती) कानिटकर