शोध की विद्यार्थी स्नेहा की अचानक एक दिन मुलाकात बहुत बडे व्यवसायी चंदानी परिवार के आए.आए.एम. पास आउट समीर से होती है और बात आगे बढते हुए विवाह मे बदल जाती है।
माँ उसे बहुत समझाती है----
"बेटा!!! तुम्हारी शिक्षा और उसके व्यवसाय का आपस मे कोई मेल नही हो पाएगा । तुम्हारी सारी शिक्षा व्यर्थ चली जाएगी ,लेकिन प्रेम मे कायल स्नेहा तब कुछ सुनने को राजी नही होती और अंतत: विवाह कर समीर के घर आ जाती है।"
हनिमून से लौटने पर जब कॉलेज जाने की तैयारी करते देख ,अचानक परिवार मे यह घोषणा कर दी जाती है कि उसे अब पी.एच.डी.करने की कोई आवश्यकता नही। परिवार की बहुए बाहर किसी काम के लिये नही जा सकती। उसे यहाँ किसी चीज की कोई कमी नही होगी।
उसका सारा वजूद हिल जाता है।
"समीर !!! मैं अपना शोध पूरा करना चाहती हूँ । घर की महिलाओ के साथ सिर्फ़ गहने,कपड़ों और रसोई की बातों मे पूरा दिन काटना मेरे लिए असंभव है।शोध करते हुए भी मैं अपने कर्तव्य में कोई कमी नहीं आने दूँगी।
ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था स्नेहा!!!अब घरवालों की इच्छा के विरुद्ध मैं नही जा सकता। अब तुम्हें इनके साथ सामंजस्य बिठाना ही होगा।
मगर समीर!!!! तुम इतने पढ़-लिखे हो फिर मेरी बातों-----"
अंतत: निराश स्नेहा अपने माता- पिता से बात कर और अपने पी.एच.डी. के गाइड की मदद से होस्टल मे रहने की व्यवस्था कर लेती है।
"अरे स्नेहा!!! अचानक कहाँ जाने की तैयारी कर रही हो वो भी मुझे और किसी को बताए बीना."
" हा समीर !!! मैने जल्दी कर दी तुम्हें समझने में लेकिन अब गलती सुधार रही हूँ।
काश!! मैने माँ की बात सुन ली होती।
" उनके जीवन अनुभव और वजूद का सच्चा अर्थ आज मैने जाना ।"
माँ उसे बहुत समझाती है----
"बेटा!!! तुम्हारी शिक्षा और उसके व्यवसाय का आपस मे कोई मेल नही हो पाएगा । तुम्हारी सारी शिक्षा व्यर्थ चली जाएगी ,लेकिन प्रेम मे कायल स्नेहा तब कुछ सुनने को राजी नही होती और अंतत: विवाह कर समीर के घर आ जाती है।"
हनिमून से लौटने पर जब कॉलेज जाने की तैयारी करते देख ,अचानक परिवार मे यह घोषणा कर दी जाती है कि उसे अब पी.एच.डी.करने की कोई आवश्यकता नही। परिवार की बहुए बाहर किसी काम के लिये नही जा सकती। उसे यहाँ किसी चीज की कोई कमी नही होगी।
उसका सारा वजूद हिल जाता है।
"समीर !!! मैं अपना शोध पूरा करना चाहती हूँ । घर की महिलाओ के साथ सिर्फ़ गहने,कपड़ों और रसोई की बातों मे पूरा दिन काटना मेरे लिए असंभव है।शोध करते हुए भी मैं अपने कर्तव्य में कोई कमी नहीं आने दूँगी।
ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था स्नेहा!!!अब घरवालों की इच्छा के विरुद्ध मैं नही जा सकता। अब तुम्हें इनके साथ सामंजस्य बिठाना ही होगा।
मगर समीर!!!! तुम इतने पढ़-लिखे हो फिर मेरी बातों-----"
अंतत: निराश स्नेहा अपने माता- पिता से बात कर और अपने पी.एच.डी. के गाइड की मदद से होस्टल मे रहने की व्यवस्था कर लेती है।
"अरे स्नेहा!!! अचानक कहाँ जाने की तैयारी कर रही हो वो भी मुझे और किसी को बताए बीना."
" हा समीर !!! मैने जल्दी कर दी तुम्हें समझने में लेकिन अब गलती सुधार रही हूँ।
काश!! मैने माँ की बात सुन ली होती।
" उनके जीवन अनुभव और वजूद का सच्चा अर्थ आज मैने जाना ।"
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