प्रिय अभिषेक(नन्दन),
अनेको आशिर्वाद,
यह सुखद समाचार सुनकर खुशी हुई कि तुम internship करने जर्मनी जा रहे हो.मुझे वह दिन यद आया जब तुम अपनी शिक्षा के लिये आई-आई-टी पवई ज रहे थे तब रेल्वे स्थानक पर हम सब तुम्हें विदा करने आये थे तब तुम नयना-सुरेश के पुत्र, अभिलषा के भाई,अपने मित्रो का सहपाठी तो थे हि साथ ही भोपाल के अपने पडौसियो के भोपली भी थे। अब जब तुम जर्मनी जा रहे हो तो उपरोक्त तो
हो ही परन्तु अब तुम सर्वप्रथम भारतमाता के नागरिक वैदिक धर्म के मानने वाले समाज के प्रतिनिधी
भी हो.तुम्हे अब सर्वग्य होना चाहिये.कोई भी सुकर्म करते वक्त अपने आप में कमी महसूस न हो
अर्थात परशुराम के समान क्षात्र तेजवैश्य के समान अर्थशास्त्री व शुद्र के समान सेवाभावी भी होना चाहिये ये सभी गुण लेकर तुम जर्मनी ज रहे हो वहाँ तुम्हें अपना श्रेठत्व सिद्ध करना है.भारत कभी विश्वगुरु था उसे वह स्थान पुन: दिलाना है.
जर्मनी के विद्वान मक्समुलर जब भारत मे क्रिशचन धर्म के प्रचार के लिये आये थे तब उन्होने सर्वप्रथम संस्कृत भाषा का अभ्यास किया तथा अपने वेदो को जर्मन भाषा में अनुवादित करके सम्पुर्ण
विश्व के सामने रखा तथा वेदो को श्रेष्ठ बताया.उन्होने भारत से अनेक संस्कॄत ग्रंथो को जर्मनी मे ले जाकर उनसे ग्यान प्राप्त कर अनेको शोध लगाए .तुम जिस रसायनशास्त्र के अध्ययन के लिये जा रहे हो उस रसायनशास्त्र क मूल अपने अथर्ववेद में हे यह बात ध्यान रखना। जर्मनीमे तुम मुश्किल से ९० दिन रहोगे किन्तु उस कालावधि मे तुम्हें अनेको अच्छे-बुरे अनुभव आऎगे,प्रलोभन भी मिलेगे,अनेको कुमार्ग सुझाए जाएगे किन्तु पहले इन सब का मनन कर अपना मत तुम्हे बनाना होगा. आज तुम उस मोड पर खडे हो जहाँ से तुम्हारे माता-पिता,कुटुंबियो,समाज तथा धर्म ने जो संस्कार दिये हे उसकि परीक्षा होने वाली है.इस परीक्षा मे उत्तीर्ण होकर एक सुविग्य भारतीय बनकर वापसी कि प्रतिक्षा हम करेगें. पर्यटन से जीवन मे अनुभवों का पिटारा मिलता हे अत: जब भी वक्त मिले आसपास के देश -रोम ,इटली,फ्रान्स आदि देखने का प्रयत्न करना.आर्थिक मदद तुम्हें मिलेगी ही. जर्मनी मे तुम्हें भाषा कि समस्या आ सकती हे यह मैं अपने अनुभव से बता रहा हुँ.मै सिर्फ १०वी पास करके केरल मे ट्रेनिंग के लिये गया था तब मुझे सिर्फ मराठी,हिन्दी आता था अंग्रेजी समझता तो था किन्तु फर्राटेदार बोल नहि पाता था और समझ भी नहि पाता था.शुरुआत मे बडी तकलीफ उठानी पडी लेकिन जल्द ही मलयाली सीख गया .वैसे अब तो जर्मनी मे अंग्रेजी के जानकार बहुत होगे फिर भी वहाँ सब व्यवहार जर्मनी मे होते हे ऎसा ग्यात हुआ हे
तुम भी जर्मनी सिखने कि कोशिश करना यह एक additional qualification होगा.आजकल दूरभाष के महाजाल से तुम्हे अच्छी सुविधा हे अपनो के सम्पर्क मे रहने की फिर भि अपनी प्रकृति को सम्हालना.लिखने को बहुत हे लेकिन अब बस.हमारे आशिर्वाद तुम्हारे साथ है।
जय हिन्द-जय भारत
सिर्फ तुम्हारा नाना
लेबल
- अनुवाद (7)
- कुछ पत्र (2)
- कुछ मन का (12)
- मराठी कविता (3)
- मेरा परिचय (1)
- मेरी कविता (65)
- मेरी पसन्द की कविता (1)
- लघु कथा (84)
- लघुकथा (17)
गुरुवार, 31 मार्च 2011
शनिवार, 19 मार्च 2011
शब्दों की होली
आओ खेले हम होली
अक्षरो के सागर में
शब्दों कि हो नाव
लेकर हाथ मे कलम
रंग स्याही का साथ
पर्व ये ऐसा जब
रंग खिले
बैर और दुश्मनी के
सब दंभ धूले
होठों पर गीत फाग
ढपली पर बजे राग
आओ खेले होली
शब्दों के साथ
प्रकृति के आतंकी प्रहार से
धरती हे डोली---(जापान में)
खो गई है हँसी-ठिठोली
कैसे खेले हम रंगो की होली
आओ खेले होली
हम शब्दों के साथ
पतझड सी जले बुराई
नये कपोलो सी
अच्छाई हो संग
बिन पानी के हम
शब्दों के खेले रंग
अबीर गुलाल तो बहाना है
दिल को दिल के
करीब लाना है
शब्दों कि होली आज
मनाना है
अक्षरो के सागर में
शब्दों कि हो नाव
लेकर हाथ मे कलम
रंग स्याही का साथ
पर्व ये ऐसा जब
रंग खिले
बैर और दुश्मनी के
सब दंभ धूले
होठों पर गीत फाग
ढपली पर बजे राग
आओ खेले होली
शब्दों के साथ
प्रकृति के आतंकी प्रहार से
धरती हे डोली---(जापान में)
खो गई है हँसी-ठिठोली
कैसे खेले हम रंगो की होली
आओ खेले होली
हम शब्दों के साथ
पतझड सी जले बुराई
नये कपोलो सी
अच्छाई हो संग
बिन पानी के हम
शब्दों के खेले रंग
अबीर गुलाल तो बहाना है
दिल को दिल के
करीब लाना है
शब्दों कि होली आज
मनाना है
मंगलवार, 8 मार्च 2011
पहचान से
जीना है हरपल,
खुदकी अपनी---
पहचान से
पूरी करना हरपल
ख्वाहीशे अपनी
पहचान से
नजरिया समाज क हरपल
बदलेगे अपनी
पहचान से
बहेगे नदी कि तरह
निरन्तर अपनी
पहचान से
रुके कन्या भृण हत्या हरपल
लडेंगे अपनी
पहचान से
नही झूकेंगे दहेज कि वेदी पर हरपल
डटेंगे निर्णय पर अपने
पहचान से
शंखनाद करेगे हरपल
वजूद का अपनी
पहचान से
प्रकृति द्वरा निर्धारीत
मकसद में हरपल
जीएंगे इत्मिनान से
पहचान से
खुदकी अपनी---
पहचान से
पूरी करना हरपल
ख्वाहीशे अपनी
पहचान से
नजरिया समाज क हरपल
बदलेगे अपनी
पहचान से
बहेगे नदी कि तरह
निरन्तर अपनी
पहचान से
रुके कन्या भृण हत्या हरपल
लडेंगे अपनी
पहचान से
नही झूकेंगे दहेज कि वेदी पर हरपल
डटेंगे निर्णय पर अपने
पहचान से
शंखनाद करेगे हरपल
वजूद का अपनी
पहचान से
प्रकृति द्वरा निर्धारीत
मकसद में हरपल
जीएंगे इत्मिनान से
पहचान से
शुक्रवार, 4 मार्च 2011
आओ बात करे
आओ कुछ बात करे
अपने मन के द्वार को खोंल
अहंम कि श्रृंखला को तोड़
मौन को पिले पात सा तोड़
आओ कुछ बात करे
अंधेरे बादल को पिछे छोड
गम से तुरंत नाता तोड़
खुद को सूरज कि किरनो से जोड
आओ कुछ बात करे
कुछ नाता गली से जोड
अकेलेपन को कोलहल से जोड
मन को सडक के शोर से जोड
आओ कुछ बत करे
दुसरे के दर्द का अमॄत पीकर
अनागत के नए सपने बुनकर
मन के बंद दरवाजे खोलकर
आओ खुछ बात करे
आओ कुछ बात करे
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
तेरे मेरे बीच कि डोर
खिंचना नहि----
सिंचना चाहती हूँ
तेरे मेरे बीच के फासले को
बाँटना नही-----
पाटना चाहती हूं
तेरे मेरे बीच के बन्धन कों
गांठ से नही
ह्र्दय से जोडना चहती हूँ
अब तक अपने आप मे सिमटकर
बहुत जीया मैंने----
अब सागर की लहरों को
पार करना चहती हूँ
अपनी मर्यादा जानती हूँ
पंख फैलाकर आकाश में
उडना चाहती हूँ
फूँल और काँटॊ की बगिया
बहुत जीया मैने
खूशबू के समंदर मे
तैरना चहती हूँ
जीना चहती हूँ
खिंचना नहि----
सिंचना चाहती हूँ
तेरे मेरे बीच के फासले को
बाँटना नही-----
पाटना चाहती हूं
तेरे मेरे बीच के बन्धन कों
गांठ से नही
ह्र्दय से जोडना चहती हूँ
अब तक अपने आप मे सिमटकर
बहुत जीया मैंने----
अब सागर की लहरों को
पार करना चहती हूँ
अपनी मर्यादा जानती हूँ
पंख फैलाकर आकाश में
उडना चाहती हूँ
फूँल और काँटॊ की बगिया
बहुत जीया मैने
खूशबू के समंदर मे
तैरना चहती हूँ
जीना चहती हूँ
सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
जब झोलि मे आया एक और सितरा
उफनते सागर को मिल गया एक किनरा
तुमने मेरे बाग को हरा-भरा कर दिया
मेरे घर में फिर चिराग रौशन कर दिया
एहसास हो मेरे जीवन का, धडकन का
तुम अब सहरा बनो इस नदी के तट का
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-----
मैं अब मौन रहू अब तुम गाओ
फूले अमलतास जैसे खिल जाओ
नहीं आज तुम पर कोई पहरे
जीवन के दिन हो सुन्दर सुनहरे
तुम दीप कि तरह जगमगओ
तुम सृष्टी की सुरभि बन जओ
क्योकीं मेरा-
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-
उफनते सागर को मिल गया एक किनरा
तुमने मेरे बाग को हरा-भरा कर दिया
मेरे घर में फिर चिराग रौशन कर दिया
एहसास हो मेरे जीवन का, धडकन का
तुम अब सहरा बनो इस नदी के तट का
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-----
मैं अब मौन रहू अब तुम गाओ
फूले अमलतास जैसे खिल जाओ
नहीं आज तुम पर कोई पहरे
जीवन के दिन हो सुन्दर सुनहरे
तुम दीप कि तरह जगमगओ
तुम सृष्टी की सुरभि बन जओ
क्योकीं मेरा-
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
तुम मृगनयनि तुम सुर लहरी
तुम उल्लास भरी सी आई हो
भरे हुए सुनेपन मे तुम
मेरा अभिमान भरी सी आई हो
आज ह्रदय मे बस गयी हो
तुम असीम उन्माद लिये
ह्न्सने और ह्साने को
तुम हसती- हसती आई हो
तुम मे लय होकर अभिलाषा
एक बार सकार बनी
तुम सुख का संसार लिये
आज ह्रदय मे आई हो
बरस पडी हो मेरी धरा पे
तुम सहसा रस धार बनी
मंथर गति मे मेरे जीवन के
रंग भरने तुम आई हो
तुम क्या जानो मेरे मन में
कितने युग कि हे प्यास भरी
एक सहज सुन्दर साथ लिये
अमॄत बरसाने तुम आई हो
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