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बुधवार, 30 सितंबर 2015
मंगलवार, 29 सितंबर 2015
स्त्री-सखी क्लब
स्त्री सखी महिला क्लब की अध्यक्षा आभा तिवारी क्लब की सदस्यो को संबोधित कर कहती है--सखियो!!!!
" ये है सरल तनेजा ये हमारे "स्त्री-सखी " क्लब की नयी सदस्या इनके पति इन्कम टेक्स विभाग मे ऊँचे ओहदे पर है और ये स्वंय भी कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण है.
"कमनीय काया आधुनिक वस्त्रो,बाब्ड केश विन्यास,गहरे मेकअप मे वे सभी से हाथ जोड मिठे स्वर मे कहती है--"
"धन्यवाद सखियो आप लोगो से मिलकर बडा अच्छा लग रहा है."
सभी सदस्यो के बीच उनकी उम्र को लेकर कनाफुसी शुरु हो जाती है.हरेक अपना-अपना अंदाज़ लगाने मे व्यस्त है.
तभी आज खेले जाने वाले विभिन्न स्पर्धाओ की घोषणा होती है.
जैसा कि हमेशा होता है कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण सरल तनेजा का आज डंका बज उठता है.सभी सखियाँ उन्हे घेर तरह-तरह के सवाल करती है साथ ही हँसने-हँसाने का दौर जारी है कि अचानक--
"रात्रि भोज का स्वाद लेने कि घोषणा आभा जी करती है"
हम उम्र सखियो के ३-४ समूह बना सभी का भोजन के साथ साथ विभिन्न चर्चाओं का दौर चल रहा है,जिसमे सरल जी की उम्र,पति का ओहदा मुख्य है.
सरल जी भी सभी से बारी-बारी से मुखातिब हो रही है कि----.
अचानक उनकी उँची आवाज़ सुन सखिया मुड के देखती है तो---
सरल जी सिनियर महिलाओ के समूह मे जहाँ अपनी-अपनी बहुओ की हुआ--हुआ चल रही है,
वे अपनी ओढी उम्र भुला सबके सुर-में-सुर मिलाकर बहु की ‘हुआ-हुआ’------------
बाकी सखियाँ अचंभित और आवाक -----
" ये है सरल तनेजा ये हमारे "स्त्री-सखी " क्लब की नयी सदस्या इनके पति इन्कम टेक्स विभाग मे ऊँचे ओहदे पर है और ये स्वंय भी कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण है.
"कमनीय काया आधुनिक वस्त्रो,बाब्ड केश विन्यास,गहरे मेकअप मे वे सभी से हाथ जोड मिठे स्वर मे कहती है--"
"धन्यवाद सखियो आप लोगो से मिलकर बडा अच्छा लग रहा है."
सभी सदस्यो के बीच उनकी उम्र को लेकर कनाफुसी शुरु हो जाती है.हरेक अपना-अपना अंदाज़ लगाने मे व्यस्त है.
तभी आज खेले जाने वाले विभिन्न स्पर्धाओ की घोषणा होती है.
जैसा कि हमेशा होता है कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण सरल तनेजा का आज डंका बज उठता है.सभी सखियाँ उन्हे घेर तरह-तरह के सवाल करती है साथ ही हँसने-हँसाने का दौर जारी है कि अचानक--
"रात्रि भोज का स्वाद लेने कि घोषणा आभा जी करती है"
हम उम्र सखियो के ३-४ समूह बना सभी का भोजन के साथ साथ विभिन्न चर्चाओं का दौर चल रहा है,जिसमे सरल जी की उम्र,पति का ओहदा मुख्य है.
सरल जी भी सभी से बारी-बारी से मुखातिब हो रही है कि----.
अचानक उनकी उँची आवाज़ सुन सखिया मुड के देखती है तो---
सरल जी सिनियर महिलाओ के समूह मे जहाँ अपनी-अपनी बहुओ की हुआ--हुआ चल रही है,
वे अपनी ओढी उम्र भुला सबके सुर-में-सुर मिलाकर बहु की ‘हुआ-हुआ’------------
बाकी सखियाँ अचंभित और आवाक -----
सोमवार, 28 सितंबर 2015
पितर श्राद्ध
घर मे कोहराम मचा हुआ है.घर की इकलौती सुंदर-शिक्षित कन्या ने अपने सहपाठी प्रेमी से विवाह रचाने का निर्णय लिया है.
सासू माँ चिल्ला-चिल्ला कर जता रही है.यह सब हमारी करनी का फल है.
कई बार कहाँ दादा परदादा का पितर श्राद्ध एक बार" गया " या "नासिक" जाकर करवा लो.उनका आशिर्वाद ले लो वरना हमे मुश्किलें झेलनी पड़ेगी अगर पितृ-दोष लग गया तो .मगर मेरी सुनो तब नाSSSSS"
अब पछताओ भोगो अब" लेखा" की करनी को.
"दादी आप भी कौन सी बात को कहाँ ले जा रही है" मैने तो सिर्फ़ अपनी पसंद----"
"तुम चुप करो लेखा"------
"माँ पितर श्राद्ध का लेखा के निर्णय से क्या लेना देना." बीच मे टॊकते बहू ने बोला.
"है !! जो पितृ-दोष लगा है ना इसकी कुंडली मे इससे इसका मनमाना विवाह जल्द टूट जाएगा.हम समाज मे मुँ दिखाने के काबिल ना होगे."
"माँ!!!क्या कोई अपनी वंश की संतति को आशीर्वाद से अछूता रखेगा.? ऎसा कुछ ना होगा-- पितृ-दोष वगैरा कुछ नहीं होता"
" मगर सासु माँ तो बोलती ही जा रही थी----"
"लेखा का हाथ थाम वह कमरे से बाहर निकल गई"
नयना(आरती) कानिटकर
२८/०९/२०१५
सासू माँ चिल्ला-चिल्ला कर जता रही है.यह सब हमारी करनी का फल है.
कई बार कहाँ दादा परदादा का पितर श्राद्ध एक बार" गया " या "नासिक" जाकर करवा लो.उनका आशिर्वाद ले लो वरना हमे मुश्किलें झेलनी पड़ेगी अगर पितृ-दोष लग गया तो .मगर मेरी सुनो तब नाSSSSS"
अब पछताओ भोगो अब" लेखा" की करनी को.
"दादी आप भी कौन सी बात को कहाँ ले जा रही है" मैने तो सिर्फ़ अपनी पसंद----"
"तुम चुप करो लेखा"------
"माँ पितर श्राद्ध का लेखा के निर्णय से क्या लेना देना." बीच मे टॊकते बहू ने बोला.
"है !! जो पितृ-दोष लगा है ना इसकी कुंडली मे इससे इसका मनमाना विवाह जल्द टूट जाएगा.हम समाज मे मुँ दिखाने के काबिल ना होगे."
"माँ!!!क्या कोई अपनी वंश की संतति को आशीर्वाद से अछूता रखेगा.? ऎसा कुछ ना होगा-- पितृ-दोष वगैरा कुछ नहीं होता"
" मगर सासु माँ तो बोलती ही जा रही थी----"
"लेखा का हाथ थाम वह कमरे से बाहर निकल गई"
नयना(आरती) कानिटकर
२८/०९/२०१५
शुक्रवार, 25 सितंबर 2015
उम्मीदे
ना उम्मीदी के इन दिनो में भी
जब झाँकती हूँ,खिडकी से बाहर
दो हँसती आँखे पिछा करती है
फिर ख्वाब की जंजीर बनती है
सौदा कर लेती हूँ लूढकी बूँदो से
उम्मीदो के नये सपने बुनने का
जब झाँकती हूँ,खिडकी से बाहर
दो हँसती आँखे पिछा करती है
फिर ख्वाब की जंजीर बनती है
सौदा कर लेती हूँ लूढकी बूँदो से
उम्मीदो के नये सपने बुनने का
इबादत
शाजिया को पुलिस के कडे सुरक्षा घेरे के बीच उसे न्यायालय परिसर मे लाया गया था.
बिरादरी और आम लोगो की नज़रों से बचने के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई थी. उसे अपने किये का जरा भी रंज नही था.
कल रात सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था.तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
अल भोर सुबह के धुंदलके मे उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ था . तब उसने
बडी हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर दिया.
आतंकी चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड गया और अंत में वही हुआ ------
अब्बा को भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर अल्लाह की सच्ची इबादत की है.
बिरादरी और आम लोगो की नज़रों से बचने के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई थी. उसे अपने किये का जरा भी रंज नही था.
कल रात सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था.तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
अल भोर सुबह के धुंदलके मे उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ था . तब उसने
बडी हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर दिया.
आतंकी चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड गया और अंत में वही हुआ ------
अब्बा को भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर अल्लाह की सच्ची इबादत की है.
सोमवार, 21 सितंबर 2015
----नियती--
रुपकुँवर की उम्र मात्र १५-१६ बरस की है.उसके रुप-सौंदर्य का डंका चारों ओर बज रहा है.
कोमल मना नृत्य-संगीत की शिक्षा मे भी पारंगत हो चूँकि है.
तभी केसर बाई घोषणा करती है कि आज से ठिक १५ दिन बाद हमारे विधिवत विधान के अनुसार रुपकुँवर को--------.
वो दिन आ पहुँचता है और रुपकुँवर को विधीवत संस्कार कर "-----" के पास पहुँचा दिया जाता है.
इधर केसर बाई की रात भी आँखो मे गुज़र जाती है कि तभी.
अचानक कोमल मना रुपकुँवर भाग कर आती है और केसर बाई की गोद मे समा कर फूट-फूट कर रोने लगती है.रोते-रोते बोलती जाती है---
केसर बाई उसकी बाते सुनते हुए उसे जी भर-भरकर रोने देती है.
अपनी गोद से हौले से उसका सिर उठाकर कहती है ,मजबूत हो जा मेरी जान हमारी नियती यही है "रात गयी- बात गयी."
शुक्रवार, 18 सितंबर 2015
संस्कृती---(पहचान-१)
बालकनी की गुनगुनी धूप में बैठी नाजुक स्वेटर की बुनाई करती आभा के हाथ ,बहू की आवाज से अचानक थम जाते है.
ओहो !!!!! माँ आप ये सब क्यो करती रहती है,वो भी बालकनी मे बैठकर.आप जानती है ना कालोनी मे आपके बेटे की पहचान एक नामचिन रईस के रुप मे है.सब क्या सोचते होगे कि----------
आभा मन ही मन सोचती है कि इन फंदो की तरह ही तो हमने अपने रिश्ते बूने है मजबूत और सुंदर. हाथ से बनेइस स्वेटर की अहमियत को तुम क्या जानो कितने प्यार और अपनेपन की गरमाहट है
इनमे. !!!!!यही तो हमारे संस्कार और संस्कृती की पहचान है.
डर है तो ये की अंतरजाल की दुनिया मे अपनी पहचान ढूँढते-ढूँढते कही यह नई पिढी --------????
ओहो !!!!! माँ आप ये सब क्यो करती रहती है,वो भी बालकनी मे बैठकर.आप जानती है ना कालोनी मे आपके बेटे की पहचान एक नामचिन रईस के रुप मे है.सब क्या सोचते होगे कि----------
आभा मन ही मन सोचती है कि इन फंदो की तरह ही तो हमने अपने रिश्ते बूने है मजबूत और सुंदर. हाथ से बनेइस स्वेटर की अहमियत को तुम क्या जानो कितने प्यार और अपनेपन की गरमाहट है
इनमे. !!!!!यही तो हमारे संस्कार और संस्कृती की पहचान है.
डर है तो ये की अंतरजाल की दुनिया मे अपनी पहचान ढूँढते-ढूँढते कही यह नई पिढी --------????
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