शुक्रवार, 4 मार्च 2011

आओ बात करे

आओ कुछ बात करे

अपने मन के द्वार को खोंल

अहंम कि श्रृंखला को तोड़

मौन को पिले पात सा तोड़

आओ कुछ बात करे

अंधेरे बादल को पिछे छोड

गम से तुरंत नाता तोड़

खुद को सूरज कि किरनो से जोड

आओ कुछ बात करे

कुछ नाता गली से जोड

अकेलेपन को कोलहल से जोड

मन को सडक के शोर से जोड

आओ कुछ बत करे

दुसरे के दर्द का अमॄत पीकर

अनागत के नए सपने बुनकर

मन के बंद दरवाजे खोलकर

आओ खुछ बात करे

आओ कुछ बात करे

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

तेरे मेरे बीच कि डोर
खिंचना नहि----
सिंचना चाहती हूँ
तेरे मेरे बीच के फासले को
बाँटना नही-----
पाटना चाहती हूं
तेरे मेरे बीच के बन्धन कों
गांठ से नही
ह्र्दय से जोडना चहती हूँ
अब तक अपने आप मे सिमटकर
बहुत जीया मैंने----
अब सागर की लहरों को
पार करना चहती हूँ
अपनी मर्यादा जानती हूँ
पंख फैलाकर आकाश में
उडना चाहती हूँ
फूँल और काँटॊ की बगिया
बहुत जीया मैने
खूशबू के समंदर मे
तैरना चहती हूँ
जीना चहती हूँ







सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

जब झोलि मे आया एक और सितरा
उफनते सागर को मिल गया एक किनरा
तुमने मेरे बाग को हरा-भरा कर दिया
मेरे घर में फिर चिराग रौशन कर दिया
एहसास हो मेरे जीवन का, धडकन का
तुम अब सहरा बनो इस नदी के तट का
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-----
मैं अब मौन रहू अब तुम गाओ
फूले अमलतास जैसे खिल जाओ
नहीं आज तुम पर कोई पहरे
जीवन के दिन हो सुन्दर सुनहरे
तुम दीप कि तरह जगमगओ
तुम सृष्टी की सुरभि बन जओ
क्योकीं मेरा-
दिल कहता हे अब तुम भी सुन लो
तुम मेरे हो,तुम मेरे हो-

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

तुम मृगनयनि तुम सुर लहरी

तुम उल्लास भरी सी आई ह

भरे हुए सुनेपन मे तुम

मेरा अभिमान भरी सी आई हो

आज ह्रदय मे बस गयी हो

तुम असीम उन्माद लिये

ह्न्सने और ह्साने को

तुम हसती- हसती आई हो

तुम मे लय होकर अभिलाषा

एक बार सकार बनी

तुम सुख का संसार लिये

आज ह्रदय मे आई हो

बरस पडी हो मेरी धरा पे

तुम सहसा रस धार बनी

मंथर गति मे मेरे जीवन के

रंग भरने तुम आई हो

तुम क्या जानो मेरे मन में

कितने युग कि हे प्यास भरी

एक सहज सुन्दर साथ लिये

अमॄत बरसाने तुम आई हो

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

मन के किसी कोने मे ,
तुफ़ान घुमड रहा हे.
क्या थी क्या हू मै,
मन बारबार बैचेन कर रहा है.
कहने को बहुत कुछ मगर कह न सकी,
नहि जानती क्यो मगर होन सका ये.
नही जनाती कब तक .....
चलता रहेगा यही फ़साना
कभी कह ना पाऊगी
क्या मै दिल क तराना.
अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ

डालोअरे ओ रोशनी

वालों बुरे हम हैं नहीं इतने,

ज़रा देखो हमें भालो अरे ओ रोशनी वालों ...
क़फ़न से ढाँप कर बैठे हैं हम सपनों की लाशों को

जो क़िस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों

को हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खा

लो अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ

सपने सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने

जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो

अरे ओ रोशनी वालों ...

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

मेरी सहेलि अर्चना के ब्लोग से प्रेरना लेकर मै भी प्रयत्न कर रहि हू।अर्चना और मै कई सालो बाद फ़ेसबुक पर मिले।फिर हमने एक और सहेलि को खोज निकला जिसका नाम नीता है।बहुत नजदीकि रिश्ता रहा था हमलोगों मे.