लेबल
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- कुछ पत्र (2)
- कुछ मन का (12)
- मराठी कविता (3)
- मेरा परिचय (1)
- मेरी कविता (65)
- मेरी पसन्द की कविता (1)
- लघु कथा (84)
- लघुकथा (17)
बुधवार, 30 सितंबर 2015
मंगलवार, 29 सितंबर 2015
स्त्री-सखी क्लब
स्त्री सखी महिला क्लब की अध्यक्षा आभा तिवारी क्लब की सदस्यो को संबोधित कर कहती है--सखियो!!!!
" ये है सरल तनेजा ये हमारे "स्त्री-सखी " क्लब की नयी सदस्या इनके पति इन्कम टेक्स विभाग मे ऊँचे ओहदे पर है और ये स्वंय भी कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण है.
"कमनीय काया आधुनिक वस्त्रो,बाब्ड केश विन्यास,गहरे मेकअप मे वे सभी से हाथ जोड मिठे स्वर मे कहती है--"
"धन्यवाद सखियो आप लोगो से मिलकर बडा अच्छा लग रहा है."
सभी सदस्यो के बीच उनकी उम्र को लेकर कनाफुसी शुरु हो जाती है.हरेक अपना-अपना अंदाज़ लगाने मे व्यस्त है.
तभी आज खेले जाने वाले विभिन्न स्पर्धाओ की घोषणा होती है.
जैसा कि हमेशा होता है कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण सरल तनेजा का आज डंका बज उठता है.सभी सखियाँ उन्हे घेर तरह-तरह के सवाल करती है साथ ही हँसने-हँसाने का दौर जारी है कि अचानक--
"रात्रि भोज का स्वाद लेने कि घोषणा आभा जी करती है"
हम उम्र सखियो के ३-४ समूह बना सभी का भोजन के साथ साथ विभिन्न चर्चाओं का दौर चल रहा है,जिसमे सरल जी की उम्र,पति का ओहदा मुख्य है.
सरल जी भी सभी से बारी-बारी से मुखातिब हो रही है कि----.
अचानक उनकी उँची आवाज़ सुन सखिया मुड के देखती है तो---
सरल जी सिनियर महिलाओ के समूह मे जहाँ अपनी-अपनी बहुओ की हुआ--हुआ चल रही है,
वे अपनी ओढी उम्र भुला सबके सुर-में-सुर मिलाकर बहु की ‘हुआ-हुआ’------------
बाकी सखियाँ अचंभित और आवाक -----
" ये है सरल तनेजा ये हमारे "स्त्री-सखी " क्लब की नयी सदस्या इनके पति इन्कम टेक्स विभाग मे ऊँचे ओहदे पर है और ये स्वंय भी कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण है.
"कमनीय काया आधुनिक वस्त्रो,बाब्ड केश विन्यास,गहरे मेकअप मे वे सभी से हाथ जोड मिठे स्वर मे कहती है--"
"धन्यवाद सखियो आप लोगो से मिलकर बडा अच्छा लग रहा है."
सभी सदस्यो के बीच उनकी उम्र को लेकर कनाफुसी शुरु हो जाती है.हरेक अपना-अपना अंदाज़ लगाने मे व्यस्त है.
तभी आज खेले जाने वाले विभिन्न स्पर्धाओ की घोषणा होती है.
जैसा कि हमेशा होता है कई कलाओ ,विधाओ मे निपुण सरल तनेजा का आज डंका बज उठता है.सभी सखियाँ उन्हे घेर तरह-तरह के सवाल करती है साथ ही हँसने-हँसाने का दौर जारी है कि अचानक--
"रात्रि भोज का स्वाद लेने कि घोषणा आभा जी करती है"
हम उम्र सखियो के ३-४ समूह बना सभी का भोजन के साथ साथ विभिन्न चर्चाओं का दौर चल रहा है,जिसमे सरल जी की उम्र,पति का ओहदा मुख्य है.
सरल जी भी सभी से बारी-बारी से मुखातिब हो रही है कि----.
अचानक उनकी उँची आवाज़ सुन सखिया मुड के देखती है तो---
सरल जी सिनियर महिलाओ के समूह मे जहाँ अपनी-अपनी बहुओ की हुआ--हुआ चल रही है,
वे अपनी ओढी उम्र भुला सबके सुर-में-सुर मिलाकर बहु की ‘हुआ-हुआ’------------
बाकी सखियाँ अचंभित और आवाक -----
सोमवार, 28 सितंबर 2015
पितर श्राद्ध
घर मे कोहराम मचा हुआ है.घर की इकलौती सुंदर-शिक्षित कन्या ने अपने सहपाठी प्रेमी से विवाह रचाने का निर्णय लिया है.
सासू माँ चिल्ला-चिल्ला कर जता रही है.यह सब हमारी करनी का फल है.
कई बार कहाँ दादा परदादा का पितर श्राद्ध एक बार" गया " या "नासिक" जाकर करवा लो.उनका आशिर्वाद ले लो वरना हमे मुश्किलें झेलनी पड़ेगी अगर पितृ-दोष लग गया तो .मगर मेरी सुनो तब नाSSSSS"
अब पछताओ भोगो अब" लेखा" की करनी को.
"दादी आप भी कौन सी बात को कहाँ ले जा रही है" मैने तो सिर्फ़ अपनी पसंद----"
"तुम चुप करो लेखा"------
"माँ पितर श्राद्ध का लेखा के निर्णय से क्या लेना देना." बीच मे टॊकते बहू ने बोला.
"है !! जो पितृ-दोष लगा है ना इसकी कुंडली मे इससे इसका मनमाना विवाह जल्द टूट जाएगा.हम समाज मे मुँ दिखाने के काबिल ना होगे."
"माँ!!!क्या कोई अपनी वंश की संतति को आशीर्वाद से अछूता रखेगा.? ऎसा कुछ ना होगा-- पितृ-दोष वगैरा कुछ नहीं होता"
" मगर सासु माँ तो बोलती ही जा रही थी----"
"लेखा का हाथ थाम वह कमरे से बाहर निकल गई"
नयना(आरती) कानिटकर
२८/०९/२०१५
सासू माँ चिल्ला-चिल्ला कर जता रही है.यह सब हमारी करनी का फल है.
कई बार कहाँ दादा परदादा का पितर श्राद्ध एक बार" गया " या "नासिक" जाकर करवा लो.उनका आशिर्वाद ले लो वरना हमे मुश्किलें झेलनी पड़ेगी अगर पितृ-दोष लग गया तो .मगर मेरी सुनो तब नाSSSSS"
अब पछताओ भोगो अब" लेखा" की करनी को.
"दादी आप भी कौन सी बात को कहाँ ले जा रही है" मैने तो सिर्फ़ अपनी पसंद----"
"तुम चुप करो लेखा"------
"माँ पितर श्राद्ध का लेखा के निर्णय से क्या लेना देना." बीच मे टॊकते बहू ने बोला.
"है !! जो पितृ-दोष लगा है ना इसकी कुंडली मे इससे इसका मनमाना विवाह जल्द टूट जाएगा.हम समाज मे मुँ दिखाने के काबिल ना होगे."
"माँ!!!क्या कोई अपनी वंश की संतति को आशीर्वाद से अछूता रखेगा.? ऎसा कुछ ना होगा-- पितृ-दोष वगैरा कुछ नहीं होता"
" मगर सासु माँ तो बोलती ही जा रही थी----"
"लेखा का हाथ थाम वह कमरे से बाहर निकल गई"
नयना(आरती) कानिटकर
२८/०९/२०१५
शुक्रवार, 25 सितंबर 2015
उम्मीदे
ना उम्मीदी के इन दिनो में भी
जब झाँकती हूँ,खिडकी से बाहर
दो हँसती आँखे पिछा करती है
फिर ख्वाब की जंजीर बनती है
सौदा कर लेती हूँ लूढकी बूँदो से
उम्मीदो के नये सपने बुनने का
जब झाँकती हूँ,खिडकी से बाहर
दो हँसती आँखे पिछा करती है
फिर ख्वाब की जंजीर बनती है
सौदा कर लेती हूँ लूढकी बूँदो से
उम्मीदो के नये सपने बुनने का
इबादत
शाजिया को पुलिस के कडे सुरक्षा घेरे के बीच उसे न्यायालय परिसर मे लाया गया था.
बिरादरी और आम लोगो की नज़रों से बचने के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई थी. उसे अपने किये का जरा भी रंज नही था.
कल रात सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था.तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
अल भोर सुबह के धुंदलके मे उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ था . तब उसने
बडी हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर दिया.
आतंकी चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड गया और अंत में वही हुआ ------
अब्बा को भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर अल्लाह की सच्ची इबादत की है.
बिरादरी और आम लोगो की नज़रों से बचने के लिये वह अपना मुँह ढाक पिता के पिछे-पिछे चली आई थी. उसे अपने किये का जरा भी रंज नही था.
कल रात सेना और आतंकी मुठभेड़ मे एक आतंकी उनके घर मे घुस आया था.तब डर के मारे उन्होने उसे पनाह दी थी मगर----
अल भोर सुबह के धुंदलके मे उसे अचानक अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ था . तब उसने
बडी हिम्मत से काम ले अपने सिरहाने रखी दराती (हँसिया) उठा अचानक उसके दोनो हाथों पर ज़बरदस्त वार कर दिया.
आतंकी चिखते हुए भागने की कोशिश मे उसके पिता के हाथ पड गया और अंत में वही हुआ ------
अब्बा को भी अपने किये का ना कोई दुख ,ना कोई शिकन ---
.ईद के मौके पर आज उनकी बेटी ने बिरादरी पर लगे कलंक की बलि देकर अल्लाह की सच्ची इबादत की है.
सोमवार, 21 सितंबर 2015
----नियती--
रुपकुँवर की उम्र मात्र १५-१६ बरस की है.उसके रुप-सौंदर्य का डंका चारों ओर बज रहा है.
कोमल मना नृत्य-संगीत की शिक्षा मे भी पारंगत हो चूँकि है.
तभी केसर बाई घोषणा करती है कि आज से ठिक १५ दिन बाद हमारे विधिवत विधान के अनुसार रुपकुँवर को--------.
वो दिन आ पहुँचता है और रुपकुँवर को विधीवत संस्कार कर "-----" के पास पहुँचा दिया जाता है.
इधर केसर बाई की रात भी आँखो मे गुज़र जाती है कि तभी.
अचानक कोमल मना रुपकुँवर भाग कर आती है और केसर बाई की गोद मे समा कर फूट-फूट कर रोने लगती है.रोते-रोते बोलती जाती है---
केसर बाई उसकी बाते सुनते हुए उसे जी भर-भरकर रोने देती है.
अपनी गोद से हौले से उसका सिर उठाकर कहती है ,मजबूत हो जा मेरी जान हमारी नियती यही है "रात गयी- बात गयी."
शुक्रवार, 18 सितंबर 2015
संस्कृती---(पहचान-१)
बालकनी की गुनगुनी धूप में बैठी नाजुक स्वेटर की बुनाई करती आभा के हाथ ,बहू की आवाज से अचानक थम जाते है.
ओहो !!!!! माँ आप ये सब क्यो करती रहती है,वो भी बालकनी मे बैठकर.आप जानती है ना कालोनी मे आपके बेटे की पहचान एक नामचिन रईस के रुप मे है.सब क्या सोचते होगे कि----------
आभा मन ही मन सोचती है कि इन फंदो की तरह ही तो हमने अपने रिश्ते बूने है मजबूत और सुंदर. हाथ से बनेइस स्वेटर की अहमियत को तुम क्या जानो कितने प्यार और अपनेपन की गरमाहट है
इनमे. !!!!!यही तो हमारे संस्कार और संस्कृती की पहचान है.
डर है तो ये की अंतरजाल की दुनिया मे अपनी पहचान ढूँढते-ढूँढते कही यह नई पिढी --------????
ओहो !!!!! माँ आप ये सब क्यो करती रहती है,वो भी बालकनी मे बैठकर.आप जानती है ना कालोनी मे आपके बेटे की पहचान एक नामचिन रईस के रुप मे है.सब क्या सोचते होगे कि----------
आभा मन ही मन सोचती है कि इन फंदो की तरह ही तो हमने अपने रिश्ते बूने है मजबूत और सुंदर. हाथ से बनेइस स्वेटर की अहमियत को तुम क्या जानो कितने प्यार और अपनेपन की गरमाहट है
इनमे. !!!!!यही तो हमारे संस्कार और संस्कृती की पहचान है.
डर है तो ये की अंतरजाल की दुनिया मे अपनी पहचान ढूँढते-ढूँढते कही यह नई पिढी --------????
नदी का छोर
---- नदी का छोर----( प्रतियोगिता के लिए )
आठवीं पास होते ही आ गई थी ब्याह कर इस गाँव में,आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
एक वर्ष बितते ना बितते तुम आ गई थी मेरी गोद मे और फिर मेरी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो तुम मे निहित होने लगे थे.
अब तुम मेरे जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते मैने तुम्हें स्कूल मे भर्ती करा दिया था.उमा रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल मे तुम भी जाने लगी थी.
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने आती थी मैं तुम्हें.तब तुम कागज़ की २-३ तरह की नाँव मुझसे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी,तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर हम गाँव छोड शहर आ बसे थे,मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये हमारे साथ.
उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो के सपनों ने कुलाचे भरे,तुम पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी.
मैं वापस लौट आयी तुम्हारे बाबा के पास अपने गाँव मे.
"अब सिकुडी नदी के इस पाट तक तुम्हारे बाबा संग रोज जाती हूँ तुम्हारा बचपन जीने,."
अब तुम्हारे बाबा रोज नाव बनाकर ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, माँ ये नाव हमे दो मगर????-----
कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.
नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह---------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
---- नदी का छोर----( प्रतियोगिता के लिए )
आठवीं पास होते ही वह आ गई थी. ब्याह कर इस गाँव में, उसकी आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
वर्ष बीता होगा बिटिया आ गई थी गोद में और फिर सारी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो उसमें निहित होने लगे थे.
अब वह उसके जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते उसे स्कूल मे भर्ती करा दिया था. उमा ,रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल में .
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने जाती. तब कागज़ की २-३ तरह की नाँव उससे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी, तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर गाँव छोड शहर आ बसे थे, मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये साथ में.उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो माँ-बेटी के सपनों ने कुलाचे भरे, बिटिया पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी
वह वापस लौट आयी उसके बाबा के पास अपने गाँव में.
अब भी सिकुडी नदी के इस पाट तक उसके बाबा रोज आते हैं, उसका बचपन जीने. कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.रोज नाव बनाकर भी ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, ये नाव हमे दो मगर ,????---
गाँव में अब ना कोइ युवा रहे ना ही बच्चे सब जा बसे शहर में और नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह-------
आठवीं पास होते ही आ गई थी ब्याह कर इस गाँव में,आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
एक वर्ष बितते ना बितते तुम आ गई थी मेरी गोद मे और फिर मेरी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो तुम मे निहित होने लगे थे.
अब तुम मेरे जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते मैने तुम्हें स्कूल मे भर्ती करा दिया था.उमा रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल मे तुम भी जाने लगी थी.
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने आती थी मैं तुम्हें.तब तुम कागज़ की २-३ तरह की नाँव मुझसे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी,तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर हम गाँव छोड शहर आ बसे थे,मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये हमारे साथ.
उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो के सपनों ने कुलाचे भरे,तुम पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी.
मैं वापस लौट आयी तुम्हारे बाबा के पास अपने गाँव मे.
"अब सिकुडी नदी के इस पाट तक तुम्हारे बाबा संग रोज जाती हूँ तुम्हारा बचपन जीने,."
अब तुम्हारे बाबा रोज नाव बनाकर ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, माँ ये नाव हमे दो मगर????-----
कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.
नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह---------
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---- नदी का छोर----( प्रतियोगिता के लिए )
आठवीं पास होते ही वह आ गई थी. ब्याह कर इस गाँव में, उसकी आगे पढने की इच्छा को भी बाबा ने विदाई दे दी थी.
वर्ष बीता होगा बिटिया आ गई थी गोद में और फिर सारी ईच्छाए,स्वप्न पुन: मुखरित हो उसमें निहित होने लगे थे.
अब वह उसके जीवन का केन्द्र बिंदु थी ,बाकी दुनिया इसके चारों ओर---.
६ वर्ष की होते ना होते उसे स्कूल मे भर्ती करा दिया था. उमा ,रमा के साथ नदी के उस पार वाले स्कूल में .
नदी के पाट के इस किनारे तक रोज छोड़ने जाती. तब कागज़ की २-३ तरह की नाँव उससे रोज बनवाती और नदी पार करते वक्त उसके प्रवाह मे उन्हें छोड देती थी.
फिर!!! चिल्ला-चिल्लालर कहती माँ मैं भी एक दिन नाँव में बैठकर नदी के उस दूसरे छोर तक दूररर--तक जाऊँगी, तुम भी चलो गी ना मेरे साथ.
आशा अब बडी हो रही थी और बडे उसके सपने भी.----
पढ़ाई के ख़ातिर गाँव छोड शहर आ बसे थे, मगर!!! उसके बाबा नही आ पाये साथ में.उनकी जडे गाँव से ही जुड़ीं रही.
दोनो माँ-बेटी के सपनों ने कुलाचे भरे, बिटिया पढते-पढते बहुत बडी हो गई और फिर ब्याह कर विदेश जा बसी
वह वापस लौट आयी उसके बाबा के पास अपने गाँव में.
अब भी सिकुडी नदी के इस पाट तक उसके बाबा रोज आते हैं, उसका बचपन जीने. कुछ देर रुककर फिर लौट आते है.रोज नाव बनाकर भी ले जाते है कि कोई कहे बाबा-ताऊ, ये नाव हमे दो मगर ,????---
गाँव में अब ना कोइ युवा रहे ना ही बच्चे सब जा बसे शहर में और नदी के उस छोर पर भी अब स्कूल की जगह-------
मंगलवार, 15 सितंबर 2015
पानी वाली----(पहचान) २
मुंबई पश्चिम इलाके के एक छोटे से आवास मे वे अपनी बहू और पोती के साथ निवास करती है.आराम से कट रही है. जिंदगी फिर भी थोड़ा सा भी गलत उन्हे बर्दाश्त नही.
बहुत देर तक बाथरुम से पानी कि आवाज आते रहने पर वे अपनी जगह बैठे बैठे ही चिल्लाती है.
" बंद करो वो नल कब से बहा रही हो ,पता नही तुम पानी की इतनी बर्बादी क्यो करती हो."
"क्या है दादी बंबई की इतनी उमस भरी गर्मी मे काम से लौटने के बाद आप ठिक से नहाने भी नही देती." पैर पटकते हुए निशी अंदर चली जाती है.
" जानती हो ना तुम पहले यहाँ पीने का पानी भी नसीब नही था. हमने "मृणालिनी "के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लडी है.तब तुम्हें ये पानी नसीब हुआ है.
"पता नही दादी आप किस "मृणालिनी" की बात कर रही है.मुझे कुछ नही सुनना."
"ओह!!!!पता नही क्या होगा तुम्हारी पीढी का"
"पानी वाली बाई" के नाम से उनकी पहचान कही धीरे-धीरे-----------
बहुत देर तक बाथरुम से पानी कि आवाज आते रहने पर वे अपनी जगह बैठे बैठे ही चिल्लाती है.
" बंद करो वो नल कब से बहा रही हो ,पता नही तुम पानी की इतनी बर्बादी क्यो करती हो."
"क्या है दादी बंबई की इतनी उमस भरी गर्मी मे काम से लौटने के बाद आप ठिक से नहाने भी नही देती." पैर पटकते हुए निशी अंदर चली जाती है.
" जानती हो ना तुम पहले यहाँ पीने का पानी भी नसीब नही था. हमने "मृणालिनी "के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लडी है.तब तुम्हें ये पानी नसीब हुआ है.
"पता नही दादी आप किस "मृणालिनी" की बात कर रही है.मुझे कुछ नही सुनना."
"ओह!!!!पता नही क्या होगा तुम्हारी पीढी का"
"पानी वाली बाई" के नाम से उनकी पहचान कही धीरे-धीरे-----------
शुक्रवार, 11 सितंबर 2015
अंतिम उपहार
२-४ दिन से वह बैचेन सी थी,घर के काम निपटाते हुए भी उनके कान मुख्य द्वार की घंटी पर ही थे,पता नही कब बज उठे .उनकी बेटी पूरे दिनो से जो चल रही थी.
तभी अचानक मुख्य द्वार की घंटी बज उठती है,हाथ का काम छोड वे दरवाज़े की ओर दौड़ पड़ती है.
डाकिया बाबू के हाथे लगभग झपटते हुए ही चिट्ठी लेती है.
"अरे अम्मा चिट्ठी के लिये इतनी उतावली होती हो तो एक मोबाईल क्यो ना ले लेती."
वे उसकी बातो को अनसुना कर चिट्ठी पढते ही आनंद के मारे चिल्ला पड़ती है ---यही रुकना डाक बाबू अभी आयी.
"लो डाक बाबू!!! आज तुमने बहुत अच्छी खबर लाई है. मेरी बेटी के घर लक्ष्मी बिटिया ने जन्म लिया है."
"मेरे जन्मदिन पर हर बार तुम मेरे पिता द्वारा डाक से भेजा उपहार लाते हो. आज से तुम्हारी बारी.सम्हालो जल्दी से."
और अरे!!!! ये क्या आनंद मे देख ही नही पायी ये आज तुमने कैसा वेष धारण किया है?
अम्मा बंगलौर मे राष्ट्रीय डाक सप्ताह चल रहा है ना!! सोचा पुराने दिन याद कर लू.पता नही हमारे दिन कब फिर जाए . अब तो नौकरी तक की रजामंदी मेल से आने लगी है. शायद मेरा ये उपहार भी अंतिम हो.
" कही ये मुआ ई-मेल हमारी--------
तभी अचानक मुख्य द्वार की घंटी बज उठती है,हाथ का काम छोड वे दरवाज़े की ओर दौड़ पड़ती है.
डाकिया बाबू के हाथे लगभग झपटते हुए ही चिट्ठी लेती है.
"अरे अम्मा चिट्ठी के लिये इतनी उतावली होती हो तो एक मोबाईल क्यो ना ले लेती."
वे उसकी बातो को अनसुना कर चिट्ठी पढते ही आनंद के मारे चिल्ला पड़ती है ---यही रुकना डाक बाबू अभी आयी.
"लो डाक बाबू!!! आज तुमने बहुत अच्छी खबर लाई है. मेरी बेटी के घर लक्ष्मी बिटिया ने जन्म लिया है."
"मेरे जन्मदिन पर हर बार तुम मेरे पिता द्वारा डाक से भेजा उपहार लाते हो. आज से तुम्हारी बारी.सम्हालो जल्दी से."
और अरे!!!! ये क्या आनंद मे देख ही नही पायी ये आज तुमने कैसा वेष धारण किया है?
अम्मा बंगलौर मे राष्ट्रीय डाक सप्ताह चल रहा है ना!! सोचा पुराने दिन याद कर लू.पता नही हमारे दिन कब फिर जाए . अब तो नौकरी तक की रजामंदी मेल से आने लगी है. शायद मेरा ये उपहार भी अंतिम हो.
" कही ये मुआ ई-मेल हमारी--------
बुधवार, 9 सितंबर 2015
अहसास
कभी नही चाहा
वे सारी रुढियाँ फिर से आगे बढे
जो मेरे पास आयी थी
मेरी नानी,दादी,माँ,मौसी,बुआ से
जिस पर चलने के लिये मुझे ,
मिली थी टेढी-मेढी एक पगडंडी
जिसे मैने पक्के रास्ते मे बदल दिया था
खोल दी थी एक
छोटी सी खिड़की
जिससे दिखाई देता खुला आकाश
चहकते पंछीयो की उड़ान
खोल दिये थे द्वार के पट
राह खोजने के लिये
सुदृढ सामर्थ्य की छत के साथ
फिर भी अधुरेपन का
अहसास क्यों??????
नयना (आरती) कानिटकर
०९/०९/२०१५
वे सारी रुढियाँ फिर से आगे बढे
जो मेरे पास आयी थी
मेरी नानी,दादी,माँ,मौसी,बुआ से
जिस पर चलने के लिये मुझे ,
मिली थी टेढी-मेढी एक पगडंडी
जिसे मैने पक्के रास्ते मे बदल दिया था
खोल दी थी एक
छोटी सी खिड़की
जिससे दिखाई देता खुला आकाश
चहकते पंछीयो की उड़ान
खोल दिये थे द्वार के पट
राह खोजने के लिये
सुदृढ सामर्थ्य की छत के साथ
फिर भी अधुरेपन का
अहसास क्यों??????
नयना (आरती) कानिटकर
०९/०९/२०१५
आपसी विश्वास--एक पहलू यह भी
अरे!!!! नीता दीदी आप इतने साधारण पहनावे मे और गहने कहाँ है??
अपने गले से हार उतारते हुए नीता के गले मे डालते हुए नेहा कहती है, आपकी भतिजी के विवाह का अवसर है आज और आप है कि--
नीता गदगद हो उठती है अपनी भाभी के व्यवहार से. बोल उठती है---
नेहा उनके मुँह पर अंगुली रख चुप कर देती है,मैं सब जानती हूँ दीदी!!! आपके भाई ने मुझे पहले ही आपकी परिस्थिति से अवगत करा दिया था.मुझे आप पर और उन पर पूरा विश्वास है.बे वजह आप यू किसी से पैसे उधार-------
दोनो एक दूसरे के गले लिपट जाती है
अपने गले से हार उतारते हुए नीता के गले मे डालते हुए नेहा कहती है, आपकी भतिजी के विवाह का अवसर है आज और आप है कि--
नीता गदगद हो उठती है अपनी भाभी के व्यवहार से. बोल उठती है---
नेहा उनके मुँह पर अंगुली रख चुप कर देती है,मैं सब जानती हूँ दीदी!!! आपके भाई ने मुझे पहले ही आपकी परिस्थिति से अवगत करा दिया था.मुझे आप पर और उन पर पूरा विश्वास है.बे वजह आप यू किसी से पैसे उधार-------
दोनो एक दूसरे के गले लिपट जाती है
मंगलवार, 8 सितंबर 2015
रिश्ता-मातृभूमि से
-------------साप्ताहिक शीर्षक "रिश्ते" आधारित लघुकथा -----
अपनी बेटी को खोने का दुख वे सम्हाल नही पा रहे थे,बेटी की आख़िरी सलामी परेड मे उनकी आँखो से झर-झर आँसु बह रहे थे तो दूसरी तरफ़ गर्व भी था.
चल चित्र से वे दिन उनकी आँखो के सामने तैर गये जब माँ के लाख मना करने पर भी बेटी ने जिद करके भारतीय वायुसेना को ज्वाइन किया था.
कठिन प्रशिक्षण के बाद पासिंग आउट परेड मे शामिल हो ने वे सपत्निक गये थे.उसे गोल्ड मेडल से नवाजा गया था.तब गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया था.
फिर अचानक एक दिन दुर्घटना की खबर उन्हे अंदर तक हिला दिया .आनन-फानन मे वे अस्पताल पहुँच गये थे जहाँ उनकी बेटी को लाया गया था.
अत्यधिक घायल मूर्छित अवस्था मे बेटी को देख थोड़ी देर को होश खो बैठे .मगर अपने आप को संयत किया .
वे और पत्नी उसके सिरहाने बैठे उसके सिर पर सहला रहे थे कि बेटी के शरीर मे अचानक हलचल महसूस हुई. अपने सिरहाने माँ-पापा को देख उसके चेहरे पर धीमी सी मुस्कान तैर गई.
अचानक वो बोल पड़ती है---- पापा-माँ!!!!! मातृभूमि से अपना रिश्ता निभाते-निभाते मैं आपके रिश्ते से न्याय्य्य्य--------
चारों और एक गहरा सन्नाटा छा गया.
नयना(आरती) कानिटकर
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अपनी बेटी को खोने का दुख वे सम्हाल नही पा रहे थे,बेटी की आख़िरी सलामी परेड मे उनकी आँखो से झर-झर आँसु बह रहे थे तो दूसरी तरफ़ गर्व भी था.
चल चित्र से वे दिन उनकी आँखो के सामने तैर गये जब माँ के लाख मना करने पर भी बेटी ने जिद करके भारतीय वायुसेना को ज्वाइन किया था.
कठिन प्रशिक्षण के बाद पासिंग आउट परेड मे शामिल हो ने वे सपत्निक गये थे.उसे गोल्ड मेडल से नवाजा गया था.तब गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया था.
फिर अचानक एक दिन दुर्घटना की खबर उन्हे अंदर तक हिला दिया .आनन-फानन मे वे अस्पताल पहुँच गये थे जहाँ उनकी बेटी को लाया गया था.
अत्यधिक घायल मूर्छित अवस्था मे बेटी को देख थोड़ी देर को होश खो बैठे .मगर अपने आप को संयत किया .
वे और पत्नी उसके सिरहाने बैठे उसके सिर पर सहला रहे थे कि बेटी के शरीर मे अचानक हलचल महसूस हुई. अपने सिरहाने माँ-पापा को देख उसके चेहरे पर धीमी सी मुस्कान तैर गई.
अचानक वो बोल पड़ती है---- पापा-माँ!!!!! मातृभूमि से अपना रिश्ता निभाते-निभाते मैं आपके रिश्ते से न्याय्य्य्य--------
चारों और एक गहरा सन्नाटा छा गया.
नयना(आरती) कानिटकर
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शुक्रवार, 4 सितंबर 2015
हकीकत

क्या पढ़ते रहते हो बाबा अखबार मे रोज यहाँ आकर,इतनी कमजोर आँखो से.
अपनी छोटी सी दुकान पर बैठे-बैठे ही हरिया ने पूछा.
रोज देखता हूँ!! कही मेरे बेटे अमन का नाम तो नहीं हे!!!! ना अखबार में,जब ना हो तभी चैन मैं से सो पाता हूँ
आपके बेटे का नाम वो क्यूँ??? क्या आपका भी कोई बेटा है.फिर ये डर कैसा???
हाँ है ना !! मैने अपना पेट काटकर उसे पढाया -लिखाया,फिर वह आगे पढने शहर चला गया.बहुत बडा अफ़सर बन गया है अब वह.बहुत बडी कोठी,कार,नौकर-चाकर सब है उसके पास
तब तो आपको ख़ुश होना चाहिए.उसकी उन्नति देखकर,फिर इस तरह अखबार मे उसका नाम ढूँढना ,मैं कुछ समझा नहीं.
दो मिनट को सन्नाटा छा गया,बाबा आँखो मे आँसू भरकर बोले डर इसी बात का तो है,इतने एशो-आराम के लिये आजकल लोग अपना ईमान तक बेच देते है. कही मेरा अमन???? :( :(.गलत रास्ते पर ना चल दिया हो
अखबार मे कही ये खबर ना आ जाए कि आज "-------" के घर इन्कम टैक्स की रेड पडी है और भ्रष्टाचार से कमाया लाखों रुपया नक़दी,जेवरात आदि मिले है.
नयना(आरती) कानिटकर
०४/०९/२०१५
बुधवार, 2 सितंबर 2015
अंधकार
आज रानी को विदा करते वक्त उसकी आँखो से झर-झर आँसू बह रहे थे.
बहन और जीजाजी की मृत्यु के पश्चात गरीबी के चलते बहन की बेटी को पालने मे वह असमर्थ था.
तब भरे दिल से उसने अपने साहब के यहाँ छोटे-मोटे घरेलू कामों के लिये उसे छोड दिया था.बदले मे उसे दो वक्त का खाना और वर्ष मे २-३ जोडी कपड़े नसीब होते थे.
मालकिन दीपा मेमसाब बहुत नरम और दिलेर स्वभाव की थी.उन्होने उसके साथ कभी गलत बर्ताव नही किया.पास ही के एक सरकारी स्कूल मे उसे एडमिशन भी दिला दिया था.सुबह के काम साथ-साथ निपटा कर वह स्कूल जाने लगी थी.अपने बच्चों के साथ-साथ कभी-कभी वह उसे भी पढा दिया करती
वह पूरी तरह अब उस घर मे रम सी गयी थी.प्रकाश अंकल ने तो उसका नाम रानी रख दिया था.वह भी उन्हे पूरा आदर देती थी.इसी तरह धीरे-धीरे १२ वर्ष गुजर गये . उसने १२ वी की परीक्षा उत्तिर्ण कर ली
उस दिन आनंद से दीपा मेम्साब और साहब ने मिठाई बाँटी और उसके मामा के घर भी भिजवाई थी.मामा भी मिलने आए थे उस दिन.आँखो मे आनंद से आँसू उमड़ आए थे उनके.घर ले जाने की बात करने लगे पर अंकल ने मना कर दिया
अब रानी घर के कामो के साथ अंकल के व्यवसाय के लिखा-पढी के छोटे-मोटे काम देखने लगी थी.साथ ही साथ प्राइवेट बी.काम. भी पूरा कर लिया
आज रानी बहुत खुश थी .साहब ने उसका विवाह उन्ही के ऑफ़िस मे काम करने वाले अनाथ योगेश के साथ कर दिया था जो उनके यहाँ ५-६ सालों से काम कर रहा था.बहुत सरल मेहनती स्वभाव का था वो.
मेमसाब व साहब की आँखो मे रानी बिदाई के साथ-साथ खुशी के आँसू भी थे.
आज दो जिंदगीयो से "अंधकार" हमेशा के लिये दूर हो चुका था.
वह अपने साहब के सामने आदर से नतमस्तक खडा था.
बहन और जीजाजी की मृत्यु के पश्चात गरीबी के चलते बहन की बेटी को पालने मे वह असमर्थ था.
तब भरे दिल से उसने अपने साहब के यहाँ छोटे-मोटे घरेलू कामों के लिये उसे छोड दिया था.बदले मे उसे दो वक्त का खाना और वर्ष मे २-३ जोडी कपड़े नसीब होते थे.
मालकिन दीपा मेमसाब बहुत नरम और दिलेर स्वभाव की थी.उन्होने उसके साथ कभी गलत बर्ताव नही किया.पास ही के एक सरकारी स्कूल मे उसे एडमिशन भी दिला दिया था.सुबह के काम साथ-साथ निपटा कर वह स्कूल जाने लगी थी.अपने बच्चों के साथ-साथ कभी-कभी वह उसे भी पढा दिया करती
वह पूरी तरह अब उस घर मे रम सी गयी थी.प्रकाश अंकल ने तो उसका नाम रानी रख दिया था.वह भी उन्हे पूरा आदर देती थी.इसी तरह धीरे-धीरे १२ वर्ष गुजर गये . उसने १२ वी की परीक्षा उत्तिर्ण कर ली
उस दिन आनंद से दीपा मेम्साब और साहब ने मिठाई बाँटी और उसके मामा के घर भी भिजवाई थी.मामा भी मिलने आए थे उस दिन.आँखो मे आनंद से आँसू उमड़ आए थे उनके.घर ले जाने की बात करने लगे पर अंकल ने मना कर दिया
अब रानी घर के कामो के साथ अंकल के व्यवसाय के लिखा-पढी के छोटे-मोटे काम देखने लगी थी.साथ ही साथ प्राइवेट बी.काम. भी पूरा कर लिया
आज रानी बहुत खुश थी .साहब ने उसका विवाह उन्ही के ऑफ़िस मे काम करने वाले अनाथ योगेश के साथ कर दिया था जो उनके यहाँ ५-६ सालों से काम कर रहा था.बहुत सरल मेहनती स्वभाव का था वो.
मेमसाब व साहब की आँखो मे रानी बिदाई के साथ-साथ खुशी के आँसू भी थे.
आज दो जिंदगीयो से "अंधकार" हमेशा के लिये दूर हो चुका था.
वह अपने साहब के सामने आदर से नतमस्तक खडा था.
मंगलवार, 1 सितंबर 2015
"अंधकार"
मात्र ७ वर्ष की उम्र मे वो इस घर मे आ गयी थी.माँ-पिता का साया उठ जाने के बाद गरीब मामा भी उसे पालने मे अक्षम थे..
तब उन्होने अपने साहब के यहाँ छोटे-मोटे घरेलू कामों के लिये मुझे छोड दिया था.बदले मे मुझे दो वक्त का खाना और वर्ष मे २-३ जोडी कपड़े नसीब होते थे.
मेरी मालकिन दीपा आँटी बहुत नरम और दिलेर स्वभाव की थी.उन्होने मुझसे कभी गलत बर्ताव नही किया.पास ही के एक सरकारी स्कूल मे मुझे एडमिशन भी दिला दिया था.सुबह के काम साथ-साथ निपटा कर मे स्कूल जाने लगी थी.अपने बच्चों के साथ-साथ कभी-कभी वह मुझे भी पढा दिया करती
मैं पूरी तरह अब उस घर मे रम सी गयी थी.प्रकाश अंकल ने तो मेरा नाम रानी रख दिया था.मैं भी उन्हे पूरा आदर देती थी.इसी तरह धीरे-धीरे १२ वर्ष गुजर गये .मैने १२ वी की परीक्षा उत्तिर्ण कर ली
उस दिन आनंद से दीपा आंटी और अंकल ने मिठाई बाँटी और मेरे मामा के घर भी भिजवाई थी.मामा भी मिलने आए थे उस दिन.आँखो मे आनंद से आँसू उमड़ आए थे उनके.घर ले जाने की बात करने लगे पर अंकल ने मना कर दिया
अब मे घर के कामो के साथ अंकल के व्यवसाय के लिखा-पढी के छोटे-मोटे काम देखने लगी थी.साथ ही साथ प्राइवेट बी.काम. भी पूरा कर लिया
आज मे बहुत खुश थी .अंकल-आंटी ने मेरा विवाह उन्ही के ऑफ़िस मे काम करने वाले अनाथ योगेश के साथ कर दिया था जो उनके यहाँ ५-६ सालों से काम कर रहा था.बहुत सरल मेहनती स्वभाव का था वो.
अंकल-आंटी के आँखो मे मेरी बिदाई के साथ-साथ खुशी के आँसू भी थे.
आज दो जिंदगीयो से "अंधकार" हमेशा के लिये दूर हो चुका था
तब उन्होने अपने साहब के यहाँ छोटे-मोटे घरेलू कामों के लिये मुझे छोड दिया था.बदले मे मुझे दो वक्त का खाना और वर्ष मे २-३ जोडी कपड़े नसीब होते थे.
मेरी मालकिन दीपा आँटी बहुत नरम और दिलेर स्वभाव की थी.उन्होने मुझसे कभी गलत बर्ताव नही किया.पास ही के एक सरकारी स्कूल मे मुझे एडमिशन भी दिला दिया था.सुबह के काम साथ-साथ निपटा कर मे स्कूल जाने लगी थी.अपने बच्चों के साथ-साथ कभी-कभी वह मुझे भी पढा दिया करती
मैं पूरी तरह अब उस घर मे रम सी गयी थी.प्रकाश अंकल ने तो मेरा नाम रानी रख दिया था.मैं भी उन्हे पूरा आदर देती थी.इसी तरह धीरे-धीरे १२ वर्ष गुजर गये .मैने १२ वी की परीक्षा उत्तिर्ण कर ली
उस दिन आनंद से दीपा आंटी और अंकल ने मिठाई बाँटी और मेरे मामा के घर भी भिजवाई थी.मामा भी मिलने आए थे उस दिन.आँखो मे आनंद से आँसू उमड़ आए थे उनके.घर ले जाने की बात करने लगे पर अंकल ने मना कर दिया
अब मे घर के कामो के साथ अंकल के व्यवसाय के लिखा-पढी के छोटे-मोटे काम देखने लगी थी.साथ ही साथ प्राइवेट बी.काम. भी पूरा कर लिया
आज मे बहुत खुश थी .अंकल-आंटी ने मेरा विवाह उन्ही के ऑफ़िस मे काम करने वाले अनाथ योगेश के साथ कर दिया था जो उनके यहाँ ५-६ सालों से काम कर रहा था.बहुत सरल मेहनती स्वभाव का था वो.
अंकल-आंटी के आँखो मे मेरी बिदाई के साथ-साथ खुशी के आँसू भी थे.
आज दो जिंदगीयो से "अंधकार" हमेशा के लिये दूर हो चुका था
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