मंगलवार, 21 जून 2016

प्रकृति और पर्यावरण


प्रकृति और पर्यावरण


उदास भोर
तपती दोपहर
कुम्हलाई शाम
धुआँ ही धुआँ
गाड़ी का शोर
अस्त व्यस्त मन
ये कैसा जीवन

मानव ने किया विनाश
हो गया सत्यानाश
पहाड़ हो गये खाली
कैसे फूल उगाँए माली

सूखा निर्मल जल
प्रदूषित नभमंडल
जिस देखो औद्योगिक मल
कैसे हो जंगल मे मंगल


कही खो गये है
वन-उपवन, वो बसंत का आगमन
कैसे गूँजे अब, कोयल की तान
बस! भाग रहा इंसान

मौलिक एवं अप्रकाशित




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